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Statue of Equality: तेलंगाना में दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची संत रामानुजाचार्य की मूर्ति का उद्घाटन करेंगे पीएम मोदी, जानिये इसके बारे में सबकुछ

रामानुजाचार्य ने पूरे भारत में वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया. पहली बार समानता की बात करने वाले रामानुजाचार्य के जन्म के एक हजार साल के मौके पर एक हजार करोड़ की लागत से भव्य मंदिर और 8 धातुओं को मिलाकर रामानुजाचार्य की 216 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई गई है.

संत रामानुजाचार्य संत रामानुजाचार्य
हाइलाइट्स
  • रामानुजाचार्य ने पहली बार की थी समानता की बात

  • दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची बैठी हुई मूर्ति है यह

  • 8 धातुओं को मिलाकर 216 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई गई है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को तेलंगाना में दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची संत रामानुजाचार्य की मूर्ति का उद्घाटन करेंगे. 216 फीट ऊंची स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी 11वीं सदी के संत श्री रामानुजाचार्य की याद में बनाई गई है. इसे पीएम देश को समर्पित करेंगे. इस मूर्ति के बारे में यह जानकारी दी गई कि यह मूर्ति दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची बैठी हुई मूर्ति है और इसे स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी(Statue of Equality) का नाम दिया गया है. आइये अब एक नजर डालते हैं कि इस मूर्ति को तैयार करने के पीछे क्या वजह है और इससे जुड़े इतिहास के बारे में.

पहली बार समानता की बात करने वाले रामानुजाचार्य
10 मई 1017 को तमिलनाडु में एक बच्चे का जन्म हुआ और उन्होंने कांची जाकर गुरु यादव प्रकाश से वेदों की शिक्षा ली. बड़े होकर वे रामानुजाचार्य कहलाए. आगे चलकर रामानुजाचार्य ने पूरे भारत में वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया. पहली बार समानता की बात करने वाले रामानुजाचार्य के जन्म के एक हजार साल के मौके पर एक हजार करोड़ की लागत से भव्य मंदिर और 8 धातुओं को मिलाकर रामानुजाचार्य की 216 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई गई है.

120 किलो वजन की मूर्ति के पीछे ये है कहानी
भव्य मंदिर के अंदर 120 किलो वजन की एक भव्य मूर्ति भी स्थापित की गई है. इस मंदिर का निर्माण 45 एकड़ क्षेत्र में हुआ है. इस मंदिर की परिकल्पना करने वाले त्रिदंडी चिन्ना जीयर स्वामी का कहना है कि साल 1017 में जन्मे रामानुजाचार्य 120 सालों तक धरती पर रहे और समानता को लेकर बात की. इसी वजह से मूर्ति का वजन 120 किलो रखा गया है. आर्किटेक्ट आनंद साईं इस मंदिर के आर्किटेक्ट हैं. आनंद साईं दक्षिण भारत की कई फिल्मों में आर्ट डायरेक्टर के तौर पर काम कर चुके हैं.

मूर्ति के उद्घाटन से पहले पीएमओ की तरफ से यह कहा है कि, "श्री रामानुजाचार्य ने राष्ट्रीयता, लिंग, नस्ल, जाति या पंथ की परवाह किए बिना इंसानियत की भावना के साथ लोगों के उत्थान के लिए अथक प्रयास किया".

यहां रखा है रामानुजाचार्य का पार्थिव शरीर
रामानुजाचार्य का पार्थिव शरीर संरक्षित कर आज भी एक मंदिर में रखा हुआ है. उनका शरीर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में मौजूद एक भव्य मंदिर में रखा हुआ है. इसके बारे में यह कहा जाता है कि ये सिर्फ दक्षिण भारत ही नहीं बल्कि पूरे भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां मृत शरीर को रखकर पूजा जाता है.