गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बना केबल पुल रविवार शाम टूट गया. केबल ब्रिज के अचानक टूट जाने से कई लोग नदी में गिर गए. हादसे के वक्त पुल पर करीब 500 लोग मौजूद थे. इस हादसे में अब तक 141 लोगों की जानें जा चुकी हैं. खबरों की मानें को इस पुल को मरम्मत के बाद 2 साल बाद खोला गया है.
140 साल पुराना है ये ब्रिज
इस पुल का उद्घाटन पहली बार 20 फरवरी, 1879 को मुंबई के गवर्नर रिचर्ड टेम्पल ने किया था. इसे 1880 में लगभग 3.5 लाख रुपये की लागत से पूरा किया गया था. सारा सामान इंग्लैंड से आया था और इसे दरबारगढ़ को नज़रबाग से जोड़ने के लिए बनाया गया था. अब, यह ब्रिज महाप्रभुजी के आसन और पूरे समाकांठा क्षेत्र को जोड़ता है. यह सस्पेंशन ब्रिज 140 साल से भी ज्यादा पुराना है और इसकी लंबाई करीब 765 फीट है. पुल पिछले दो वर्षों से बंद था और गुजराती नव वर्ष के अवसर पर 26 अक्टूबर को नवीनीकरण के बाद इसे फिर से खोल दिया गया था.
फिटनेस सर्टिफिकेट के बिना खोल दिया था पुल
मोरबी नगर समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एस.वी. जाला ने चौंकाने वाले खुलासे में कहा कि बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के पुल को जनता के लिए खोल दिया गया था. ज़ाला ने स्थानीय मीडिया को संबोधित करते हुए कहा: "लंबी अवधि के लिए, यह पुल जनता के लिए बंद था ... सात महीने पहले, एक निजी कंपनी को नवीनीकरण और रखरखाव के लिए अनुबंध दिया गया था, और पुल को जनता के लिए अक्टूबर में फिर से खोल दिया गया था. 26 अक्टूबर (गुजराती नव वर्ष दिवस) को एक निजी कंपनी ने इस खोल दिया था. जिसके लिए नगर पालिका ने फिटनेस प्रमाण पत्र जारी नहीं किया है."
कंपनी ने बिना जमा नहीं किया फिटनेस सर्टिफिकेट
नगर समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एस.वी. जाला ने यहां तक दावा किया कि हो सकता है कि कंपनी को इंजीनियरिंग कंपनी से फिटनेस सर्टिफिकेट मिला हो, लेकिन उसे आज तक नगर पालिका को जमा नहीं किया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि कंपनी ने स्वयं और नगर निकाय को सूचित किए बिना जनता के लिए पुल को फिर से खोल दिया.
पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने भी मीडिया को बताया कि आम तौर पर जब पुलों का निर्माण या जीर्णोद्धार किया जाता है, तो इसे जनता के लिए खोलने से पहले, तकनीकी मूल्यांकन आवश्यक होता है, और भार वहन क्षमता का परीक्षण किया जाता है और इसके बाद ही संबंधित प्राधिकरण द्वारा जारी एक उपयोग प्रमाण पत्र होता है और पुलों को तभी जनता के लिए खोला जा सकता है.
मोरबी में वेलकम करता है ये ब्रिज
जैसे ही आप मोरबी में प्रवेश करेंगे, ये सस्पेंशन ब्रिज आकर्षित करता था. नदी के किनारे का वो नजारा लोगों को विक्टोरियन लंदन का एहसास कराता था. राजकोट से 64 किमी दूर स्थित मोरबी में इमारतें 19वीं सदी के यूरोप के टक्कर की बनाई गई थीं. मोरबी के पूर्व शासक अंग्रेजों की तकनीक से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने पूरे शहर में उसका इस्तेमाल किया था. शहर में आपका वेलकम यही पुल करता था जो 100 साल से भी पहले से अपने विशाल और विहंगम स्वरूप से लोगों को आकर्षित कर रहा था. पूरे शहर में यूरोपीय शैली की छाप दिखती है.
रेस्कयू में जुटी तमाम टीमें
हादसे के तुरंत बाद रेस्क्यू ऑपरेशन शुरु किया गया. पुलिस और प्रशासन के साथ स्थानीय लोग भी मदद में जुट गए. NDRF और एसडीआरएफ की तीन- तीन प्लाटून के साथ एसआरपी की टीम, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना के गरुड़ कमांडोज के अलावा फायर ब्रिगेड की 7 टीमों को बचाव कार्य में लगाया गया.