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Supreme Court परिसर में आजादी के 76 साल बाद स्थापित हुई अंबेडकर की प्रतिमा, राष्ट्रपति बोलीं- युवाओं को न्यायपालिका से जोड़ने की बनाई जाए व्यवस्था 

राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद आयोजित समारोह में कहा कि देश में राष्ट्रीय स्तर की न्यायिक सेवा हो, जिसमें में ज्यादा से ज्यादा वर्गों के छात्रों की हिस्सेदारी हो. उन्होंने कहा कि मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं कि राष्ट्रपति बनने के बाद मुझे प्रतिभाशाली छात्रों से मिलने का अवसर मिला.

राष्ट्रपति ने बाबा साहेब की प्रतिमा का अनावरण किया राष्ट्रपति ने बाबा साहेब की प्रतिमा का अनावरण किया
हाइलाइट्स
  • राष्ट्रपति और चीफ जस्टिस ने किया पौधरोपण 

  • राष्ट्रपति ने कहा- UPSC के साथ ही राज्य स्तरीय चयन व्यवस्था हो

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने रविवार को संविधान दिवस के अवसर पर सुप्रीम कोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया. आजादी के 76 साल बाद सुप्रीम कोर्ट परिसर में भारतीय संविधान के निर्माता भीमराव अंबेडकर की मूर्ति स्थापित करने की पहल मौजूदा मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने की. सात फीट ऊंची पंचधातु की इस प्रतिमा में बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर एक वकील की तरह गाउन और बैंड पहने हुए हैं. उनके हाथ में संविधान की प्रति है. इसे भारतीय मूर्तिकार नरेश कुमावत ने बनाया है.

देश में राष्ट्रीय स्तर की हो न्यायिक सेवा 
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने प्रतिमा का अनावरण करने के बाद आयोजित समारोह में कहा कि देश में राष्ट्रीय स्तर की न्यायिक सेवा हो जिसमें में ज्यादा से ज्यादा वर्गों के छात्रों की हिस्सेदारी हो. उन्होंने कहा कि मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं कि राष्ट्रपति बनने के बाद मुझे अनगिनत आईआईटी, आईआईएम, विश्वविद्यालय में जाने और वहां प्रतिभाशाली छात्रों से मिलने का अवसर मिला. ऐसे प्रतिभाशाली युवाओं को न्यायपालिका में भेजकर देश सेवा में आगे बढ़ाने के इंतजाम होने चाहिए. इसके लिए यूपीएससी और राज्य स्तरीय चयन व्यवस्था हो ताकि राज्य और जिला स्तर की न्यायपालिका में वो प्रतिभाशाली युवा अपनी सेवाएं दे सकें. 

यानी प्रतिभा का विस्तृत पूल बनाया जाए ताकि वो प्रतिभाशाली छात्र बेंच में अपना योगदान कर सकें. ये मेरे विचार हैं. बाकी इसकी व्यवस्था यानी तंत्र बनाने की जिम्मेदारी मैं आपके विवेक पर छोड़ती हूं. राष्ट्रपति मुर्मु ने मुफ्त कानूनी सहायता और उन तक पहुंच के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने पर भी बल देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराने के प्रयासों से हम सब आश्वस्त महसूस करते हैं. मामलों की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग जनता को न्याय प्रणाली से जुड़ने का मौका देती है.

न्याय प्रणाली को उपनिवेश मुक्त करने की मुहिम जारी रखने की है जरूरत
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी पौराणिक कथाओं में एक राजा की कहानी है जिसने अपने दरवाजे पर एक घंटा लगाया. न्याय की आस में कोई भी फरियादी कभी भी इसे बजा सकता था. उस समय मैं सोचती थी कि ऐसे तो राजा को आराम भी नहीं मिल पाता होगा. हालांकि फिर यह महसूस हुआ कि ऐसा करने से पहले उसने अपनी न्याय प्रणाली को इस तरह से विकसित किया होगा जिसमें कम से कम लोगों के सामने न्याय का घंटा बजाने की नौबत आए. 

उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली को उपनिवेश मुक्त करने की मुहिम जारी रखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि युवाओं की इतिहास में अधिक रुचि हो गई है यदि वो अंबेडकर जैसे दूरदर्शी लोगों के बारे में अधिक जानेंगे तो उन्हें और अधिक व गहराई से भारतीय व्यवस्था का पता चलेगा. उन्होने कहा कि हमारा संविधान एक लिखित दस्तावेज है. यह तभी जीवंत रहेगा जब इसके प्रावधान लागू किए जाएं और उनकी व्याख्या होती रहे.

शीर्ष अदालत में आया हरेक मुकदमा देश में 'संविधान के राज' की है मिसाल
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि शीर्ष अदालत के समक्ष आया हरेक मुकदमा देश में 'संविधान के राज' की मिसाल है. उन्होंने कहा कि संविधान हमें अन्य विवादों के साथ राजनीतिक विवाद भी सुलझाने का अधिकार देता है. बाबासाहेब अंबेडकर की यह प्रतिमा इस बात का प्रतीक है कि संविधान न्याय के लिए कोर्ट तक पहुंचने का अधिकार भी सुनिश्चित करता है. बता दें कि संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान को अंतिम रूप दिया था और फाइनल ड्राफ्ट पर सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे. ठीक 2 महीने बाद 26 जनवरी, 1950 को हमारा संविधान लागू हो गया था.

इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा, उनकी पत्नी, सुप्रीम कोर्ट के अन्य जज, विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदीश अग्रवाला, सचिव राहुल पांडेय और अन्य पदाधिकारियों के साथ प्रतिमा के शिल्पी मूर्तिकार नरेश कुमावत भी मौजूद रहे. राष्ट्रपति मुर्मू और चीफ जस्टिस ने इस अवसर को यादगार बनाने के लिए पौधरोपण भी किया. 

मदर इंडिया की स्टेच्यू हटाई गई
सुप्रीम कोर्ट परिसर में स्थित आइकॉनिक मदर इंडिया की प्रतिमा फिलहाल वहां से हटा दी गई है. उसी की जगह बाबसाहेब की प्रतिमा स्थापित की गई है. मदर इंडिया की कांसे की इस प्रतिमा में भारत माता को एक महिला के रूप में मूर्त किया गया था, जिनकी गोद में लोकतंत्र का प्रतीक शिशु था, जिसके हाथ में संविधान के प्रतीक के रूप में एक खुली किताब थी. 

किताब पर समता का प्रतीक तराजू बना था. इस मूर्ति में प्रतीकात्मक रूप से बताया गया था कि सुप्रीम कोर्ट युवा भारत गणराज्य में कानून के राज को प्रश्रय और संरक्षण दे रहा है. यह प्रतिमा भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक चिंतामणिकर ने बनाई थी. सुप्रीम कोर्ट परिसर में दूसरी प्रतिम गांधी जी की है, जो ब्रिटिश कलाकार फ्रीडा ब्रिलियंट मार्शल ने बनाई है. तीसरी प्रतिमा बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर की है.