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12 हजार किलोमीटर की दूरी तय करके 68 साल बाद चुकाई 28 रुपए की उधारी, वजह जानकर हो जायेंगे इमोशनल...

हरियाणा के एक रिटायर्ड सेना अफसर ने अपनी 68 साल पुरानी उधारी अब चुकाई है. यह कहानी है हरियाणा में प्रथम नौसेना बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित होने वाले रिटायर्ड नौसेना कॉमोडोर बीएस उप्पल और उनके एक हलवाई के साथ दिलचस्प किस्से की. 

उधारी चुकाने लौटे बीएस उप्पल (तस्वीर: प्रवीण कुमार) उधारी चुकाने लौटे बीएस उप्पल (तस्वीर: प्रवीण कुमार)
हाइलाइट्स
  • 1954 में की थी 28 रुपए की उधारी

  • अमेरिका से लौटे 85 वर्षीय रिटायर्ड नौसेना अफसर

कहते हैं कि समय किसी के लिए नहीं रुकता. और समय के साथ ज़िन्दगी आगे बढ़ती रहती है. रोजमर्रा के कामों में न जाने हमारे कितने ही अपने पीछे छूट जाते हैं. काम की भागदौड़ में बहुत से पुराने रास्ते भूल जाते हैं. जिन पर लौटने के बारे में हम सोचते तो बहुत हैं लेकिन शायद कभी लौट नहीं पाते. 

पर ज़िंदगी रहते हुए अपनी खूबसूरत यादों को एक बार फिर जी लेना चाहिए. इससे न सिर्फ नई यादें बनती हैं बल्कि पुराने हिसाब भी चुकता हो जाते हैं. जैसे कि हरियाणा के एक रिटायर्ड सेना अफसर ने अपनी 68 साल पुरानी उधारी अब चुकाई है. 

यह कहानी है हरियाणा में प्रथम नौसेना बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित होने वाले रिटायर्ड नौसेना कमांडर बीएस उप्पल और उनके एक हलवाई के साथ दिलचस्प किस्से की. 

दही-पेड़े की 28 रुपए की उधारी: 

85 वर्षीय बीएस उप्पल पिछले कई सालों से अमेरिका में रह रहे हैं. सेवानिवृति के बाद वह अपने बेटे के पास अमेरिका चले गए थे. इसके बाद उनका कभी भारत या हिसार आना नहीं हो पाया. लेकिन हाल ही में वह हिसार लौटे और यहां पहुंचकर सबसे पहले हिसार के मोती बाजार स्थित ‘दिल्ली वाला हलवाई’ की दुकान पर गए. 

इस दुकान को विनय बंसल संभालते हैं. लेकिन यह दुकान उनके दादाजी शंभु दयाल बंसल ने शुरू की थी. उस समय बीएस उप्पल स्कूल में पढ़ते थे और अक्सर इस दुकान से दही-पेड़े खाया करते थे. उन्होंने विनय को बताया कि 1954 में उन्होंने उनके दादा शम्भू दयाल बंसल से 28 रुपए की उधारी की थी.  

वह उनकी दुकान से दही की लस्सी में पेड़े डालकर पीते थे. जिसके 28 रुपए उन पर बकाया रह गए थे. लेकिन उस समय उन्हें शहर से बाहर जाना पड़ा और फिर उनकी भर्ती नौसेना में हो गई. सेना में नौकरी के दौरान उन्हें कभी हिसार आने का मौका नहीं मिला और रिटायरमेंट के बाद वह अपने बेटे के पास अमेरिका चले गए थे. 

68 साल पुरानी उधारी चुका मिला सुकून: 

बीएस कहते हैं कि वह जहां भी रहे हिसार उनकी यादों में हमेशा रहा. अमेरिका में भी उन्हें हिसार की सिर्फ दो बाते याद आती थीं. एक तो 28 रुपए की उधारी और दूसरा, अपना हरजीराम हिन्दु हाई स्कूल. जहां से उन्होंने दसवीं पास की थी और इसके बाद कभी जा न सके. 

लेकिन 68 साल बाद वह खासतौर पर अपने स्कूल को देखने और अपनी उधारी चुकाने हिसार लौटे. लेकिन बीएस ने विनय बंसल के हाथ में जब दस हजार की राशि रखी तो उन्होंने लेने से मना किया. पर बीएस ने उनसे कहा कि ये पैसे लेकर वह उन्हें ऋणमुक्त कर देंगे. तब जाकर विनय ने पैसे स्वीकार किए. 

यह पल बीएस उप्पल और विनय बंसल दोनों के लिए बहुत ही भावुक था. इसके बाद बीएस उप्पल अपने स्कूल को देखने पहुंचे, लेकिन अब यह स्कूल बंद पड़ा है. इसलिए उन्हें निराश लौटना पड़ा.

भारत-पाकिस्तान के युद्ध में निभाई अहम भूमिका: 

आपको बता दें कि बीएस उप्पल ने भारत-पाक युद्ध में विशेष भूमिका निभाई थी. दरअसल उप्पल उस पनडुब्बी के कमांडर थे जिसने भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के जहाज को डुबो दिया था. और अपनी पनडुब्बी व नौसैनिकों को सुरक्षित ले आए थे. 

इस बहादुरी के लिए भारतीय सेना ने उन्हें बहादुरी के नौसेना पुरस्कार से सम्मानित भी किया था. बेशक, यह अफसर न सिर्फ अपने निजी जीवन बल्कि अपने काम में भी पूरे ईमानदार रहे.

(हिसार से प्रवीण कुमार की रिपोर्ट)