यूक्रेन और रूस के बीच बढ़ रही जंग ने कई भारतीय परिवारों में भी मायूसी ला दी है. हजारों भारतीय छात्र अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं, जिन्हें लाने का सिलसिला जारी है. बीते दिन भारत सरकार के 'ऑपरेशन गंगा' के तहत यूक्रेन से लगभग 200 छात्रों और भारतीय नागरिकों को निकालकर भारत वापस लाया गया. पिछले 7 दिन से माता-पिता अपने बच्चों को जिन हालातों में सुन रहे थे वह बच्चे अब सुरक्षित वतन लौट आएं हैं.
बच्चों के वापस लौटते ही हर माता-पिता की आंखें नम थी. सभी लोग बेहद ही सामान्य घरों से लग रहे थे. ऐसे भी परिवार थे जिन्हें देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि इनके लिए अपने बच्चों को विदेश में पढ़ाना काफी मुश्किल रहा होगा. इस दौरान हमारी टीम ने कुछ पेरेंट्स से बातचीत भी की, जिसमें उन्होंने बताया कि उनके लिए अपने बच्चों की फीस जुटा पाना कितना मुश्किल भरा रहा है.
विदेश में पढ़ाना नहीं है आसान - पिता
भानू प्रताप सिंह अपनी पत्नी और छोटे भाई के साथ एयरपोर्ट पहुंचे थे. भानू प्रताप अलीगढ़ में प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करते हैं. इनकी बेटी उर्वशी राजपूत उकरकीन में मेडिकल की स्टूडेंट है. वो अब दिल्ली लौट आई है. भानू प्रताप बताते हैं कि बेटी के एक साल का 9.5 लाख रुपये का खर्चा है. इसके अलावा 30 हजार से ज्यादा केवल खाने-पीने में खर्च होता है. उन्होंने बताया कि एक बेटा और भी वह भी फार्म कर रहा है, उसकी भी मोटी फीस भरनी होती है.
भानू प्रताप आगे बताते हैं कि उनकी बेटी पढ़ने में होशियार है इसलिए उसकी पढ़ाई से कोई समझौता नहीं किया. पढ़ाई के लिए काफी पैसा जोड़ रखा था फिर भी बेटी के लिए रिश्तेदारों से पैसे उधार लेने पड़े. अपने बेटी को देख दोनों की ही आखों में नमी थी, उनको खुशी है कि उनकी बेटी अपने घर वापस लौट आई है.
रिटायरमेंट के पैसों से हो रही बेटे की पढ़ाई
एयरपोर्ट पर मौजूद बुजुर्ग शैलजा गाजियाबाद की रहने वाली हैं. इनका इकलौता बेटा मानस यूक्रेन में युद्ध के बीच फंसा हुआ था. वो अपने भतीजे के साथ मानस को लेने एयरपोर्ट पहुंची. शैलजा बताती हैं कि वो और उनके पति दोनों सरकारी नौकरी से रिटायर हुए हैं.मानस इकलौता बेटा है इसलिए उसकी पढ़ाई के लिए पैसों का इंतज़ाम करने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई, हालांकि रिटायरमेंट में मिले पैसों से ही मानस की पढ़ाई हो रही है.
मानस एमबीबीएस थर्ड ईयर के स्टूडेंट हैं. उनकी पढ़ाई में अब तक 25 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं. हर महीने रहने खाने और खर्च के लिए मानस को 50 हजार भेजे जाते हैं. रकम छोटी नहीं है लेकिन, फिर भी आज उनकी मां संतुष्ट हैं कि उनका बेटा वापस सुरक्षित आ रहा है. भविष्य के सवाल पर वो कहती हैं कि सरकार से उम्मीद है, इतने सारे स्टूडेंट हैं कुछ न कुछ तो हल निकलेगा.
ये भी पढ़ें: