राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म तब हुआ था जब भारत गुलाम था. दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने अपनी कविताओं में वीर रस का खूब इस्तेमाल किया है. इन कविताओं को पढ़कर युवाओं में जोश भर जाता था. देश की आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के सफर को दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है. आइए आज राष्ट्रकवि की पुण्यतिथि (निधन 24 अप्रैल, 1974) पर उनसे जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में जानते हैं.
हिन्दी के साथ संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का किया था गहन अध्ययन
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार राज्य के बेगूसराय जिले स्थित सिमरिया गांव में हुआ था. दिनकर के पिता किसान थे. दिनकर जब दो वर्ष के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था. दिनकर ने साल 1928 में मैट्रिक के बाद पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए किया. उन्होंने हिन्दी के साथ संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था. वह मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया. उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने. वह राज्यसभा सदस्य भी रहे.
नेहरू ने लिखी थी संस्कृति के चार अध्याय की प्रस्तावना
दिनकर का पहला काव्यसंग्रह विजय संदेश वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद उन्होंने कई रचनाएं की. उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं रेणुका, हुंकार, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा आदि हैं. दिनकर को साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मविभूषण आदि तमाम बड़े पुरस्कारों से नवाजा गया. दिनकर की चर्चित किताब संस्कृति के चार अध्याय की प्रस्तावना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखी है. इस प्रस्तावना में नेहरू ने दिनकर को अपना साथी और मित्र बताया है.
दिनकर ने लोकदेव नेहरू नामक लिखी थी किताब
रामधारी सिंह दिनकर करीब 12 साल तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे, कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेजा था. इसी कारण से वह भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के काफी करीबी थे. दिनकर ने जवाहर लाल नेहरू की तारीफ में एक किताब भी लिखी थी, जिसका नाम था लोकदेव नेहरू.इन सबके बावजूद एक बार रामधारी सिंह दिनकर ने जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ जमकर कविता पाठ किया और हर चीज का दोषी बता दिया. भारत-चीन के बीच 1962 के वक्त चल रहे संकट के दौर में रामधारी सिंह दिनकर ने एक कविता संग्रह लिखा, जिसका नाम था परशुराम की प्रतीक्षा. इसी संग्रह में कुछ कविताएं सीधे जवाहर लाल नेहरू पर निशाना थी और इन्हीं कविताओं में चीन के कारण भारत की हार को लेकर नेहरू को जिम्मेदार ठहराया गया था. दिनकर किसी एक विचारधारा का समर्थन नहीं करते थे.
दिनकर की लिखी मशहूर पंक्तियां
1. प्रेम होने पर गली के श्वान भी, काव्य की लय में गरजते, भोंकते हैं.
2. प्रेम नारी के हृदय में जन्म जब लेता, एक कोने में न रुक, सारे हृदय को घेर लेता है.
3. उसका भी भाग्य नहीं खोटा, जिसको न प्रेम-प्रतिदान मिला, छू सका नहीं, पर, इन्द्रधनुष, शोभित तो उसके उर में है.
4. शब्द जब मिलते नहीं मन के, प्रेम तब इंगित दिखाता है, बोलने में लाज जब लगती, प्रेम तब लिखना सिखाता है.
5. इच्छाओं का दामन छोटा मत करो, जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबाकर निचोड़ो.