अमेरिका में लंबे समय के बाद समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को मान्यता देने वाले एक बिल को मजूरी दी गई है. अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने मंगलवार को एक विधेयक पारित किया जो समलैंगिक विवाह के लिए संघीय सुरक्षा प्रदान करेगा. इस निर्णय के बाद अमेरिका में समलैंगिक समुदाय अपनी जीत की खुशी मना रहा है.
बताया जा रहा है कि रेस्पेक्ट फॉर मैरिज एक्ट को मंजूरी दिलाने के लिए डेमोक्रैट्स (Democrats) 267 वोट डाले. लेकिन सीनेट में इसकी संभावनाएं अनिश्चित हैं. 47 रिपब्लिकन सांसद बिल के लिए मतदान में डेमोक्रेट्स के साथ शामिल हुए. बता दें कि डेमोक्रेट्स के पास 100 सदस्यीय सीनेट में 50 सीटें हैं और सीनेट में इस बिल को पास कराने के लिए 10 रिपब्लिकन वोटों की जरूरत होगी.
भारत में क्या है स्थिति
अब लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि समलैंगिक विवाह के मामले में भारत में कानून क्या कहते हैं? क्या भारत में समलैंगिक विवाह को मान्यता है? या अभी इसके लिए और लड़ाई लड़ी जानी बाकी है.
दुनिया के बहुत से देशों की तरह ही, भारत में भी समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी गई है. लेकिन साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया. जिसके बाद देश में LGBTQ+ समुदाय को काफी मजबूती मिली है. इसके बाद कई एलजीबीटीक्यू जोड़ों ने अपने रिश्ते को "आधिकारिक" बनाने के लिए शादी या शादी जैसे समारोह आयोजित किए हैं.
यह सच है कि भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है. लेकिन इसे प्रतिबंधित करने वाला कोई वैधानिक या संवैधानिक प्रावधान भी नहीं है.
समाज की नजरों में शादी, पर ऑफिशियल नहीं
भारत में साल 2018 के बाद कई समलैंगिक शादियां हुई हैं. जिनमें हाल ही में हुई अभिषेक रे और चेतन शर्मा की शादी इंटरनेट पर काफी वायरल रही. ब्रुट इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में इस जोड़ी ने कहा कि कानून की नजरों में उनकी शादी की कोई मान्यता नहीं है. लेकिन उन्होंने अपनी खुशी के लिए यह किया है.
हालांकि, देश में कई बार ऐसा हुआ है जब समलैंगिक जोड़ों के सपोर्ट में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट आया है. खासकर, जब समलैंगिक जोड़ो को अपने परिवारों या समाज द्वारा परेशान किया जाता है. केरल में नसरीन और नूरा के मामले में भी कोर्ट ने हस्तक्षेप करके, दोनों लड़कियों को साथ में रहने की इजाजत दी और साथ ही, सुरक्षा प्रदान की.
बदलाव की राह पर भारत
समलैंगिक जोड़ों को अधिकारों और सुरक्षा की गारंटी देने के लिए देश को अभी भी लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन भारत में 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद LGBTQ+ समुदाय के लिए अच्छे बदलाव हुए हैं.
इस फैसले ने औपनिवेशिक दौर के कानून को खारिज किया, जिसमें समलैंगिकता अपराध की केटेगरी में शामिल था. 2018 के फैसले को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने नोट किया था: "अधिकारों का कोई प्रतिगमन नहीं होना चाहिए. एक प्रगतिशील और निरंतर सुधार वाले समाज में पीछे हटने के लिए कोई जगह नहीं है. समाज को आगे बढ़ना है."
समाज कितना आगे बढ़ गया है, यह बहस का विषय है. लेकिन जहां समलैंगिक संबंधों को अपराधी माना जाता है वहां अब अदालतें मदद की पेशकश कर सकती हैं.