आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में एक जरूरी फैसला सुनाया है. 2021 में YSR कांग्रेस पार्टी (YSRCP) के कार्यकर्ताओं द्वारा तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के ऑफिस पर कथित हमले से जुड़े मामले में ये फैसला सुनाया गया है. कोर्ट ने कहा कि आरोपी द्वारा जांच एजेंसी को अपना मोबाइल फोन जमा न करने को गैर-सहयोग (non-cooperation) नहीं कहा जाएगा.
यह घटना 2021 की है, जहां वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से टीडीपी कार्यालय पर हमला किया था. हमले के बाद एक मामला दर्ज किया गया और कई व्यक्तियों पर इसमें शामिल होने का आरोप लगाया गया, जिनमें एन. सुरेश बाबू और अवुतु श्रीनिवास रेड्डी शामिल थे. दोनों को 4 सितंबर, 2024 को गिरफ्तार किया गया और 5 सितंबर, 2024 को ज्यूडिशियल कस्टडी में भेज दिया गया.
राज्य ने उनकी जमानत याचिका का विरोध किया. उन्होंने तर्क दिया कि आरोपियों ने जांच एजेंसी को अपने मोबाइल फोन जमा नहीं किए. इन फोनों की व्हाट्सएप चैट और गूगल टाइमलाइन डेटा के लिए जरूरी था, ताकि जांच में मदद मिल सके.
हाई कोर्ट का फैसला
बेल देते समय, जस्टिस वीआरके कृपा सागर ने कहा कि केवल मोबाइल फोन जमा न करना यह नहीं माना जा सकता है कि कथित आरोपी सहयोग नहीं कर रहा है. जस्टिस वीआरके ने जोर दिया कि जांच एजेंसी अभी भी दूसरे तरीकों से इलेक्ट्रॉनिक सबूत इकट्ठा कर सकती है, भले ही उनके पास आरोपियों के मोबाइल फोन न हों. कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) का भी हवाला दिया. इसके मुताबिक, किसी आरोपी को अपने गैजेट्स या ऑनलाइन अकाउंट के पासवर्ड को देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.
कस्टडी में रहते हुए आरोपी के अधिकार
इस निर्णय ने कस्टडी में रहते हुए व्यक्ति के अधिकारों और कानूनी सिद्धांतों को लेकर फिर से बात छेड़ दी है. कोई भी अगर कस्टडी में है, तो उसके पास अपने कई अधिकार हैं:
1. खुद के विरोध में गवाही न देना (अनुच्छेद 20(3))
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20(3) यह प्रावधान करता है कि किसी भी आरोपी को अपने खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. इसका मतलब यह है कि आरोपी को ऐसा कोई सबूत देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता जो उसके खिलाफ कोर्ट में उपयोग हो सके. मोबाइल फोन जमा न करने या पासवर्ड न देने से इनकार करने का अधिकार आरोपी के पास है. किसी आरोपी को उसके इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को अनलॉक करने या पासवर्ड बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.
2. बेल का अधिकार और ज्यूडिशियल कस्टडी
बेल एक अधिकार है, न कि एक विशेषाधिकार. इसे केवल विशेष परिस्थितियों में ही नहीं दिया जाता है. अगर आरोपी के भागने या सबूत के साथ छेड़छाड़ करने का जोखिम है, तो इस मामले में व्यक्ति को बेल देने इनकार किया जा सकता है.
3. इलेक्ट्रॉनिक सबूत और सीमाएं
आपराधिक मामलों में जांच एजेंसियां अक्सर इलेक्ट्रॉनिक सबूत, जैसे मोबाइल फोन डेटा, लेने का प्रयास करती हैं. हालांकि, एजेंसियों को ऐसे डेटा लेने के लिए कानूनी तरीकों का पालन करना चाहिए, जिससे किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन न हो.
4. हिरासत में रहते हुए दूसरे कानूनी अधिकार
हिरासत में रहते हुए, आरोपी व्यक्ति को कुछ मौलिक अधिकार मिलते हैं. जैसे- गिरफ्तारी किस आधार पर की गई है? मानवीय व्यवहार का अधिकार आदि. इसके अलावा, 24 घंटे से ज्यादा की कस्टडी के लिए मजिस्ट्रेट की स्वीकृति जरूरी होती है.
इस पूरे मामले को इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को जमा न करने से जोड़कर कोर्ट ने जांच के दौरान आरोपी के दायित्वों की सीमाएं बताई हैं. कई बार पुलिस अपनी सीमाएं भूल जाती है, जिसके कारण व्यक्ति के अपने अधिकारों का उल्लंघन होता है. ऐसे में जरूरी है कि सभी को अपने अधिकार पता हों.