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EXPLAINER: आई-पैक कैसे करता है काम, हर पार्टी से क्यों होता है PK का विवाद

प्रशांत किशोर पर यह शुरू से आरोप लगते रहे हैं कि वह जिस पार्टी से जुड़ते हैं उस पार्टी के शीर्ष नेता के सबसे खास हो जाते हैं. बहुत ही कम समय में ऐसी बॉन्डिंग बन जाती है. प्रशांत ने अब तक जिन पार्टियों के लिए काम किया है, उससे जुड़ने के बाद पार्टी के टॉप लीडर्स ऐसा महसूस करने लगते हैं कि पीके ने आकर पार्टी को हाईजैक कर लिया है और अपने मन मुताबिक पार्टी चला रहे हैं. यही बात नेताओं को खटकने लगती है.

प्रशांत किशोर प्रशांत किशोर
हाइलाइट्स
  • बीजेपी और जदयू से भी हो चुकी है खटास

  • शीर्ष नेताओं को खटकने लगते हैं प्रशांत

  • पार्टी हाईजैक करने के लगते रहे हैं आरोप

एक बात तो अब साफ हो चुका है कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और आई-पैक अब ममता बनर्जी के लिए काम नहीं करेंगे. पश्चिम बंगाल में होने वाले नगरपालिका चुनाव में कैंडिडेट सेलेक्शन को लेकर यह विवाद उठा. विवाद इतना बड़ा हो गया कि इस मु्द्दे पर ममता बनर्जी भी नाराज हो गईं और पिछले करीब ढाई साल से उनके और टीएमसी के लिए रणनीति तैयार कर रहे पीके से उनके रिश्तों में खटास आ गई.

प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी आई-पैक तृणमूल कांग्रेस से पहले भी कई पार्टियों के लिए काम कर चुकी है. लेकिन, ज्यादातर पार्टियों के साथ उनका जल्द ही विवाद हो गया. चाहे वो बीजेपी से शुरुआत हो, फिर कांग्रेस के साथ काम करना या फिर बिहार में जदयू के साथ जाना हो. आखिर ऐसी परिस्थिति क्यों बनती है और आई-पैक किस तरह से काम करती है, आइये समझते हैं.

प्रशांत पर पार्टी हाईजैक करने का आरोप
सबसे पहले ये समझते हैं कि प्रशांत किशोर का ज्यादातर पार्टियों के साथ विवाद क्यों हो जाता है. दरअसल, प्रशांत किशोर पर यह शुरू से आरोप लगते रहे हैं कि वह जिस पार्टी से जुड़ते हैं उस पार्टी के शीर्ष नेता के सबसे खास हो जाते हैं. बहुत ही कम समय में ऐसी बॉन्डिंग बन जाती है. लेकिन, आखिर कुछ वक्त बाद ही ऐसा क्यों हो जाता है कि पार्टी के कुछ नेता प्रशांत किशोर के खिलाफ हो जाते हैं या फिर यूं कहा जाए कि पार्टी का एक बड़ा धड़ा पीके की वजह से नाराज हो जाता है. दरअसल, प्रशांत ने अब तक जिन पार्टियों के लिए काम किया है, उससे जुड़ने के बाद पार्टी के टॉप लीडर्स ऐसा महसूस करने लगते हैं कि पीके ने आकर पार्टी को हाईजैक कर लिया है और अपने मन मुताबिक पार्टी चला रहे हैं. यही बात नेताओं को खटकने लगती है. कांग्रेस और जदयू से लेकर तृणमूल कांग्रेस में ये बातें खुलकर सामने आ गई.

बड़े नेताओं को होने लगती है दिक्कत
प्रशांत ने जिन पार्टियों के साथ अब तक काम किया है, उनमें ज्यादातर पार्टी के बड़े नेता इसे किसी भी हाल में स्वीकार करने को तैयार नहीं होते हैं कि कोई बाहर से आए और पूरी पार्टी को हाईजैक कर अपने हिसाब से चलाए. यहीं से टकराहट शुरू होती है और धीरे-धीरे यह इतनी बड़ी हो जाती है कि पार्टी अध्यक्ष को पार्टी टूटने का खतरा महसूस होने लगता है. इसी डर से प्रशांत साइडलाइन कर दिए जाते हैं.

मोदी-नीतीश से हुई दूरी
एक वक्त था जब पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब पीके उनके करीब हुआ करते थे. पीके से जुड़े करीबी सूत्र बताते हैं कि तब अमित शाह की आंखों में भी पीके खटकने लगे थे लेकिन तब वे कुछ नहीं कर पाए. 2014 में चुनाव जीतने के बाद पीके को साइडलाइन कर दिया गया. फिर पीके ने जदयू के लिए काम किया. हालांकि, चुनाव खत्म होने के बाद नीतीश से उनका संपर्क नहीं रहा. साल 2018 में प्रशांत जदयू में शामिल हो गए. लेकिन, महज कुछ दिनों में मुश्किलें शुरू हो गई. चूंकि, नीतीश पीके को उपाध्यक्ष बनाकर पार्टी में लाए थे तो पार्टी के कई नेता खुलकर नहीं बोल रहे थे लेकिन, कुछ दिनों बाद ही तस्वीर बदलने लगी. आरसीपी सिंह से लेकर ललन सिंह और मंत्री नीरज कुमार तक ने खुलकर पीके के खिलाफ बयानबाजी की. हालांकि, नीतीश ने तब भी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. बात जब ममता बनर्जी के लिए काम करने को लेकर विवाद हुआ तब नीतीश ने भी अपना मन बना लिया. फिर सीएए-एनआरसी पर प्रशांत का ट्वीट बहाना बना और उन्हें पार्टी से चलता कर दिया गया.

तृणमूल में भी हुआ था जमकर विरोध
तृणमूल कांग्रेस के लिए काम करने के दौरान भी ऐसा हुआ. हालांकि, पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव से पहले की बात कुछ और थी. तब प्रशांत के पास फ्री हैंड था और जो फैसले वे लेना चाहते थे लिए. दरअसल, इसके पीछे भी ममता बनर्जी के मन में बैठा डर था. लोकसभा चुनाव में बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन से ममता डरी हुईं थी. इसी वजह से उन्होंने चुनाव में प्रशांत की मदद लेने का फैसला किया. ममता के लिए चुनाव नाक का सवाल था. प्रशांत ने जो भी कहा उसे ममता ने माना. इसको लेकर पार्टी में खूब बवाल भी हुआ. जमकर आरोप लगे. लेकिन, ममता प्रशांत की रणनीति पर ही आगे बढ़ीं. चुनाव में अच्छे परिणाम आए. इसके बाद प्रशांत का कद और बढ़ गया. जो खुलकर बोल रहे थे वे तो पहले ही बाहर हो गए या कर दिए गए, बाकी जो बचे वो भी ठंडे पड़ गए. लेकिन, नगर पालिका चुनाव की गर्मी ऐसी चढ़ी कि प्रशांत और ममता दूर ही हो गए.

कांग्रेस को भी हाईजैक करने का था खतरा
कांग्रेस में जाने को लेकर भी प्रशांत की स्थिति ऐसी ही बनी. पार्टी के टॉप लीडर्स इस बात को किसी भी हाल में स्वीकार करने को तैयार नहीं थे कि पीके पार्टी ज्वाइन करें. ऊपर से प्रशांत महासचिव का पद मांग रहे थे जिसे किसी भी हाल में स्वीकार करना नामुमकिन जैसा था. प्रशांत तो पद को लेकर मान गए थे लेकिन इतना जरूर चाहते थे कि कम से कम जिन राज्यों में कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, उसे वे लीड करें. इस पर भी पार्टी के बड़े नेता तैयार नहीं थे. पार्टी नेताओं का यही कहना था कि प्रशांत एक कार्यकर्ता की हैसियत से आएं और काम करें. प्रशांत यह बात जानते थे कि जब तक पोजीशन नहीं मिलेगी, काम नहीं किया जा सकता. वे पार्टी में तो रह जाएंगे लेकिन अलग-थलग. शीर्ष नेताओं ने हाईजैक के डर से प्रशांत को लाने की हामी नहीं भरी.

कैसे काम करती है आई-पैक
लोकसभा और विधानसभा चुनाव के हिसाब से अलग-अलग तरह से रणनीति तैयार की जाती है. आई-पैक की एक कोर टीम है. मतलब प्रशांत जिन राज्यों में काम करते हैं वहां यह टीम एक्टिव रहती है और पूरी प्लानिंग तैयार करती है. इसमें देश दुनिया की बड़ी यूनिवर्सिटी से पढ़कर निकले लोग भी शामिल होते हैं. इसके साथ ही जिस राज्य में आई-पैक काम कर रही है, वहां बड़ी संख्या में युवाओं को टीम में शामिल किया जाता है ताकि स्थानीय चीजों को समझा जा सके. इसी के आधार पर कोर टीम रणनीति तैयार करती है.

आई-पैक की पूरी टीम दो तरह से काम करती है. एक इन हाउस और दूसरा फील्ड. फील्ड पर खासकर वैसे लोग होते हैं जो स्थानीय हैं. हर नेता के पीछे कुछ लोग रणनीति तैयार करने के लिए लगाए जाते हैं. एक पार्टी के तौर पर कम बल्कि हर एक नेता के पीछे चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगाई जाती है. आईपैक से जुड़े सूत्र बताते हैं कि प्रशांत इसी रणनीति पर काम करते हैं कि कैसे नेताओं को जनता से जोड़ा जाए और काम को लेकर माहौल कैसे तैयार किया जाए. यूपी विधानसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो प्रशांत को इसी रणनीति से सफलता मिली है.