आजादी के बाद से भारत कई बार युद्ध में पाकिस्तान को हरा चुका है. 1971 के युद्ध में भारत ने पाक के सैनिकों को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया था. भारतीय सेना ने पाकिस्तान को न केवल युद्ध में धूल चटाई, बल्कि पाकिस्तान को दो टुकड़े कर डाले. उस समय पूर्वी पाकिस्तान कहा जाने वाला हिस्सा, बांग्लादेश नाम से एक अलग देश के रूप में अस्तित्व में आया. इस युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच आज ही के दिन 2 जुलाई 1972 को शिमला में एक समझौता हुआ था. आइए आज जानते हैं उस समझौते की कहानी.
पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने किया था आत्मसमर्पण
दिसंबर 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने लेप्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण किया था. इसके बाद बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र देश बना था. पाकिस्तान केवल पश्चिमी पाकिस्तान का हिस्सा ही रह गया था. इस जीत के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दुनिया में एक ताकतवर नेता के रूप में उभरी थीं. अमेरिका ने भारत को और ज्यादा गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था.
क्या है शिमला समझौता
1972 में हिमाचल प्रदेश के शिमला में भारत और पाकिस्तान के बीच 28 जून से वार्ता शुरू हुई और 1 जुलाई तक कई दौर की वार्ता हुई. उद्देश्य, कश्मीर से जुड़े विवादों को आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण ढंग से हल निकालना था. दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे रहें, इसके लिए भी कई कदम उठाए जाने को लेकर दोनों देश राजी हुए थे. 2 जुलाई 1972 को दोनों देशों के बीच समझौता हुआ. इसे ही शिमला समझौता के नाम से जाना जाता है. शिमला समझौता में भारत की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान की तरफ से जुल्फिकार अली भुट्टो शामिल हुए थे.
शिमला समझौता के मुख्य बिंदु
1. इस समझौते में सहमति बनी थी कि कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जितने भी विवाद हैं, उनका हल शांतिपूर्ण ढंग से बातचीत कर निकाला जाएगा.
2. दोनों देशों के बीच भविष्य में जब भी बातचीत होगी कोई मध्यस्थ या तीसरा पक्ष नहीं होगा.
3. समझौते में युद्ध बंदियों की अदला-बदली की भी बात कही गई थी. यानी कि युद्ध के दौरान बंदी बनाए गए सैनिकों को उनके देश को सौंप दिया जाएगा.
4. 1971 के युद्ध में भारत द्वारा कब्जा की गई पाकिस्तान की जमीन भी वापस कर दी गई.
5. दोनों देशों ने तय किया कि 17 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनाएं जिस स्थिति में थी, उस रेखा को वास्तविक नियंत्रण रेखा माना जाएगा.
6. दोनों ही देश इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेंगे.
7. आवागमन की सुविधाएं स्थापित की जाएंगी ताकि दोनों देशों के लोग आसानी से आ-जा सकें.
8. दोनों देशों में फिर से व्यापार शुरू करने की बात कही गई थी.
9. इस समझौते में इस बात पर भी सहमति बनी थी कि दोनों ही देशों की सरकारें एक दूसरे देश के खिलाफ प्रचार को रोकेंगी.
पाकिस्तान नहीं हुआ सफल
पाकिस्तान शिमला समझौते का बार-बार उल्लंघन करता हुए दिखाई दिया. लेकिन तब से कई दशकों तक तमाम कोशिशों के बावजूद भी पाकिस्तान फिर कभी भी कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में सफल नहीं हुआ. 1989 से पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद को प्रयोजित करता रहा, लेकिन उससे भी उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सफलता नहीं मिली.
सीजफायर का करता रहता है उल्लंघन
1971 युद्ध में मुंह की खाने के बाद भी पाकिस्तान की सेना ने 1999 में कारगिल में घुसपैठ कर भारतीय सेना को युद्ध के लिए मजबूर किया. इस बार भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब मिला. भारतीय सेना ने उसे एक बार फिर धूल चटाई. अभी भी पाकिस्तान की आदत नहीं गई है. अक्सर वह सीजफायर का उल्लंघन करता रहा है. आतंकी घुसपैठ की भी कोशिशें होती रही हैं. हालांकि सेना अक्सर उन्हें कामयाब नहीं होने देती.
भारत ने कड़ा रुख अपनाया
साल 2008 में 26 नवंबर को मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया और उससे बातचीत बंद कर दी. 2014 के बाद से भाजपा सरकार ने पहले बातचीत के कुछ प्रयास किए लेकिन फिर दोनों देशों के बीच संबध ठंडे हो गए. 2019 में पुलवामा हमले और फिर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से दोनों देशों के बीच तल्खी और बढ़ गई. 2021 में जब भारत ने धारा 370 को खत्म कर दिया तब से माना जा रहा है शिमला समझौता का कोई औचित्य नहीं रह गया है, लेकिन उसके ऐतिहासिक महत्व को खारिज नहीं किया जा सकता है.