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Sela Tunnel: LAC के पास PM मोदी ने किया सेला टनल का उद्घाटन, Tawang को हर मौसम में मिलगी कनेक्टिविटी, Indian Army नहीं बर्दाश्त करेगी ड्रैगन की गुस्ताखी

PM Modi Inaugurate Sela Tunnel: सेला दर्रे के पास सुरंग नहीं होने के कारण हर साल भारी बारिश, बर्फबारी और भूस्खलन के बाद आवागमन बंद हो जाता था. अब सेला सुरंग से आवाजाही हो सकेगी. इस सुरंग का उद्देश्य एलएसी पर सेना की ताकत को और बढ़ाना है. 

PM Modi Inaugurate Sela Tunnel PM Modi Inaugurate Sela Tunnel
हाइलाइट्स
  • 13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है सेला सुरंग 

  • इतनी ऊंचाई पर बनाई गई दुनिया की सबसे लंबी दो लेन की है सुरंग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर पहुंचे. यहां पीएम मोदी का सीएम पेमा खांडू ने उपहार देकर स्वागत किया. यहां पीएम मोदी ने दुनिया की सबसे ऊंचाई पर बनी सेला टनल का उद्घाटन किया. इसके अलावा उन्होंने पूर्वोत्तर में कई परियोजनाओं की आधारशिला रखी.

सेला सुरंग वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास है. यही वजह है कि यह सुरंग रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है. इससे भारतीय सेना चीन की किसी भी गुस्ताखी का मुंह तोड़ जवाब देगी. हमारे जवान गोला-बारूद लेकर तुरंत बॉर्डर पर पहुंच जाएंगे. सेला टनल अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामिंग और तवांग जिले को जोड़ेगा. एलएसी तक पहुंचने के लिए यह एक मात्र रास्ता है.

पीएम मोदी ने लोगों को किया संबोधित
पीएम मोदी ने सेला टनल का उद्घाटन करने के बाद लोगों को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि पूरे पूर्वोत्तर में चार गुणा तेजी से विकास कार्य चल रहा है.पूरे देश में विकसित राज्य से विकसित भारत का राष्ट्रीय उत्सव तेज गति से जारी है.आज मुझे विकसित पूर्वोत्तर के इस उत्सव में, पूर्वोत्तर के सभी राज्यों के साथ एक साथ हिस्सेदार बनने का अवसर मिला है. पूर्वोत्तर के विकास के लिए हमारा विजन अष्टलक्ष्मी का रहा है. दक्षिण और पूर्वी एशिया के साथ  भारत के ट्रेड, टूरिज्म और दूसरे रिश्तों की एक मजबूत कड़ी हमारा नार्थ ईस्ट बनने जा रहा है. आज यहां एक साथ 55 हजार करोड़ रुपए से अधिक के प्रोजेक्ट्स का लोकार्पण या शिलान्यास हुआ है.

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कांग्रेस पर साधा निशाना
पीएम मोदी ने 'मोदी की गारंटी' का मतलब भी बताया. उन्होंने कहा कि 'मोदी की गारंटी' क्या है, ये आपको अरुणाचल में साक्षात नजर आएगा. मैंने सेला टनल का शिलान्यास का काम शुरू किया था. आज उसका लोकार्पण हो रहा है, क्या ये पक्की गारंटी नहीं है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने तो बॉर्डर के गांवों को भी नजरअंदाज कर रखा था. देश का आखिरी गांव कहकर हाशिए पर छोड़ रखा था, लेकिन मेरे लिए तो ये प्रथम गांव है. हमने इन्हें आखिरी गांव नहीं, इसे प्रथम गांव माना और बाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम शुरू कर दिया.

एलएसी पर सेना की बढ़ेगी और ताकत
सेला दर्रे के पास सुरंग नहीं होने के कारण भारी बारिश, बर्फबारी और भूस्खलन के बाद बालीपारा-चारिदवार-तवांग रोड लंबे समय तक हर साल बंद हो जाता है. सेला सुरंग से अब आवाजाही हो सकेगी. इस सुरंग का उद्देश्य एलएसी पर सेना की ताकत को और बढ़ाना है. यह भारत-चीन सीमा पर मौजूद अग्रिम इलाकों में सैनिकों, हथियारों और मशीनरी की त्वरित तैनाती सुनिश्चित करेगी. चीन की ओर सीमावर्ती इलाकों में बढ़ते निर्माण कार्यों के मद्देनजर इसे भारत के लिए काफी अहम माना जा रहा है.

10 KM कम होगी तवांग से चीन सीमा तक की दूरी
सेला सुरंग के पूरा बनने के बाद तवांग के जरिए चीन सीमा तक की दूरी 10 किलोमीटर तक घट जाएगी. इसके अलावा असम के तेजपुर और अरुणाचल के तवांग में सेना के जो चार कोर मुख्यालय स्थित हैं, उनके बीच की दूरी भी करीब एक घंटे कम जाएगी. इस सुरंग की वजह से बोमडिला और तवांग के बीच 171 किलोमीटर की दूरी काफी सुलभ बन जाएगी और हर मौसम में कम समय में वहां जाया जा सकेगा.

दो लेन की है सुरंग 
13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित सेला सुरंग अरुणाचल प्रदेश के तवांग को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करेगी. तवांग चीन की सीमा से लगा हुआ है. ये इतनी ऊंचाई पर बनाई गई दुनिया की सबसे लंबी दो लेन की सुरंग है. पहली 980 मीटर लंबी सिंगल-ट्यूब सुरंग है और दूसरी 1555 मीटर लंबी ट्विन ट्यूब सुरंग है. इसमें आपात स्थिति के लिए एक एस्केप ट्यूब भी मौजूद है.

सेला सुरंग देश की रक्षा तैयारियों को बढ़ावा तो देगी ही इसके साथ ही आसपास के सामाजिक-आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा. इस सुरंग से हरर दिन 3,000 कारें और 2,000 ट्रकों आसानी से आ-जा सकते हैं. सुरंग से ये अधिकतम 80 किमी प्रति घंटा से रफ्तार भर सकते हैं. ये ट्विन सुरंगें सेला के पश्चिम में 2 चोटियों से होकर गुजरती हैं. इस परियोजना में 8.6 किमी लंबी 2 सड़कें भी शामिल हैं.

2019 में पीएम मोदी ने रखी थी आधारशिला
पीएम मोदी ने सेला सुरंग परियोजना की नींव फरवरी 2019 में रखी थी. इसकी लागत 697 करोड़ रुपए आंकी गई थी. हालांकि COVID-19 महामारी सहित विभिन्न कारणों से इसके काम में देरी हुई. 1962 में चीनी सैनिक इस क्षेत्र में भारतीय सेना के साथ भिड़ गए थे और उस वर्ष 24 अक्टूबर को तवांग शहर पर कब्जा कर लिया था.