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Heroine of Quit India Movement: भारत छोड़ो आंदोलन की नायिका थींं अरुणा आसफ अली, तिरंगा फहराकर दी थी अंग्रेजों को चुनौती

Quit India Movement की जैसे ही गांधीजी ने शुरुआत की तो उन्हें आंदोलन के कई बड़े नेताओं समेत गिरफ्तार कर लिया गया. अंग्रेज इस आंदोलन को हर हाल में दबाना चाहते थे लेकिन अरुणा आसफ अली ने तिरंगा फैराकर आंदोलन को आगे बढ़ाया.

Aruna Asaf Ali Aruna Asaf Ali
हाइलाइट्स
  • 8 अगस्त 1942 को, कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया

  • 1997 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया

अरुणा आसफ अली - भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख महिला नायिकाओं में से एक हैं, जिन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान नेतृत्व की कमान संभाली थी. अरुणा को स्वतंत्रता आंदोलन की 'ग्रैंड ओल्ड लेडी' के रूप में भी जाना जाता है. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराने के लिए जानी जाती हैं.

क्या हुआ और कब हुआ?
8 अगस्त 1942 को, कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया और महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सहित इसके सभी प्रमुख नेताओं को ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया. गांधी के "करो या मरो" के आह्वान का जवाब देते हुए, अरुणा ने 9 अगस्त 1942 को बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान (अब आज़ाद मैदान) में तिरंगा फहराकर अंग्रेजों को चुनौती दी. 

कौन थीं अरुणा आसफ अली?
1909 को अरुणा गांगुली के रूप में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्मी, इस स्वतंत्रता सेनानी ने अपनी स्कूली शिक्षा लाहौर के सेक्रेड हार्ट कॉन्वेंट से पूरी की और बाद में नैनीताल के ऑल सेंट्स कॉलेज में चली गईं. उन्होंने कलकत्ता के गोखले मेमोरियल स्कूल में एक शिक्षक के रूप में शुरुआत की. 19 साल की उम्र में, साल 1928 में, उन्होंने अपने परिवार के कड़े विरोध के बावजूद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के एक प्रमुख सदस्य आसफ अली से शादी की। वह उनसे 23 साल बड़े थे. 

राजनीति से हुआ परिचय
अरुणा की आसफ अली से शादी ने उन्हें राजनीति की दुनिया से परिचित कराया, और वह जल्द ही अपने पति के नक्शेकदम पर चलते हुए कांग्रेस की सक्रिय सदस्य बन गईं. वह कई संघर्षों में सबसे आगे रहने वाली जाना-माना चेहरा थीं. पहली बार, उन्हें 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने उन पर खतरनाक होने का आरोप लगाया. इसलिए जब अन्य कैदियों को गांधी-इरविन समझौते के तहत रिहा किया जा रहा था तो अंग्रेजों ने अरुणा को रिहा करने से मना कर दिया.

अन्य महिला सह-कैदियों ने इस निर्णय पर हंगामा किया और तब तक जाने से इनकार कर दिया जब तक कि अरुणा को उनके साथ रिहा नहीं किया गया. 1932 में उन्हें एक बार फिर तिहाड़ जेल में हिरासत में लिया गया. उन्होंने तिहाड़ जेल में राजनीतिक कैदियों के साथ दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल की थी, और उनके अनशन ने कैदियों की जिंदगी में बदलाव की शुरुआत की. 

1942 की नायिका थीं अरुणा
सा 1942 में, जब सभी प्रमुख नेताओं को भारत छोड़ो आंदोलन के कारण अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था, तो उन्होंने गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराकर भारत छोड़ो आंदोलन की कमान संभाली. तबसे उन्हें '1942 की नायिका' कहा जाने लगा. इस घटना के बाद जब ब्रिटिश पुलिस उसकी तलाश कर रही थी, तो वह गिरफ़्तारी से बचने के लिए छिप गई.

अंडरग्राउंड रहकर भी उन्होंने सीक्रेट रेडियो, पैम्फलेट और 'इंकलाब' जैसी पत्रिकाओं के माध्यम से अपना संघर्ष जारी रखा. अपनी निडरता और आतम-विश्वास के लिए जानी जाने वाली, उन्होंने 1946 में खुद को आत्मसमर्पण करने के गांधीजी के अनुरोध को भी नहीं माना. साल 1946 में उनके ख़िलाफ़ वारंट वापस ले लिया गया और वह जनता के सामने आ गईं.

अपने समय से आगे की सोच
बेहद पढ़ी-लिखी अरुणा ने शिक्षा के जरिए महिलाओं के उत्थान में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने अपनी साप्ताहिक पत्रिकाओं 'वीकली' और समाचार पत्र 'पैट्रियट' के माध्यम से महिलाओं की शिक्षा के बारे में जागरूकता पैदा की. स्वतंत्रता के बाद, वह सार्वजनिक कार्यों में सक्रिय रहीं और 1958 में दिल्ली की पहली महिला मेयर चुनी गईं. उन्होंने नई दिल्ली में पैट्रियट अखबार और साप्ताहिक पत्रिका, लिंक चलाई. उन्हें 1992 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. 29 जुलाई 1996 को अरुणा का निधन हो गया. उनके निधन के एक साल बाद साल 1997 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया.