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हौसला नहीं है उम्र का मोहताज...नन्हीं सी उम्र में हिमा ने किया आतंकियों का सामना, पीएम से मिला बाल पुरस्कार

आज हिमाप्रिया 12 साल की हैं, और जब 2018 में उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया था, उस समय वो 8 साल की थीं. दरअसल हिमाप्रिया ने 2018 में एक आतंकवादी हमले के दौरान अपनी मां और दो छोटी बहनों को जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों से बचाया था. 

गुरुगु हिमाप्रिया गुरुगु हिमाप्रिया
हाइलाइट्स
  • नन्हीं सी उम्र में हिमाप्रिया ने दिखाया कारनामा

  • तीन घंटे तक कमरे में बंद रहा हिमा का परिवार

दिल में अगर जज्बा हो तो कोई भी मुसीबत आपके सामने घुटने टेक देगी. इस बात का जीता जागता उदाहरण हैं श्रीकाकुलम की गुरुग हिमाप्रिया. आज प्रधानमंत्री ने वर्चुअल मोड के माध्यम से गुरुगु हिमाप्रिया को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार 2022 से सम्मानित किया है. इसके साथ ही उन्हें एक लाख रुपए की राशि भी दी गई. तो चलिए आपको बताते हैं कि हिमाप्रिया को ये सम्मान आखिर क्यों मिला है. 

नन्हीं सी उम्र में दिखाया कारनामा
आज हिमाप्रिया 12 साल की हैं, और जब 2018 में उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया था, उस समय वो 8 साल की थीं. दरअसल हिमाप्रिया ने 2018 में एक आतंकवादी हमले के दौरान अपनी मां और दो छोटी बहनों को जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों से बचाया था. 

जैश के आतंकियों ने किया हमला
हिमाप्रिया के पिता सेना में हवलदार हैं उनका नाम हैं गुरुगु सत्यनारायण हैं. उस वक्त हिमा अपनी मां पद्मावती और बहनों रिशिता, जो उस समय 7 साल की थी और अवंतिका 5 की थी, के साथ जम्मू-कश्मीर के सुंजवान में सेना के आवासीय क्वार्टर में रह रही थीं. जब जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने शिविर पर हमला किया था. उस दिन तारीख थी 10 फरवरी, 2018 जब सत्यनारायण उधमपुर में ड्यूटी पर थे, और उनका परिवार सुंजवान में अकेला रह रहा था. 

तीन घंटे तक कमरे में बंद रहा परिवार
एक आतंकवादी को उनके क्वार्टर में प्रवेश करते देख, हिमा की मां पद्मावती ने खुद को और अपनी तीन बेटियों को बेडरूम में बंद कर दिया, और जो कुछ भी उसे मिल सकता था उसे दरवाजे के सामने रख दिया, जिससे दरवाजा खुल ना सके. पद्मावती और 8 साल की हिमाप्रिया ने आतंकवादी को तीन घंटे से अधिक समय तक कमरे में प्रवेश करने से रोका. उसके बाद आतंकवादी ने एक हथगोला फेंक कर प्रवेश करने की कोशिश की, जिससे पद्मावती बुरी तरह घायल हो गईं.

आतंकियों का सामना कर मां को पहुंचाया अस्पताल
इसी हादसे में हिमा के कंधे पर चोट आ गई. कंधे की चोट का सामना करते हुए, हिमाप्रिया ने अपनी मां और बहनों को सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष जारी रखा. वो जरा भी नहीं डरी. उसने दरवाजा खोला और करीब एक घंटे तक आतंकी से बातचीत करती रही. इस छोटी सी दृढ़ निश्चयी लड़की ने अंततः आतंकवादी को अपनी घायल और बेहोश माँ को अस्पताल ले जाने के लिए राजी कर लिया.

सेना से साधा संपर्क
अस्पताल जाते वक्त एक सुरक्षित दूरी पर पहुंचने के बाद, उसने सेना को सतर्क किया. जिसके बाद सेना हरकत में आई और इलाके का सफाया करने में जुट गई. बाद में सेना ने हिमाप्रिया की जांबाजी की तारीफ की और कहा उनकी इस बहादुरी से आज बहुत लोगों की जान बच गई और आतंकवादियों को पकड़ने में भी मदद मिली.

हिमाप्रिया की हिम्मत और बहादुरी सचमुच काबिल-ए-तारीफ है. इस छोटी सी उम्र में आतंकियों का डटकर सामना करना हर किसी के बस की बात नहीं. हिमाप्रिया से हमें यही सीख मिलती है कि जांबाज बनने की कोई उम्र नहीं होती.