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Rabindranath Tagore ने ही बापू को दिया था महात्मा का नाम, जलियांवाला बाग कांड के बाद लौटा दी थी सर की उपाधि, जानिए कविगुरु के जीवन से जुड़ी कहानी

Rabindranath Tagore Jayanti 2023: कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को एक बंगाली परिवार में हुआ था. रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत के अलावा बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए राष्ट्रगान लिखा है. टैगोर दूसरे व्यक्ति थे जिन्होंने विश्व धर्म संसद को दो बार संबोधित किया. इसके पहले स्वामी विवेकानंद ने धर्म संसद को संबोधित किया था.

Rabindranath Tagore (photo twitter) Rabindranath Tagore (photo twitter)
हाइलाइट्स
  • रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था

  • कविगुरु ने लगभग 2230 गीतों की रचना की थी

रविंद्रनाथ टैगोर कवि के साथ संगीतकार, आयुर्वेद शोधकर्ता और कलाकार थे. वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. इसी के कारण उन्हें पॉलीमैथ यानी सभी विद्या और कलाओं में निपुण कहा जाता था. रवींद्रनाथ टैगोर ने ही बापू को महात्मा का नाम दिया था. आइए जानते हैं रवींद्रनाथ टैगोर के जन्मदिन पर उनके जीवन से जुड़ी रोचक कहानी.

कोलकाता में हुआ था जन्म 
रविंद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के घर हुआ था. बचपन में उन्हें प्यार से घर के लोग रबी बुलाते थे. अपने सभी 13 भाई-बहनों में सबसे छोटे रवीन्द्रनाथ टैगोर को बालपन से परिवार में साहित्यिक माहौल मिला, इसी वजह से उन्हें साहित्य से बहुत लगाव रहा.

बनना चाहते थे बैरिस्टर, बिना डिग्री लिए लंदन से लौट आए 
बंगाली परिवार में जन्में रवींद्रनाथ टैगोर बचपन से पढ़ाई में अच्छे थे. उन्होंने प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में अपनी शुरुआती शिक्षा ली. रवींद्रनाथ टैगोर बैरिस्टर बनना चाहते थे. अपने इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए उन्होंने 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल में दाखिला ले लिया. बाद में लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई की. लेकिन 1880 में बिना कानून की डिग्री लिए ही वह वापस स्वदेश आ गए.

आठ साल की उम्र में लिखी थी पहली कविता 
रवींद्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कविताएं और कहानियां लिखने में रूचि थी. सिर्फ आठ साल की उम्र में रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी पहली कविता लिखी थी. 16 साल की उम्र में टैगोर की पहली लघुकथा प्रकाशित हो गई थी. जब वह पढ़ाई करके लंदन से वापस भारत आए तो उन्होंने फिर से लिखना शुरू किया.

तीन देशों के लिए राष्ट्रगान की रचना की  
रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' के अलावा बांग्लादेश का राष्ट्रगान 'आमार सोनार बांग्ला' भी लिखा है. इतना ही नहीं उन्होंने श्रीलंका के राष्ट्रगान 'श्रीलंका मठ' की भी रचना की. 

'गीतांजलि' के लिए मिला नोबेल पुरस्कार 
1882 में उन्होंने अपनी पहली बंगाली लघुकथा 'भिखारिणी' लिखी. 1913 में रविंद्रनाथ टैगोर को उनके साहित्य में महान योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार उन्हें उनके द्वारा लिखी हुई 'गीतांजलि' के लिए मिला था. गीतांजलि बंगाली गीतों का संग्रह है. टैगोर ने नोबेल पुरस्कार को सीधे स्वीकार नहीं किया. बल्कि उनकी जगह पर ब्रिटेन के एक राजदूत ने पुरस्कार लिया था. 1915 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सर की उपाधि दी, लेकिन जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने यह उपाधि ब्रिटिश सरकार को वापस कर दी थी. 

विश्व भारती विश्वविद्यालय 
1901 में पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में टैगोर ने शांतिनिकेतन स्थित एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की थी. इस विद्यालय में टैगोर ने भारत और पश्चिमी परंपराओं को मिलाने की कोशिश की. टैगोर विद्यालय में ही रहने लगे. बाद में 1921 में यह विद्यालय विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया. 1883 में रविंद्र नाथ टैगोर की शादी मृणालिनी देवी से हुई थी. रविंद्रनाथ टैगोर ने लगभग 2230 गीतों की रचना की और अधिकतर को संगीत भी दिया. इन गीतों को रविंद्र संगीत के नाम से जाना जाता है.प्रोस्टेट कैंसर होने के बाद 7 अगस्त, 1941 को टैगोर का निधन हो गया. 

टैगोर की रचनाओं पर बन चुकी है कई फिल्म
साल 1953 में रिलीज हुई बिमल रॉय की फिल्म 'दो बीघा जमीन' अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी थी. इस फिल्म की कहानी रवींद्रनाथ टैगोर की बंगाली रचना 'दुई बीघा जोमी' पर आधारित थी. रवींद्रनाथ टैगोर की लघु कहानी पर रितुपर्णो घोष ने साल 2003 में 'चोखेर बाली' बनाई. हिंदी ड्रामा फिल्म 'बायोस्कोपवाला' साल 2017 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म की कहानी रवींद्रनाथ टैगोर की काबुलीवाला की एक छोटी कहानी पर आधारित थी. कहानी काबुलीवाला पर बिमल रॉय ने 1961 पर फिल्म 'काबुलीवाला' बनाई थी. 

रवींद्रनाथ टैगोर के अनमोल विचार 
1. यदि आप सभी त्रुटियों के लिए दरवाजा बंद कर दोगे तो सच अपने आप बाहर बंद हो जाएगा.
2. आप नदी को सिर्फ खड़े होकर और या पानी को घूरकर पार नहीं कर सकते. 
3. दोस्ती की गहराई परिचित की लंबाई पर निर्भर नहीं करती. 
4. तथ्य कई हैं लेकिन सच एक ही है. 
5. जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप से कह नहीं सकता उसी को क्रोध अधिक आता है. 
6. जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है. उसी तरह मौन रहना तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है.
7. विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारखाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं. 
8.  खुश रहना बहुत सरल है लेकिन सरल रहना बहुत मुश्किल. 
9. उपदेश देना आसान है पर उपाय बताना कठिन. 
10.  प्रेम अधिकार का दावा नहीं करता, बल्कि स्वतंत्रता देता है.