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Sahitya AajTak 2024: 'क्या गुम हो जाएगी हिंदी/देवनागरी?' भाषा विशेषज्ञों ने साझा किए अपने तर्क...किसी ने चिंता जताई तो किसी ने आशा

Sahitya AajTak 2024 के मंच पर 'क्या गुम हो जाएगी हिंदी या देवनागरी?' सेशन में भाषा कार्यकर्ता, सलाहकार, स्पीकर रिसर्च इनिशिएटिव राहुल देव ने हिंदी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं के भविष्य पर चिंता जाहिर करते हुए अपना मत रखा.

Sahitya Aajtak 2024 Sahitya Aajtak 2024

दिल्ली में जानेमाने लेखकों, साहित्यकारों, हास्य कवि और शायरों को साहित्य आजतक 2024 में मंच से सुनने का मौका मिला. इसी कार्यक्रम के 'क्या गुम हो जाएगी हिंदी या देवनागरी?' सेशन में भाषा कार्यकर्ता, सलाहकार, स्पीकर रिसर्च इनिशिएटिव राहुल देव, भाषा विशेषज्ञ और लेखक, कमलेश कमल, और भाषा विशेषज्ञ व लेखक, प्रो. परिचय दास उपस्थित रहे. इस सेशन का संचालन भाषा विशेषज्ञ व लेखकर डॉ. सुरेश पंत ने किया. 

हिंदी के भविष्य पर जताई चिंता
इस सेशन में भाषा विज्ञानी राहुल देव ने कहा कि आज हम कहीं भी चले जाएं, चाहे वह होटल हो, रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट पर हमें हिंदी कितनी दिखती है? हम सब जानते हैं कि आज हम में से कितनों के बच्चे हिंदी माध्यम से पढ़ रहे हैं. जो लोग खुद हिंदी में काम कर रहे हैं उनके बच्चे भी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रहे हैं. राहुल देव ने कहा, "मैं पिछले 25 साल से चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा हूं कि हिंदी सहित भारत की सारी भाषाएं अपने जीवन के सबसे गहरे संकट में हैं. वे भाषाएं जिन्हें बनने में हजार साल लगे हैं, जिनके पास एक-डेढ़ हजार साल की विरासत है, समृद्धि है, साहित्य है...अगर ऐसे ही चलता रहा तो वह शायद दो पीढ़ियों के भीतर लुप्त हो जाएगी. 

भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रयास  
भारत सरकार की योजनाएं से जुड़े और 'भाषा संशय और शोधन' किताब के लेखक, कमलेश कमल ने राहुल देव के तर्क पर असहमति जताई. उन्होंने कहा कि भाषा बनती, बचती और संवरती है उसके प्रयोक्ताओं से और उसके प्रयोक्ता कोई चंद लोग नहीं होते हैं. अगर हम किसी मॉल में जाकर देखें कि अंग्रेजी भाषा को प्रयोग हो रहा है और हिंदी का भविष्य खतरे में है तो यह सही नहीं है. क्योंकि सिर्फ चंद लोग भाषा नहीं बोलते हैं, आप चाय की टपरी पर जाएं. रेलवे स्टेशनों के छोटे ढाबों या होटलों पर जाएं, वहां लोगों को सुनें. 

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कमलेश कमल ने आगे कहा, "भारत में 2011 की जनसंख्या के आधार पर 70% लोग हिंदी बोलते हैं. दुनिया में 143 करोड़ हिंदी समझते हैं. आप सिनेमा को देख लें, मीडिया को ले लें कि अंग्रेजी चैनल को ज्यादा देखा जाता है या हिंदी चैनल, कौन सी भाषा में अखबार ज्यादा पढ़े जाते हैं. भारत की संपर्क भाषा कल भी हिंदी थी, आज भी हिंदी है. आज भी हिंदी माध्यम के छात्रों की संख्या ज्यादा है, हिंदी प्रयोक्ताओं की संख्या दूसरी भाषाओं से ज्यादा है." 

मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में 
सरकारी स्तर पर बात करते हुए कमलेश कमल ने कहा, "संविधान 343 से 351 तक हिंदी की बात करता है. भारत के चार न्यायालयों में हिंदी में फैसले दिए जा रहे हैं. चिकित्सा और अभियंत्रिकी की पढ़ाई हिंदी में कराने की तैयारी चल रही है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उसके बाद राजस्थान में इसके प्रयास हो रहे हैं. सिविल इंजीनियरिंग का हिंदी शब्दकोष बनाया जा रहा है मैं खुद उसका हिस्सा हूं." कमलेश कमल का कहना है कि बात मानसिक स्तर की है. यह मानना कि इंजीनियरिंग या विज्ञान की पढ़ाई हिंदी में नहीं हो सकती है यह गलत है. जब जैपनीज, जर्मन, मैंडरिन, रशियन समेत कई भाषाओं में पढ़ाई हो सकती तो हिंदी में हो सकती है. 

अमेरिका के एक वैज्ञानिक ने कहा कि देवनागरी लिपि कंप्यूटर और विज्ञान के लिए सबसे उपयुक्त है. उन्होंने कहा कि सिस्टम में सुधार की जरूरत है, संसाधनों की कमी हो सकती है लेकिन भारत में प्रयास हो रहे हैं. उन्होंने केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, शब्द सिंधू परियोजना का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर, गूगल पर हिंदी में सामग्री बढ़ी है, सिनेमा में हिंदी कंटेट बढ़ा है. आपके या हमारे द्वारा कुछ तर्क गढ़ देने से हिंदी कमतर नहीं होगी. 

हिंदी की त्रुटियों पर ध्यान देने की है जरूरत 
भाषा विज्ञानी और लेखक, प्रोफेसर परिचय दास ने हिंदी की दृश्यता पर बात करते हुए कहा कि लोग आज भी हिंदी में सोच रहे हैं. बात स्मृति की है...जिस भाषा में स्मृति बची रहेगी, उस भाषा के लुप्त होने का खतरा नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर भी सामग्री हिंदी में ही ज्यादा है. दिल्ली, बैंगलोर, मुंबई और कोलकाता से बाहर निकलकर अगर मेरठ, लखनऊ, आजमगढ़ आदि में जाएंगे तो रचनात्मक हिंदी देखने को मिलगी. लेकिन हमें चैनलों पर और अखबारों में हो रहीं हिंदी त्रुटियों पर ध्यान देने की जरूरत है. 

वहीं, राहुल देव ने कमलेश कमल और प्रोफेसर दास की बातों के जबाव में कहा कि यह अच्छी बात है कि हिंदी में इंजीनियरिंग की धाराओं सिविल और इलेक्ट्रिकल में प्रथम वर्ष के लिए किताबें तैयारी हो चुकी हैं. लेकिन कुछ संस्थानों को छोड़कर कहीं भी हिंदी या भारतीय भाषाओं में पढ़ाई सुचारू रूप से शुरू नहीं हुई है. छात्र ही नहीं पढ़ रहे. हिंदी का संकट सारी भाषाओं का संकट है.