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जज़्बे को सलाम, कुदरत से प्यार करने वाले इस प्रेमी ने ढूंढ ली पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी ये सब्जियां

चोट के बावजूद आदिक्कलम आनंदन की जीने की चाहत नहीं खत्म हुई और ना ही प्राकृति के प्रति उनका प्यार ही खत्म हुआ. आज आदिक्कलम 29 साल के हो गए हैं, और किसानी में अपना भविष्य बनाने में कामयाबी की इबारत लिख रहे हैं.

आदिक्कलम आनंदन आदिक्कलम आनंदन
हाइलाइट्स
  • आदिक्कलम ने अब तक चार अलग-अलग तरह के वनस्पति बीज खोजे हैं

  • आदिक्कलम इस काम का श्रेय पर्यावरण कार्यकर्ता जी नम्मालवर की किताबों को देते हैं

हर किसी का जिंदगी जीने का एक खास मकसद होता है, लेकिन कभी ऐसा भी होता है जब कोई हादसा होने की वजह से इंसान वो मकसद ही छोड़ देता है, लेकिन आदिक्कलम आनंदन ने एक हादसे के बाद भी अपने मकसद को ही अपनी जिंदगी बनाए रखा. आदिक्कलम आनंदन को बचपन से किसान बनने का शौक था, लेकिन 16 साल के आदिक्कलम आनंदन की जिंदगी में उस समय बड़ा मोड़ आया जब पेड़ पर चढ़ते वक्त उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई, और उनकी जिंदगी व्हीलचेयर पर जा सिमटी.

लेकिन आदिक्कलम आनंदन की जीने की चाहत नहीं खत्म हुई और ना ही प्राकृति के प्रति उनका प्यार ही खत्म हुआ. आज आदिक्कलम 29  साल के हो गए हैं, और किसानी में अपना भविष्य बनाने में कामयाबी की इबारत लिख रहे हैं. आदिक्कलम आनंदन विलुप्त हो चुके पौधों के बीजों को खोजने और संरक्षित करने के जरिए तलाश करते हैं और उनका मानना है कि यही काम उनकी जिंदगी के सही मायनों को बयान करता है

विलुप्त हुई सब्जियों की खोज में लगा दी अपनी जिदंगी

आदिक्कलम ने अब तक चार अलग-अलग तरह के वनस्पति बीज खोजे हैं, जो लगभग विलुप्त हो चुके थे. इसके अलावा आदिक्कलम ने तीस देशी सब्जियों के बीजों को जमा किया है. आदिक्कलम सब्जियों की खेती के लिए साथी किसानों को बीज बांटते हैं.आदिक्कलम अरुप्पुकोट्टई तालुक में स्पाइनल इंजर्ड पर्सन्स एसोसिएशन (SIPA) से भी जुड़े हैं.  TNIE से बात करते हुए, आदिक्कलम ने कहा कि उनके पास 30 किस्मों के बीज हैं, जिनमें धान की दो किस्में, बैगन की 10 किस्में और भिंडी की हर तरह के बीजों की किस्में के साथ टमाटर की सात किस्में हैं, वो कहते हैं कि  "मैं अरुप्पुकोट्टई के पुलियूरन गांव में नादर मिडिल स्कूल के अंदर चार सेंट में फसल की खेती कर रहा हूं.

विलुप्त हुई बीज ढूंढना मेरा जूनून -  आदिक्कलम आनंदन 

अपने इस काम के लिए आदिक्कलम पर्यावरण कार्यकर्ता जी नम्मालवर की किताबों को श्रेय देते हैं, आदिक्कलम ने ये किताब 2014 में पढ़ना शुरू किया था, ताकि उन्हें अपने वर्तमान मिशन को शुरू करने के लिए तमाम तरह की जानकारी हो, वो कहते हैं कि इस किताब को पढ़ कर मैंने खुद को काफी मोटिवेटेड महसूस किया. किताबों में बताए गए सिद्धांतों की मदद से मैंने कुछ लगभग विलुप्त लेकिन जरूरी  पेड़ों के देशी बीज इकट्ठा करना शुरू किया. जिसमें धान और सब्जियों के बीज सबसे ज्यादा थे. इसके बाद मुझमें कोई हुई बीजों को जमा करने का एक जूनून सवार हो गया. ये मेरे जूनून का ही नतीजा था कि मैंने टमाटर और बैगन की दो  पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी बीजों को ढूंढ लिया. 

बड़े पैमाने पर खेती के लिए किसानों में बांट देते हैं बीज 

आदिक्कलम ने कहा कि इसी तरह मैनें 10 या 15 बीज हासिल किए फिर उन्हें बोया, इसके बाद  इन बीजों को  किसानों में वितरित किया और आज ये किसान बड़े पैमाने पर इन बीजों की खेती कर रहे हैं, और बाज़ारों में बेच रहे हैं. आदिक्कलम ने आगे  कहा कि “व्यावसायिक बीज केवल दो महीने के लिए उपजते हैं,  लेकिन इसके उलट देशी बीज चार महीने तक उपज सकते हैं. अगर इसकी खेती पूरी तरह से जैविक तरीके से की जाए तो पौधा दो साल तक उपज देगा.