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भारत में आम आदमी की मुश्किलें बढ़ा रही है रूस और यूक्रेन की जंग, फ्यूल से लेकर खेती व तकनीक पर भी असर

रूस और यूक्रेन के बीच जंग लगातार जारी है और इसका कोई अंत नहीं दिख रहा है. रूस और यूक्रेन के बीच जंग का आज 41वां दिन है. इस युद्ध का असर सीधा-सीधा देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है.

Representative Image (Photo: India Today) Representative Image (Photo: India Today)
हाइलाइट्स
  • नहीं थम रहा रूस- यूक्रेन का युद्ध

  • देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा असर

रूस और यूक्रेन के बीच पिछले लगभग डेढ महीने से युद्ध जारी है. इस युद्ध से न सिर्फ यूक्रेन में तबाही हो रही है बल्कि रूस सहित दुनिया भर में देशों पर असर पड़ रहा है. भारत भी इससे अछूता नहीं है. वैश्विक स्तर पर अस्थिरता के साथ-साथ भारत की अर्थव्यवस्थी भी इस युद्ध से प्रभावित हो रही है. क्योंकि संसाधनों की आपूर्ति न होने के कारण देश में न चाहते हुए भी महंगाई बढ़ रही है. 

देश में महंगाई का सीधा असर आम लोगों की जेब पर पड़ रहा है. फ्यूल की कीमतों में पिछले 15 दिनों में बहुत ज्यादा उछाल आया है और अगर युद्ध इसी तरह चलता रहा तो सभी चीजों के दामों पर इसका असर पड़ेगा. आज इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कि आखिर कैसे रूस और यूक्रेन का युद्ध भारत के आम आदमी की जेब को प्रभावित कर रहा है. 

लगातार बढ़ रहे पेट्रोल-डीजल के दाम

हम सबको पता है कि विश्व में रूस कच्चे तेल का बड़ा निर्यातक है. पर जिस दिन से यूक्रेन के साथ रूस ने युद्ध छेड़ा है, उसी दिन से यह निर्यात रुक गया है. युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑइल की कीमत 139 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी है. रूस- यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से कच्चे तेल की कीमतों में 20 फीसदी का उछाल आया है. 

जिस कारण देश में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ रहे हैं. क्योंकि भारत लगभग 85% कच्चा तेल दूसरे देशों से आयात करता है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं तो इसका सीधा असर फ्यूल की कीमतों पर पड़ रहा है. 

खाद्य उत्पादों पर भी असर 

युद्ध के कारण सिर्फ फ्यूल ही नहीं बल्कि राशन की आम चीजें जैसे खाने का तेल भी महंगा हो रहा है. क्योंकि देश में करीब 90 फीसदी सनफ्लॉवर तेल रूस और यूक्रेन से आयात होता है. रूस पर लगे प्रतिबंध और यूक्रेन में बिगड़े हालातों के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर गेहूं की आपूर्ति श्रंखला प्रभावित हुई है. 

पूरी दुनिया का करीब एक तिहाई गेहूं रूस और यूक्रेन से आता था. पर अब बहुत से देश गेहूं के लिए भारत से आस लगाए बैठे हैं. और अगर देश के आम आदमी की बत करें तो फ्यूल के दाम बढ़ने से ट्रांसपोर्टेशन महंगा होगा. जिस कारण सभी चीजों की कीमतों में बढोतरी हो सकती है. 

खेती के साथ तकनीक भी प्रभावित

आपको बता दें कि खेती के लिए फर्टिलाइजर के सबसे बड़े निर्यातक रूस, बेलारूस और यूक्रेन हैं. युद्ध के कारण फर्टिलाइजर की आपूर्ति पर भी असर पड़ा है. जिस वजह से फर्टिलाइजर के दाम 50 फीसदी तक बढ़े हैं. भारत सबसे ज्यादा फर्टिलाइजर आयात करता है. लेकिन अब फर्टिलाइजर्स की बढ़ रही कीमतों के कारण भारत सरकार पर सब्सिडी का खर्च बढ़ेगा. 

क्योंकि बढ़ी हुई कीमतों के साथ किसानों के लिए फर्टिलाइजर खरीदना मुमकिन नहीं होगा. खेती के अलावा बात अगर तकनीकी क्षेत्र की करें तो चिप के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले प्रमुख पदार्थ नियोन का बड़ा उत्पादक यूक्रेन है. पर अब यूक्रेन से चिप का निर्यात नामुमकिन है. जिस कारण दुनिया में सेमीकंडक्टर की कमी का संकट पैदा हो गया है. 

आत्मनिर्भरता ही है विकल्प

फिलहाल, भारत सरकार ने अपने लोगों के हितों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए युद्ध पर संतुलित रुख अपनाया हुआ है. पर अभी भी जटिल हथियारों के लिए भारत की रूस पर निर्भरता है. और यह चिंता का विषय है. इसलिए अब न केवल डिफेंस बल्कि हर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की जरूरत है.

देश में सभी किसानों को धीरे-धीरे पर्यावरण के अनुकूल खेती पर फोकस करना चाहिए. ऑर्गेनिक खाद को प्राथमिकता मिलनी चाहिए. साथ ही, सरकार को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों पर भी ध्यान देना होगा.