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Sonali Banerjee: बचपन में देखा था जहाज पर काम करने का सपना, इसको पूरा करने का बना लिया जुनून, बनी गईं देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर

सोनाली बनर्जी को मरीन इंजीनियर बनने की प्रेरणा उन्हें अपने चाचा से मिली थी. उनके चाचा नौसेना में थे, जिनसे बात करके वह भी जहाजों पर रहकर काम करने के बारे में सोचा करती थीं. उनका सपना उस समय पूरा होता दिखा, जब उन्होंने 1995 में आईआईटी का एंट्रेंस एग्जाम पास कर मरीन इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया.

देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर सोनाली बनर्जी (फाइल फोटो) देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर सोनाली बनर्जी (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • सोनाली बनर्जी 27 अगस्त 1999 को बनी थीं भारत की पहली महिला मरीन इंजीनियर

  • इस क्षेत्र में करिअर चुनने से उनके पिता भी हो गए थे नाराज

आज हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं. महिलाएं देश की रक्षा में भी अपना योगदान दे रही हैं. मरीन क्षेत्र में भी काम कर रहीं हैं लेकिन सालों पहले ऐसा नहीं था. कोई महिला एक मरीन इंजीनियर के तौर पर करियर बनाने के बारे में सोचती भी नहीं थी. ऐसे समय में सोनाली बनर्जी ने न सिर्फ मरीन इंजीनियर बनने के बारे में सोचा बल्कि तमाम वर्जनाओं को दरकिनार करते हुए अपने इस सपने को सच भी कर दिखाया. 27 अगस्त 1999 को वह भारत की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनी थीं.

सोनाली के चाचा थे नौसेना में 
सोनाली का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहबाद में हुआ था. वे बचपन से ही समंदर और जहाजों से आकर्षित होती थीं. तभी से वे सारी दुनिया की सैर करना चाहती थीं. मरीन इंजीनियर बनने की प्रेरणा उन्हें अपने चाचा से मिली. सोनाली के चाचा नौसेना में थे, जिनसे बात करके वह भी जहाजों पर रहकर काम करने के बारे में सोचा करती थीं. उनका यह ख्वाब उस वक्त सच हुआ जब उन्होंने 1995 में आईआईटी का एंट्रेंस एग्जाम पास किया और मरीन इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया.

टीचर्स ने हमेशा आगे बढ़ने के लिए किया प्रोत्साहित 
सोनाली के इस क्षेत्र को अपना करिअर चुनने से उनके पिता भी नाराज थे लेकिन सोनाली ने जो सोचा, वो करके दिखाया. हालांकि सोनाली के लिए पुरुषों के क्षेत्र में काम करना इतना आसान नहीं रहा. यहां तक कि उनके साथ पढ़ने वाले कई लड़के भी उनका हौसला कम करने की कोशिश करते थे. लेकिन उनके टीचर्स ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.

मरीन इंजीनियर बनने के समय उम्र थी 22 साल 
सोनाली ने कोलकाता के निकट तरातला स्थित मरीन इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (एमईआरआई) से कोर्स पूरा किया. बताया जाता है कि 1949 में भी एक महिला ने मरीन इंजीनियरिंग में दाखिला लिया था, लेकिन किन्हीं वजहों से कोर्स बीच में ही छोड़ दिया था. सोनाली जिस वक्त मरीन इंजीनियर बनीं उस वक्त उनकी उम्र केवल 22 साल थी.

1500 कैडेट्स में थीं अकेली महिला
सोनाली ने एमईआरआई में दाखिला तो ले लिया, लेकिन अकेली महिला स्टूडेंट होने के कारण कॉलेज के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई. कॉलेज प्रशासन को समझ नहीं आ रहा था कि वो एक अकेली महिला स्टूडेंट को आखिर कहां रखेगा. तब तमाम डिबेट और विचार-विमर्श के बाद उन्हें अधिकारियों के क्वार्टर में रहने की जगह दी गई. सोनाली 1500 कैडेट्स में अकेली महिला कैडेट थीं. 27 अगस्त, 1999 को वह भारत की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनकर एमईआरआई से बाहर निकलीं.

इन देशों में की ट्रेनिंग पूरी
कोर्स पूरा होने के बाद मोबिल शिपिंग को की ओर से सोनाली का 06 महीने के प्री-सी कोर्स के लिए चयन किया गया. इस दौरान उन्होंने सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, हॉगकॉग, फिजी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपनी ट्रेनिंग पूरी की. यह समय उनके लिए काफी कठिन था, क्योंकि इस दौरान वो घर परिवार से मीलों दूर थीं. ऐसी तमाम दिक्कतों का सामना करते हुए आखिरकार वो अपने लक्ष्य तक पहुंच ही गईं. 26 अगस्त 2001 को मोबिल शिपिंग कंपनी के इस छह महीने के कोर्स को पूरा कर सोनाली ने इतिहास बना दिया. अब सोनाली को किसी भी जहाज के मशीन रूम में एंट्री करने का अधिकार मिल चुका था.