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SC ने सेफ Abortion को बताया महिलाओं का अधिकार, जानिए गर्भपात के कानूनी हक के लिए France में लड़ाई की कहानी

भारत में गर्भपात का कानून उस वक्त बना था, जब दुनिया के बड़े और विकसित देश इसके लिए संघर्ष कर रहे थे. स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसा नारा देने वाले फ्रांस की महिलाएं अबॉर्शन अधिकार के लिए अभी अंगड़ाई ले रही थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने सेफ अबॉर्शन को महिलाओं का अधिकार बताया सुप्रीम कोर्ट ने सेफ अबॉर्शन को महिलाओं का अधिकार बताया
हाइलाइट्स
  • SC ने सेफ Abortion को बताया महिलाओं का अधिकार

  • 1971 में भारत में गर्भपात को लेकर कानून बना था

सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट को अविवाहित महिलाओं तक बढ़ा दिया है. SC ने सेफ अबॉर्शन को महिलाओं का अधिकार बताया. चाहे महिला विवाहित हो या अविवाहित. कोर्ट ने एक अविवाहित महिला के 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने के लिए एम्स के मेडिकल बोर्ड के गठन करने का आदेश दिया है. अगर महिला को कोई खतरा नहीं होगा तो उसका अबॉर्शन कराया जाएगा. इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला के गर्भपात की इजाजत नहीं दी थी. दरअसल महिला अविवाहित है. वह लिव इन में रह रही थी. इस दौरान वो गर्भवती हो गई थी.

दुनिया के कई देशों में अबॉर्शन जायज-
दुनिया के सिर्फ 41 देशों में गर्भपात को महिलाओं के लिए संवैधानिक अधिकार माना गया है. जिसमें फ्रांस, रूस, स्वीडन, स्विटरलैंड, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं. कई देशों में कुछ शर्तों के साथ अबॉर्शन कानून तौर पर जायज है. हालांकि कई देश ऐसे भी हैं, जहां गर्भपात कानूनी तौर पर बैन है.

फ्रांस में महिलाओं की लड़ाई-
वैसे तो दुनियाभर में महिलाओं ने अबॉर्शन के कानून हक के लिए बड़ी लड़ाइयां लड़ी हैं. लेकिन 1970 के दशक में फ्रांस में महिलाओं ने जो तरीका अपनाया. वो अपने आप में अनोखा था. फ्रांस में गर्भपात पर जेल की सजा थी. महिलाएं अबॉर्शन राइट्स के लिए लड़ रही थी. साल 1971 में महिलाओं ने मेनिफेस्टो तैयार किया. इस मेनिफेस्टो पर 343 महिलाओं ने सिग्नेचर किया. इन महिलाओं ने गैर-कानूनी ढंग से गर्भपात कराने की बात स्वीकार की.

अखबार ने उड़ाया मजाक, महिलाओ ने बनाया मेनिफेस्टो-
महिलाओं के इस मेनिफेस्टो की खूब आलोचना हुई. फ्रांस के लेफ्ट लिबरल अखबार ने 'हू गॉट द 343 स्लट्स/बिचेज फ्रॉम द अबॉर्शन मेनिफेस्टो, प्रेग्नेंट' हेडलाइन के साथ खबर छापी. इस खबर के बाद महिलाओं का हौसला और बढ़ गया. महिलाओं ने इसे ही अपना मेनिफेस्टो का नाम बना लिया. इसे ले नोवेल ऑब्जर्वेटर में छापा गया था. महिलाओं के इस मेनिफेस्टो को इतिहास 'मेनिफेस्टो ऑफ 343 स्लट्स' के नाम से जानता है.

आंदोलन को मिला समर्थन-
महिलाओं के गर्भपात के अधिकारी की मांग को समर्थन मिलने लगा.  331 डॉक्टरों ने भी अपना समर्थन दिया. डॉक्टरों ने कहा कि हम गर्भपात से आजादी चाहते हैं. यह पूरी तरह से महिला का फैसला है. हम किसी भी इकाई को अस्वीकार करते हैं जो उसे अपना बचाव करने के लिए मजबूर करती है, अपराधबोध का माहौल कायम रखती है और छिपकर गर्भपात को जारी रखने की अनुमति देती है. ये मेनिफेस्टो साल 1972 आते-आते एक आंदोलन में बदल गया. आखिरकार साल 1975 में गर्भपात के अधिकार वाला कानून बनाया गया.

भारत में गर्भपात कानून-
भारत में पहली बार साल 1971 में गर्भपात कानून पारित किया गया. जिसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी यानी एमटीपी अधिनियम 1971 नाम दिया गया. उस वक्त दुनिया के प्रगतिशील देशों में भी ऐसा कानून नहीं था. इसके बाद फ्रांस जैसे देश में महिलाओं ने अबॉर्शन कानून के लिए लड़ाई लड़ी. हालांकि उसके बाद से अब तक इस कानून में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. अब नए कानून में कुछ शर्तों के साथ गर्भपात की समय सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दी गई है.

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