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Climate Heroes Part 4: इंसानों ने जिसे छीना उसी घर को वापस देने का काम रहे दिल्ली के राकेश खत्री... अब तक बना चुके 7.8 लाख से ज्यादा घोंसले 

Rakesh Khatri Nest Man of India: 2012 में, नेस्ट मैन कहलाने वाले राकेश खत्री ने इको रूट्स फाउंडेशन की स्थापना की. ये पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित एक संगठन है, विशेष रूप से पक्षियों पर केंद्रित है. राकेश खत्री अब तक, 7,88,000 से ज्यादा घोंसले लग चुके हैं, जिससे अनगिनत पक्षियों को बचाया गया है और नई पीढ़ी को संरक्षण के लिए प्रेरित किया गया है. यहां तक कि उन्होंने फ्रूटी के डिब्बों से भी घोंसला बनाया है. 

Rakesh Khatri, Nest Man of India (Photo: Eco Roots Foundation) Rakesh Khatri, Nest Man of India (Photo: Eco Roots Foundation)
हाइलाइट्स
  • अब तक बना चुके 7.8 लाख से ज्यादा घोंसले 

  • चिड़िया को घर देने का काम कर रहे राकेश खत्री

राकेश खत्री (Rakesh Khatri) दिल्ली के मयूर विहार में स्थित अपने घर में बैठकर चाय  की चुस्कियां ले रहे हैं… दिल्ली-नोएडा की तेज और भागदौड़ भरी जिंदगी में इनके घर का माहौल बेहद ही शांत और सौम्य है… घर के बाहर खूब सारे पौधे लगे हैं और पांच-छह गोद लिए हुए कुत्ते और बिल्लियां यहां आजादी से घूम रहे हैं. चारों तरफ एक खूबसूरत का सन्नाटा पसरा है… लेकिन चिड़ियों की चीं-चीं सुनाई दे रही है… जो दिल्ली के किसी आम से घर के लिए काफी अलग है. यह उस जीवन की झलक है जिसे बचाने के लिए राकेश खत्री ने खुद को समर्पित कर दिया है.

"नेस्ट मैन ऑफ इंडिया" के नाम से मशहूर राकेश खत्री (Nest Man of India Rakesh Khatri) ने अपना जीवन प्रकृति से छीनी गई चीजों को लौटाने के लिए समर्पित कर दिया है. उनकी कहानी प्रेरणा, धैर्य और पर्यावरण के संतुलन को फिर से ठीक करने के अनूठे जुनून की है.

पुरानी दिल्ली से जड़ें
राकेश खत्री पुरानी दिल्ली की गलियों में बड़े हुए, जहां गौरैया और दूसरे पक्षी उतने ही आम थे जितनी बाजार की हलचल. Gnt डिजिटल से बात करते हुए राकेश खत्री कहते हैं, "जब मैं बच्चा था, तब घरों को इस तरह से बनाया जाता था कि दीवारों में पक्षियों के घोंसले बनाने के लिए छोटी-छोटी जगहें होती थीं. गौरैया हर जगह थीं; उनकी चहचहाहट रोज का संगीत था." वे याद करते हैं कि उनके दादा जी उन कमरों में पंखा बंद करवा दिया करते थे, जहां पक्षियों ने घोंसला बनाया हो, ताकि ये छोटे जीव आराम से रह सकें.

लेकिन जैसे-जैसे आधुनिक डिजाइनों ने पारंपरिक घरों की जगह ली, और सजावटी पौधों ने बेर और अनार जैसे देशी पौधों को बदल दिया, गौरैया गायब होने लगीं. वे दुखी होकर कहते हैं, "हमने उनके घरों को बिना सोचे-समझे खत्म कर दिया. उनकी खाने की चेन भी इससे प्रभावित हो गई. पहले जब बड़े-बुजुर्ग सुबह सूर्य को जल अर्पित करते थे, तो उसमें चावल डालते थे, जिसे पक्षी खा लेते थे. अब ये परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही है."

(फोटो क्रेडिट: इको रूट्स फाउंडेशन)
(फोटो क्रेडिट: इको रूट्स फाउंडेशन)

दूर से दिख रहा ये नुकसान हम और आप जैसे लोगों के लिए बेशक छोटा है लेकिन इसने राकेश खत्री को गहराई से प्रभावित किया. कभी जीवंत चहचहाहट की जगह अब एक अजीब सी खामोशी ने ले ली. इसने उनके दिल में एक आजीवन मिशन का बीज बो दिया: गौरैयों को वापस लाना और उनके घरों को बहाल करना है.

एक आंदोलन की शुरुआत
यात्रा 2008 में शुरू हुई, जब राकेश खत्री ने नारियल के खोल और अखबार से अपना पहला घोंसला बनाया. वे बताते हैं, "मैंने ऐसे 40 घोंसले लगाए, लेकिन एक पक्षी भी नहीं आया.” उन्होंने हार नहीं मानी और अपने डिजाइन को और मॉडिफाई किया और खुद प्रकृति से सीखा. 

एक दिन वसंत पंचमी के दौरान जब वे एक पार्क में घोंसले लगा रहे थे. एक माली उनके पास आया और पूछा कि वे क्या कर रहे हैं. उन्होंने बताया, "जब मैंने उन्हें बताया, तो उन्होंने मुझे ₹150 दिए और कहा, इस काम को बंद मत करो. तुम उन जीवों को घर दे रहे हो, जिन्हें हमने बेघर कर दिया. यह पहली बार था जब किसी ने मेरे प्रयासों की प्रशंसा पैसे से की, और इसने मुझे बहुत प्रेरित किया."

घोंसले बनाना, एक वर्कशॉप के जरिए
2012 में, नेस्ट मैन कहलाने वाले राकेश खत्री ने इको रूट्स फाउंडेशन (Eco Roots Foundation) की स्थापना की. ये पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित एक संगठन है, विशेष रूप से पक्षियों पर केंद्रित है. इन कुछ सालों में, उन्होंने 17 राज्यों के 3,500 से अधिक स्कूलों में वर्कशॉप आयोजित की हैं, जहां बच्चों और बड़ों को जूट, नारियल रेशे और टहनियों जैसे पर्यावरण अनुकूल सामग्रियों से घोंसले बनाना सिखाया जाता है. 

राकेश खत्री अब तक, 7,88,000 से ज्यादा घोंसले लग चुके हैं, जिससे अनगिनत पक्षियों को बचाया गया है और नई पीढ़ी को संरक्षण के लिए प्रेरित किया गया है. यहां तक कि उन्होंने फ्रूटी के डिब्बों से भी घोंसला बनाया है. 

(फोटो क्रेडिट: इको रूट्स फाउंडेशन)
(फोटो क्रेडिट: इको रूट्स फाउंडेशन)

घोंसलों से परे
घोंसले बनाने से अलग, राकेश खत्री पर्यावरण को लेकर भी अलग-अलग प्रयास कर रहे हैं. इसमें जल संरक्षण और शिक्षा शामिल हैं. उन्होंने जल संरक्षण और वैज्ञानिक जागरूकता जैसे विषयों पर थिएटर वर्कशॉप की हैं. वे कहते हैं, "थिएटर एक शक्तिशाली माध्यम है. यह बच्चों को प्रकृति के महत्व को इस तरह से समझाता है, जो उनके साथ लंबे समय तक रहता है."

राकेश खत्री के लिए, गौरैया और मेंढक जो कभी हमें सामान्य रूप से दिख जाया करते थे, उनका गायब होते जाना एक गहरी पर्यावरणीय समस्या का प्रतीक है. वे पूछते हैं, "आखिरी बार आपने कोयल या मेंढक कब देखा था? ये सिर्फ जानवर नहीं हैं; ये एक हेल्दी इकोसिस्टम का संकेत हैं."

मिल चुके कई सम्मान 
राकेश खत्री बताते हैं कि उनका नाम चार स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में दर्ज है, और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी उनकी कहानी को एक आगामी प्रकाशन में शामिल करने जा रही है. उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार और पर्यावरण संरक्षण में 8 अंतरराष्ट्रीय सम्मान शामिल हैं. वे GNT Digital को बताते हैं, "मैनें आर्ट्स में ग्रेजुएशन की, जो 5 साल में खत्म हुई थी. मैं पहले परफ्यूम की फैक्ट्री में काम करता था, फिर कैप्सूल की फैक्ट्री में काम किया, फिर इलेक्ट्रीशियन बना... फोटग्राफी की... बॉम्बे में टाइम्स ऑफ इंडिया ज्वाइन किया. फिर वहां से छोड़कर दिल्ली आया, 400 से ज्यादा डॉक्यूमेंट्री बनाई. इसके बाद मैंने कई एनजीओ ज्वाइन किए लेकिन फिर 2012 में दोस्तों ने कहा कि तुम्हें कुछ अपना शुरू करना चाहिए."

इस पूरे मिशन में राकेश खत्री के परिवार की भी बड़ी भूमिका है. वे बताते हैं कि उनकी पत्नी डिजाइन करती हैं और बच्चों के साथ काम करती हैं. बेटा उन्हीं के साथ जुड़ा हुआ है. साथ में, वे SIDBI जैसे संगठनों के साथ जलवायु परिवर्तन जागरूकता जैसे पहलों पर काम करते हैं. इतना ही नहीं, उनका प्रभाव वैश्विक मंचों तक फैला हुआ है. राकेश खांनी अब तक 10 TEDx टॉक्स दे चुके हैं. 

(फोटो क्रेडिट: इको रूट्स फाउंडेशन)
(फोटो क्रेडिट: इको रूट्स फाउंडेशन)

लेकिन, अपनी उपलब्धियों के बावजूद, राकेश खत्री आने वाली चुनौतियों से भलीभांति वाकिफ हैं. पक्षियों की घटती आबादी शहरीकरण, प्रदूषण, और देशी वनस्पतियों के नुकसान जैसे बड़े पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़ी है. वे कहते हैं, "हमने अपने एयर कंडीशनर्स को भी जाल लगाकर बर्ड-प्रूफ बना दिया है. ये दिखाता है कि पर्यावरण ने हमें नहीं बल्कि हमने खुद पर्यावरण को खुद से अलग कर दिया है."

 बता दें, उनकी वर्कशॉप में केवल बच्चे ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता को भी घोंसला बनाना सीखते हैं. बस यही उन्हें उम्मीद देती है. यहां तक कि कॉर्पोरेट ऑफिस प्रोग्राम के लिए रिटर्न गिफ्ट के रूप में घोंसले मंगाते हैं, जो जागरूकता में बदलाव का संकेत है.

पक्षियों के लिए एक भविष्य
राकेश खत्री के घर के ऊपर सूरज ढल रहा है, लेकिन पक्षियों की चहचहाहट अभी भी हवा में है. जो इस बात का प्रमाण है कि एक व्यक्ति भी कितना बदलाव ला सकता है. उनका मिशन सिर्फ गौरैयों को बचाने के बारे में नहीं है, यह मानवता और पर्यावरण के बीच के रिश्ते को फिर से जगाने के बारे में है. वे आखिर में कहते हैं, "पर्यावरण को हमारी जरूरत नहीं है, हमें इसकी जरूरत है."

(फोटो क्रेडिट: इको रूट्स फाउंडेशन)
(फोटो क्रेडिट: इको रूट्स फाउंडेशन)

7,88,000 से ज्यादा घोंसले बना चुके नेस्ट मैन ऑफ इंडिया राकेश खत्री ने साबित किया है कि छोटे-छोटे प्रयास भी बदलाव की बड़ी लहर पैदा कर सकते हैं.