भारत के इतिहास में हमें बहुत से वीरों को कहानियां पढ़ने- सुनने को मिलती हैं. लेकिन बात अगर देश की वीरांगनाओं की हो तो गिने-चुने नाम ही हमें पता हैं. लेकिन आपको बता दें कि समय-समय पर भारती की बहुत सी बेटियों ने न सिर्फ शक्ति प्रदर्शन किया बल्कि अपने लोगों के लिए अच्छी शासक भी साबित हुईं. आज ऐसी ही एक रानी की कहानी हम आपको बता रहे हैं जिसने अपने साहस और हौसले से इतिहास के पन्नों पर खुद अपना नाम लिखा.
यह कहानी है मराठा साम्राज्य की रानी ताराबाई की, जिन्होंने बरसों तक मुगलों से अपने राज्य और लोगों की रक्षा की. ताराबाई भोसले, जिन्हें "मराठों की रानी" कहा जाता था. उन्होंने केवल 25 वर्ष की आयु में, मुगल सम्राट औरंगजेब (आलमगीर) के खिलाफ कई युद्धों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया और मराठा साम्राज्य को विघटन से बचाया.
छत्रपति शिवाजी के छोटे बेटे से हुई थी शादी
ताराबाई का जन्म 14 अप्रैल, 1675 को मराठा साम्राज्य के मोहिते परिवार में हुआ था. उनके पिता, हंबिराव मोहिते, एक प्रसिद्ध मराठा सेना कमांडर-इन-चीफ थे. परिणामस्वरूप, उन्हें तीरंदाजी, तलवारबाजी, सैन्य रणनीति और राज्य कला में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त हुई. आठ साल की उम्र में उनका विवाह छत्रपति शिवाजी के छोटे बेटे राजाराम से हुआ. उनके विवाह के समय मुगल और मराठा दक्कन के युद्ध लड़ रहे थे.
जब मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना ने 1689 में रायगढ़ की घेराबंदी की, तो छत्रपति संभाजी मारे गए, और उनकी पत्नी (येसुबाई) और बेटे (शाहू) को बंदी बना लिया गया. इस प्रकार, छत्रपति की उपाधि राजाराम को दे दी गई और वह ताराबाई के साथ गिंजी किले (तमिलनाडु) पहुंचे, जो राज्य का सबसे दक्षिणी गढ़ था. जब मुगल सेना ने किले को घेरा तब राजाराम का स्वास्थ्य बिगड़ रहा था. ऐसे में, ताराबाई ने किले को संभाला और आठ साल तक मुगलों को किले पर कब्जा नहीं करने दिया.
साबित हुईं बेहतरीन शासक
रानी ताराबाई ने 1696 में अपने बेटे को जन्म दिया और उसका नाम शिवाजी द्वितीय रखा. जब 1700 में राजाराम की फेफड़ों की गंभीर बीमारी से मृत्यु हो गई, तो ताराबाई ने अपने चार साल के बेटे, शिवाजी द्वितीय को उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया. और खुद राज्य की बागडोर संभाली. उन्होंने आठ साल तक सत्ता को अपने हाथ में रखा.
उन्होंने औरंगजेब के तरीकों को ही उसकी सेना और सरकार के खिलाफ सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया. रानी ताराबाई औरंगजेब की आंखों की किरकिरी बन गई थीं. साल 1706 तक, उनकी सेनाएं गुजरात और मालवा के मुगल-अधिकृत प्रांतों में बहुत आगे बढ़ चुकी थीं. उन्होंने इन क्षेत्रों में अपने स्वयं के 'कमीशदार' (कर संग्रहकर्ता) भी नियुक्त किए. उनके शासन काल में मराठा साम्राज्य की जड़ें काफी फैलीं.
हालांकि, बाद में पारिवारिक विवादों के कारण उन्हें अपनी सत्ता छोड़नी पड़ी. लेकिन अपनी आखिरी सांस तक वह मराठा साम्राज्य के लिए काम करती रहीं. साल 1761 में उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली. ताराबाई भोसले के वीरतापूर्ण प्रयासों ने औरंगजेब के प्रकोप से मराठा साम्राज्य को बचाए रखा, और मराठों का स्वराज का आदर्श केवल उन्हीं के कारण बचा रहा.