रबींद्रनाथ टैगोर जयंती दुनियाभर के साहित्य प्रेमियों के बीच मनाया जाने वाला एक प्रमुख सांस्कृतिक उत्सव है. वैले तो टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को हुआ था. पर बंगाली कैलेंडर के मुताबिक उनका जन्म बैसाख महीने के 25 वें दिन हुआ था. इस तरह से द्रिक पंचांग के अनुसार, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में स्थानीय जगहों पर इस साल टैगोर जयंती 9 मई को मनाई जा रही है.
टैगोर को लोग गुरुदेव के नाम से जानते हैं. और उनकी कविताओं के संग्रह को लोकप्रिय रूप से रवींद्र संगीत के नाम से जाना जाता है. उनकी दो कविताओं को व्यापक रूप से भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रूप में जाना जाता है- जन गण मन और अमर सोनार बांग्ला.
8 साल की उम्र से कविता लिखना शुरू किया
रबींद्रनाथ टैगोर दुनिया के बुद्धिजीवी लोगों में से एक थे. बताया जाता है कि 8 साल की उम्र में, उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था. और 16 साल की उम्र में अपना पहला कविता संग्रह प्रकाशित किया. 42 साल की उम्र में, उन्होंने मृणालिनी देवी से शादी की और 60 साल की उम्र में, रवींद्रनाथ टैगोर ने ड्राइंग और पेंटिंग में हाथ आजमाया और कई अपने काम की कई सफल प्रदर्शनियां आयोजित कीं.
टैगोर ने भारत को दुनिया के साहित्यिक मानचित्र पर रखा है. इसलिए उन्हें कविगुरु और विश्वकवि के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीता और इस श्रेणी में सम्मान पाने वाले एकमात्र भारतीय हैं. यह प्रतिष्ठित पुरस्कार उन्हें गीतांजलि नामक कविताओं के संग्रह के लिए मिला.
जब अल्बर्ट आइंस्टीन से मिले टैगोर
अल्बर्ट आइंस्टीन और रबींद्रनाथ टैगोर दोनों ही दुनिया के बुद्धिमान व्यक्तियों में से थे. तो जरा सोचिए कैसा होगा वह पल जब इन दो अद्भुत व्यक्तित्वों को मिलने का मौका मिला? 14 जुलाई 1930 को बर्लिन में आंइस्टीन के घर पर दोनों की मुलाक़ात हुई. इस बैठक को इतिहास की सबसे बैद्धिक और उत्साही चर्चा के रूप में देखा जाता है.
स्कूपवूप के एक लेख के मुताबिक, आइंस्टीन ने टैगोर से पूछा था कि क्या आप दुनिया से अलग दिव्य में यकीन रखते हैं. जिस पर टैगोर ने जवाब देते हुए कहा कि इंसान का अनंत व्यक्तित्व ब्रह्मांड को जानता है. ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे इंसान कम नहीं कर सकता है. इससे साबित होता है कि ब्रह्मांड का सत्य मानव सत्य है.
आइंस्टीन और टैगोर ने काफी देर तक बात की और उनकी बातचीत पर लेख भी छपे थे.
रखी इस विश्वविद्यालय की नींव
टैगोर ने शिक्षा के पारंपरिक तरीकों को चुनौती देने के लिए पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में विश्व-भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की. जहां कक्षा के चापदिवारी में होने के तरीके को तोड़ा गया. आज भी यहां पर खुली जगहों में, पेड़ों के नीचे क्लास ली जाती हैं. 1951 में विश्व भारती विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय घोषित किया गया था.
टैगोर को न सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर में सम्मान मिलता है. 2011 में लंदन के गॉर्डन स्क्वायर में उनकी 150 वीं जयंती पर प्रिंस चार्ल्स ने टैगोर की एक कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया था.