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Exclusive: कहानी उस दिव्यांग बॉडी बिल्डर की, जिसने पैर में 32 टांके होने का बाद भी जीती प्रतियोगिता...दर्द को बना ली अपनी ताकत

ये कहानी है भारत की पहली Specially abled female body builder रेशमा से , जिनके हौंसलों के आगे बड़े बड़े पहलवान भी नहीं टिके. हाल में इन्होंने शेरू क्लासिक्स 2022 का खिताब अपने नाम किया है. हालांकि रेशमा की कहानी इतनी आसान नहीं है, तो चलिए रेशमा से जानते हैं, कि उनका जीवन कैसा रहा है.

रेशमा रेशमा
हाइलाइट्स
  • बचपन से पोलियो ग्रस्त थीं रेश्मा 

  • बचपन से था फिट रहने का शौक

अक्सर ही लोग जब बॉडी बिल्डिंग का नाम लेते हैं तो दिमाग में जो छवि उभरती है, वो एक ऐसे इंसान की होती है, जो भारी-भरकम वेट उठाता हो, हट्टा-कट्टा शरीर हो. लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि एक दिव्यांग लड़की भी अपना करियर बॉडी बिल्डिंग में बना सकती है. ये कहानी है रेशमा की और उसके सपनों की उड़ान की. एक झुग्गी बस्ती में रहने वाली रेशमा को आज करोड़ों लोग जानते हैं. दरअसल रेशमा ने शेरू क्लासिक्स 2022 का खिताब अपने नाम किया है. हालांकि रेशमा का जीवन उतना आसान नहीं था. रेशमा ने GNT Digital से हुई बातचीत में एक अपना पूरा सफर साझा किया है. 

बचपन से पोलियो ग्रस्त थीं रेश्मा 
रेशमा बताती हैं कि जब वो पैदा हुई थी, उस वक्त वो बिलकुल ठीक थीं, सभी बच्चों की तरह रेशमा के मां-बाप ने भी उन्हें पोलियो का टीका वगैरह लगवाया था. लेकिन अचानक आए एक बुखार ने रेशमा के शरीर को आधा पैरालाइज कर दिया. रेशमा के शरीर का दायां भाग पूरी तरह से पैरालाइज हो गया. अपने बच्चे की ये हालत देख कर रेशमा के मां-बाप परेशान हो गए, और तुरंत उन्हें अस्पताल लेकर पहुंचे. अस्पताल में डॉक्टरों ने बताया कि रेशमा को पोलियो है. उस वक्त रेशमा के मां बाप टूट से गए थे, हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी और बच्ची के इलाज के लिए दर-दर भटकने लगे. उसके बाद एक डॉक्टर ने रेश्मा के पैरों की सर्जरी करने को कहा. जिसके बाद बचपन में ही रेशमा के दोनों पैरों का ऑपरेशन हुआ. उनके दोनों पैरों में 32 टांके लगे थे. जिस कारण आज भी रेशमा उस दर्द से गुजर रही हैं.

पैरों में दर्द के बाद घंटों जिम में वर्कआउट करती थी रेशमा
पैरों के इस दर्द के बाद भी रेश्मा घंटों जिम में भारी-भरकम वेट उठाती हैं. रेशमा की इस कहानी को सुनकर वसीम बरेलवी की एक कविता याद आती है, "उड़ान वालो उड़ानों पे वक़्त भारी है, परों की अब के नहीं हौसलों की बारी है. मैं क़तरा हो के तूफानों से जंग लड़ता हूँ, मुझे बचाना समंदर की ज़िम्मेदारी है, कोई बताये ये उसके ग़ुरूर-ए-बेजा को, वो जंग हमने लड़ी ही नहीं जो हारी है." रेशमा बताती हैं कि उनके लिए इस बॉडी बिल्डिंग की प्रतियोगिता को जीतना इतना आसान नहीं था, क्योंकि एक पैर में पोलियो के कारण भारी वेट उठाने से उन्हें काफी तकलीफ होती थी. पैरों में लगे 32 टांके कई बार बहुत दर्द देते थे. लेकिन रेशमा के हौसले बुलंद थे. उनमें कुछ कर गुजरने की एक चाह थी. 

बचपन से था फिट रहने का शौक
रेशमा को हमेशा से ही फिट रहना पसंद था, योग करना, एक्सरसाइज करना उसके जिंदगी का एक हिस्सा था, लेकिन पिता की मौत के बाद वो एकदम टूट सी गयी थी. एक वक्त तो ऐसा भी आया जब रेशमा ने ये सब करना छोड़ दिया. लेकिन फिर उनकी मां ने फिर से उठ खड़े होकर आगे बढ़ने को कहा. रेशमा ने फिर से जिम जाना शुरू किया. जिम करते वक्त उनके दिमाग में बॉडी बिल्डिंग की बात आई. फिर रेशमा ने ऐसी प्रतियोगिताओं के बारे में जानना शुरू किया. पहले इस तरह की प्रतियोगिताएं केवल पुरूषों के लिए होती थीं. रेशमा को तब शेरु क्लासिक्स 2022 के बारे में पता चला, उनको पता चला कि इस प्रतियोगिता में महिलाएं भी भाग ले सकती हैं. रेशमा  ने डेढ़ महीने की तैयारी करके इस प्रतियोगिता में भाग लिया. 

इस प्रतियोगिता में उनके अलावा और 24 दिव्यांग बॉडी बिल्डर पुरुष थे, और वो अकेली महिला थीं. लेकिन रेशमा के हौसले इतने बुलंद थे, कि आखिरकार उन्होंने शेरु क्लासिक्स 2022 का खिताब अपने नाम किया. 

गरीबी कभी नहीं बनी रोड़ा
रेशमा के इस सफर में मुश्किलें भी कई हैं. एक बॉडी बिल्डर को अपने वर्कआउट के हिसाब से ही डाइट भी लेनी पड़ती है. रेशमा के पिता की मृत्यु के पहले से ही किन्हीं कारणों से उनकी मां और पिता अलग रहते थे. रेशमा बचपन से अपने पिता के साथ रहती थी. लेकिन उनकी मौत के बाद वो अपनी मां के साथ रहने आ गई. रेशमा अपने पिता के साथ बचपन से मुंबई के पॉश इलाके में रही हैं, लेकिन उनकी मौत के बाद हालात काफी बदल गए और वो मां के साथ झुग्गी में रहने लगीं. रेशमा जब अपनी मां के साथ रहतीं तो पैसों की तंगी भी आ गई, फिर रेशमा ने भी कमाना शुरू किया. वो वक्त था, जब रेशमा ऑफिस भी जाती थीं, और घर आकर दोबारा जिम भी जाती थीं. हालांकि सभी की तरह कोरोना महामारी की मार रेशमा पर भी पड़ी, और रेशमा को नौकरी से हाथ धोना पड़ा. बिना पैसों के डाइट का ध्यान रखना मुमकिन नहीं था, पर रेशमा की मां ने हमेशा उनका साथ दिया. मात्र 7 हजार रुपए महीने कमाने वाली उनकी मां ने उनकी डाइट का पूरा ध्यान रखा. 

रेशमा की सफलता का श्रेय वो अपने कोच को देती हैं. रेशमा के कोच उनके दोस्त भी हैं, जिन्होंने रेशमा को ट्रेन भी किया और एक कम पैसों वाला जिम भी ज्वाइन करवाया. पैसे न होने के कारण वो पास के जिम में नहीं जा पाती थीं. इसलिए रोजाना 2 घंटे सफर करके वो दूर के जिम जाती थीं, ताकि उससे थोड़े पैसे बचाए जा सके.

रेशमा आज के युवा को ये संदेश देना चाहती हैं, वो युवाओं को हमेशा अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए, निरंतर योग करना चाहिए, इसके अलावा जिंदगी में आने वाली मुश्किलों से कभी पीछा छुड़ा कर भागना नहीं चाहिए. 

यहां देखें पूरा इंटरव्यू: