क़िस्मत मे है जो लिखा, वो आखिर होकर रहता हैं, चंद लकीरें उलझी सी, हाथों में रखा ही क्या है. दोस्तों कहते हैं तकदीर में जो लिखा होता है, वो आखिरकार होकर रहता है. शुरुआत में ये रास्ते भले ही किसी और मंजिल की ओर जाते दिखे, पर अंत आते-आते वहीं मंजिल आ जाती है, जो तकदीर में लिखी होती है. दोस्तों सोनिया गांधी की जिंदगी भी कुछ ऐसी ही थी. सोनिया गांधी का जन्म 9 दिसंबर को इटली के लुइसियाना में हुआ था.
ये बात बहुत कम लोग जानते होंगे पर आज राजनीति की दुनिया का इतना बड़ा नाम सोनिया गांधी, कभी भी राजनीति में कदम नहीं रखना चाहती थीं. हालांकि उसके बाद भी वो राजनीति में आईं और एक ऐसा चेहरा बन गई, कि जब भी भारत की राजनीति के बड़े चेहरों को याद किया जाएगा, सोनिया जरूर ही उसका हिस्सा होंगी.
रोमांस से शुरू हुआ भारत से रिश्ता
इटली के एक छोटे से गांव की एक साधारण सी लड़की के भारत के सबसे बड़े राजनीतिक घराने की बहू बनने की कहानी किसी परी कथा से कम नहीं है. सोनिया एंटोनियो मायनो का इस देश से रिश्ता एक रोमांस से शुरू हुआ था. तीन बेटियों में दूसरी सोनिया, पाओला और स्टेफानो के घर इटली के ट्यूरिन शहर के बाहरी इलाके ओरबैसानो में पैदा हुई थी. पिता ने बेटियों को बिल्कुल पारंपरिक ढंग से पाला पोसा. रोकटोक के बावजूद सोनिया के पिता आधुनिक सोच रखते थे. वहीं सोनिया को अंग्रेजी सीखनी थी जिसके लिए उन्होंने अपने पिता से इंग्लैंड जाने की इजाजत मांगी. सो इजाजत मिल गई और सोनिया कैंब्रिज पहुंच गईं.
राजीव से कुछ यूं हुई थी पहली मुलाकात
यहां से सोनिया की जिंदगी में कुछ अलग होना लिखा था. सोनिया को भारत के बारे में ज्यादा कुछ भी नहीं पता था. शायद सोनिया की किस्मत में हिंदुस्तान की खोज किसी और ढंग से होनी लिखी थी. कैंब्रिज के एक ग्रीक रेस्टोरेंट वार्सिटी में दोपहर को छात्र खाने-पीने पहुंचते थे. वार्सिटी का मालिक चार्ल्स एंटोनी राजीव गांधी का गहरा दोस्त था. सोनिया और राजीव की पहली मुलाकात भी इसी रेस्तरां में हुई था.
दरअसल हुआ यूं कि जब राजीव गांधी इंजीनियरिंग का ट्राइपोस कोर्स करने कैंब्रिज गए तो वहां 1965 में उनकी मुलाकात सोनिया गांधी से हुई और देखते ही उन्हें उनसे प्यार हो गया. जब राजीव कैंब्रिज में पढ़ते थे तो अपना खर्चा चलाने के लिए वो आइसक्रीम बेचा करते थे और सोनिया से मिलने साइकिल पर जाया करते थे. हालांकि उनके पास एक पुरानी फॉक्सवैगन हुआ करती थी जिसके पेट्रोल का खर्चा उनके दोस्त 'शेयर' करते थे."
राजीव और सोनिया का रिश्ता इसी रेस्तरां से शुरू से हुआ, जो एक अटूट बंधन में बंध गया. हर प्रेम कहानी की तरह राजीव और सोनिया की जिंदगी में भी कई उतार-चढ़ाव आए. दोनों ने जब शादी का फैसला किया तो उनके परिवारों के लिए इस फैसले को मानना आसान नहीं था. राजीव जहां भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे थे, तो वहीं सोनिया एक साधारण से परिवार की लड़की थी.
सोनिया के पिता को मंजूर नहीं था रिश्ता
सोनिया के पिता को ये रिश्ता बिलकुल मंजूर नहीं था, अपनी प्यारी सी बेटी को वो एक अलग देश में भेजना नहीं चाहते थे. उनको इस बात का डर था कि भारत के लोग सोनिया को कभी स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन सोनिया और राजीव के प्यार के आगे सबको झुकना पड़ा और आखिर राजीव से मिलने के बाद सोनिया के पिता ने शादी के लिए हामी भर दी. शादी से पहले सोनिया को भारत आना था. इंदिरा गांधी उस वक्त प्रधानमंत्री थीं, इसलिए बिना शादी के सोनिया को घर में रखना सही नहीं समझा, तो सोनिया के रहने का इंतजाम अमिताभ बच्चन के घर करवाना पड़ा. उस वक्त अमिताभ और राजीव जिगरी दोस्त हुआ करते थे. 13 जनवरी 1968 को सोनिया दिल्ली पहुंचीं और अमिताभ के घर में रहने लगीं, जहां उन्हें भारतीय रीति रिवाजों को जानने का मौका मिला.
सियासी करियर में आए कई उतार-चढ़ाव
सोनिया और राजीव की जिंदगी के शुरुआती 13 साल कई सियासी उतार-चढ़ावों से होकर गुजरे क्योंकि पूरा परिवार एक के बाद एक दुखद घटनाओं से जूझ रहा था. पहले विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मौत, उसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या और सात साल बाद खुद राजीव गांधी की हत्या. हर बार सोनिया को शिद्दत से ये एहसास हो रहा था कि ये राजनीति ही थी जो राजीव और उनकी जिंदगी की दुश्मन साबित हुई थी, पर विकल्प कोई नहीं था. उसके बाद सोनिया काफी मजबूत बनकर निकली, और राजनीति की दुनिया में काफी नाम कमाया.