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एथेंस ओलंपिक में देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली लड़की क्यों हुई समोसे बेचने के लिए मजबूर?

सीता साहू एक गरीब घर से ताल्लुक रखती हैं. दिव्यांग सीता साहू ने विशेष ओलंपिक मे देश का प्रतिनिधित्व करते हुए दो कास्य पदक अपने नाम किये थे. जून 2011 में ग्रीस की राजधानी एथेंस मे आयोजित मानसिक बाधित बच्चों के लिए विशेष ओलंपिक खेलों मे सीता ने एथलेटिक्स की 200 और 1600 मीटर की दौड़ में दो कांस्य पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया था.

Sita making Samosa Sita making Samosa
हाइलाइट्स
  • पिता की मौत के बाद ठप्प हुई प्रेक्टिस

  • मानसिक रूप से कमजोर है सीता

जब खेलों में खिलाड़ी देश का प्रतिनिधित्व करने जाते है तब हर देशवासी उनसे मेडल की उम्मीद करता है. खिलाड़ी मेडल भी जीत कर लाते हैं और उनका स्वागत भी होता है. इसके बाद सरकार उनके लिए कई घोषणाएं करती है. लेकिन कुछ दिनों बाद बुलंदियों तक पहुंचने वाला खिलाड़ी गुमनाम हो जाता है. रीवा की एक बेटी सीता का भी यही हाल है. रीवा ने एथेंस ओलंपिक 2011 में 2 ब्रॉन्ज मेडल हासिल कर देश का मान बढ़ाया लेकिन अब समोसे बनाने को मजबूर है. 

मानसिक रूप से कमजोर है सीता
सीता साहू एक गरीब घर से ताल्लुक रखती हैं. दिव्यांग सीता साहू ने विशेष ओलंपिक मे देश का प्रतिनिधित्व करते हुए दो कांस्य पदक अपने नाम किये थे. जून 2011 में ग्रीस की राजधानी एथेंस मे आयोजित मानसिक बाधित बच्चों के लिए विशेष ओलंपिक खेलों मे सीता ने एथलेटिक्स की 200 और 1600 मीटर की दौड़ में दो कांस्य पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया था. इस विशेष ओलंपिक मे देशभर के 200 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था जिसमें मध्यप्रदेश के 8 बच्चे शामिल थे. सीता साहू एक दुर्लभ बीमारी से ग्रसित है जिसके चलते उसका दिमाग अन्य बच्चों के तरह विकसित नहीं हुआ है. सीता मानसिक बाधित हैंडीकैप की श्रेणी में आती है. ऐसे बच्चों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.  

पिता की मौत के बाद ठप्प हुई प्रेक्टिस
सीता की मां किरण साहू ने बताया की एथेंस मे ओलंपिक में जाने के लिए भी सीता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. परिजनों ने बड़ी मुश्किल से रुपये जुटाए थे ताकि सीता खेल का जोहर दिखा सके. सीता के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. बड़े भाई समोसे का ठेला लगाते हैं लिहाजा सीता समोसे बनाने में मां का साथ देती है. सीता के पिता की मौत होने के बाद उसकी पूरी प्रैक्टिस ठप्प हो गई है और खेल से नाता टूट गया. सीता देश लिए मेडल जीतना चाहती है लेकिन आर्थिक तंगी उसके सामने है. नतीजन अब वह अपनी मां और भाई के काम में हाथ बटांती है. 
 
आर्थिक सहायता न मिलने से टूट गया परिवार
सीता जब मेडल जीतकर घर लौटी थी उस दौरान उसका भव्य स्वागत हुआ था और सरकार की तरफ से हर मदद उपलब्ध कराने की घोषणा भी की गई थी. सीता आगे भी एथेलेटिक्स में नाम रौशन करना चाहती हैं. लेकिन इसमें होने वाला खर्च वो सहन नहीं कर पाएंगी. एथेंस भेजते वक्त परिवार ने किसी तरह रुपये जुटाए थे, आर्थिक सहायता ना मिलने से सीता का पूरा परिवार टूट गया है. किरण साहू, सीता की मां ने बताया की बेटा जितेन्द्र साहू चाट का ठेला लगाता है. सीता भी उनकी मदद के लिए घर में समोसे बनाती है. ताकि परिवार का गुजर बसर हो सके. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सीता को आर्थिक सहायता देने की बात कही थी, लेकिन 8 साल बीत जाने के बाद भी वादे अधूरे हैं. 2011 से 2013 तक सीता खूब सुर्खियों में रही, कई मंच पर सम्मान मिला लेकिन इसके बाद आज गुमनामी के अंधेरे में है. यहां इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

(रीवा से विजय कुमार विश्वकर्मा की रिपोर्ट)