रूस और यूक्रेन के बीच तीसरे दिन भी युद्ध जारी है. यूक्रेन में बड़ी संख्या में भारतीय और खासकर मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्र वहां फंसे हुए हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यूक्रेन में करीब 18 हजार से ज्यादा भारतीय छात्र-छत्राएं मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब भारत में भी मेडिकल की पढ़ाई होती है तो यूक्रेन में ऐसा क्या खास है कि छात्रों को पढ़ाई करने के लिए वहां जाना पड़ता है?
भारत में करोड़ों रुपये है फीस
देश में हर साल लाखों छात्र नीट की परीक्षा देते हैं. ऐसे में कुछ कटऑफ लिस्ट तो कोई सरकारी कॉलेज में जगह न मिलने के कारण बाहर हो जाते हैं. इस स्थिति में डॉक्टर बनने की इच्छा संजोय छात्रों को निजी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेना पड़ता है, जिसके लिए उन्हें एक करोड़ तक की फीस चुकानी पड़ती है. यह हर किसी के लिए संभव नहीं है और कई छात्र ठगी का भी शिकार हो जाते हैं.
88 हजार सीट पर 8 लाख परीक्षार्थी
भारत में अभी एमबीबीएस (MBBS)की करीब 88 हजार सीटें हैं. इनके लिए 2021 में हुई मेडिकल प्रवेश परीक्षा (NEET) में लगभग 8 लाख से ज्यादा परीक्षार्थी बैठे थे. यानी करीब 7 लाख से ज्यादा परीक्षार्थियों का डॉक्टर बनने का सपना ऐसे हर साल अधूरा रह जाता है.
यूक्रेन में 25 लाख रुपये है फीस
दुनिया के अधिकतर निजी कॉलेज में मेडिकल पढ़ाई का खर्च बहुत ज्यादा होता है. भारत में जहां मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए किसी निजी कॉलेज की फीस एक करोड़ रुपए तक होती है. वहीं अन्य देश जैसे अमेरिका (8 करोड़), ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा में (4 करोड़) का खर्च एमबीबीएस के लिए आता है. जबकि, यूक्रेन में डॉक्टर की डिग्री मात्र 25 लाख रुपए में मिल जाती है.
दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रैक्टिस कर सकते हैं छात्र
इसके अलावा वहां मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए कड़ी परीक्षा या रिश्वत आदि देने का भी झंझट नहीं होता. वहां से पढ़ाई पूरी कर के लौटने के बाद अगर भारत में फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एक्जामिनेशन (FMGE) पास कर लिया जाए, जो भारत में रोजगार के अच्छे अवसर मिलते हैं. यूक्रेन की मेडिकल डिग्री की मान्यता भारत के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ, यूरोप और ब्रिटेन में भी है. यानी यहां से डिग्री पाकर छात्र दुनिया के किसी भी हिस्से में प्रैक्टिस कर सकते हैं.