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Republic Day 2024: कौन हैं मेजर दिव्या त्यागी जिन्होंने गणतंत्र दिवस पर की 'बॉम्बे सैपर्स' के पुरुष दस्ते की अगुवाई

दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड के मौके पर बॉम्बे सैपर्स की टुकड़ी का नेतृत्व एक महिला अधिकारी ने किया. इस रेजिमेंट की टुकड़ी में सभी पुरुष अधिकारी शामिल हुए. बॉम्बे इंजीनियर ग्रुप जिसे बॉम्बे सैपर्स के नाम से भी जाना जाता है, थलसेना के इंजीनियर्स कोर की एक रेजीमेंट है.

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भारतीय सेना की मेजर दिव्या त्यागी ने गणतंत्र दिवस परेड (2024 Delhi Republic Day parade) में इतिहास रच दिया है. मेजर दिव्या त्यागी कर्तव्य पथ पर परेड के दौरान कंटिंजेंट कमांडर के रूप में बॉम्बे सैपर्स की सभी पुरुष टुकड़ी का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी बन गई हैं. सेना की इस टुकड़ी का काम लड़ाई के दौरान सेना की किसी भी तरह की बाधा को दूर करना है.

कौन हैं मेजर त्यागी?
मेजर दिव्या त्यागी सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक हैं. उन्होंने एक सेना अधिकारी से शादी की है. वर्तमान में पुणे जिले के खड़की में बॉम्बे इंजीनियरिंग ग्रुप एंड सेंटर में तैनात हैं. वह ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी चेन्नई से अकादमी कैडेट एडजुटेंट के रूप में उत्तीर्ण हुईं और सितंबर 2016 में बॉम्बे सैपर बन गईं. बॉम्बे इंजीनियर ग्रुप या बॉम्बे सैपर्स, भारतीय सेना के कोर ऑफ़ इंजीनियर्स की एक रेजिमेंट है.

क्या है बॉम्बे सैपर्स का इतिहास
बॉम्बे सैपर्स की उत्पत्ति ब्रिटिश राज की तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी सेना से हुई है. इनका केंद्र खड़की, पुणे में है. हालांकि सैपर्स अपनी वंशावली 1777 में मानते हैं, जब पायनियर लस्कर्स को बॉम्बे प्रेसीडेंसी के तहत खड़ा किया गया था. इस टुकड़ी का गठन साल 1820 में हुआ था, जब इंजीनियर लस्कर्स को उठाया गया था और बॉम्बे सेना के अधीन 'सैपर्स एंड माइनर्स' के रूप में नामित एक कंपनी बनाई गई थी. बॉम्बे इंजीनियरिंग ग्रुप को स्वतंत्रता से पहले और बाद में सर्वोच्च वीरता पुरस्कारों का गौरव प्राप्त हुआ है. इनमें विक्टोरिया क्रॉस, मेडेल मिलिटेर, परमवीर चक्र और अशोक चक्र शामिल हैं.

क्या होते हैं सैपर्स
किसी युद्ध में सेना के लिए सड़क या पुल तैयार करने का काम सैपर्स ही करते हैं. बारूदी सुरंगें बिछाने और फिर हटाने का काम भी इन्हीं के हिस्से होता है. युद्ध के अलावा किसी तरह के हादसे या प्राकृतिक आपदा में भी इनकी भूमिका बहुत बड़ी होती है. कश्मीर की बाढ़ हो या भुज का भूकंप, इन्होंने आगे बढ़ कर काम किया है. उत्तरकाशी के सिल्कयारा की सुरंग में फंसे लोगों को निकालने में भी ये लगे रहे, इसीलिए इनके बारे में कहा जाता है कि ये रास्ता खोज लेते हैं या बना लेते हैं.