
पति या ससुराल वाले अगर किसी महिला को उसकी पढ़ाई जारी रखने से रोकते हैं, तो यह मानसिक क्रूरता के बराबर माना जाएगा और इसका सीधा असर शादीशुदा जिंदगी पर पड़ेगा. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर किसी पत्नी को उसकी पढ़ाई रोकने के लिए मजबूर किया जाता है या उसे ऐसा माहौल दिया जाता है जिससे वह आगे नहीं पढ़ सके, तो यह तलाक का ठोस आधार होगा.
क्या है पूरा मामला?
इस केस में 2015 में शादी के बंधन में बंधी एक महिला ने तलाक की अर्जी दी थी. शादी के समय वह 12वीं पास थी और आगे पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन उसके पति और ससुरालवालों ने उसे पढ़ने नहीं दिया. उसने आरोप लगाया कि ससुराल में उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया और पढ़ाई से दूर कर दिया गया.
हालांकि, पति ने कोर्ट में कहा कि उसने पत्नी की पढ़ाई रोकने की कोई कोशिश नहीं की और बीएससी कोर्स के लिए जरूरी खर्च भी दिया. उसने दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के आरोपों को भी खारिज किया.
पहले फैमिली कोर्ट ने ठुकराई थी तलाक की अर्जी
2020 में फैमिली कोर्ट ने पत्नी की तलाक की याचिका खारिज कर दी और यह फैसला सुनाया कि पत्नी बिना किसी ठोस कारण के पति से अलग रह रही है. लेकिन इस फैसले के खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस गजेंद्र सिंह की बेंच ने इस केस पर फैसला सुनाया. बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि पति खुद अनपढ़ था और उसने पत्नी की पढ़ाई में किसी तरह का सहयोग नहीं दिया.
इसे लेकर कोर्ट ने कहा कि शिक्षा मौलिक अधिकार है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आवश्यक है. अगर कोई महिला पढ़ना चाहती है और उसे रोका जाता है, तो यह उसके सपनों को कुचलने के बराबर है और मानसिक उत्पीड़न की श्रेणी में आता है.
सिर्फ 3 दिन साथ रहे थे पति-पत्नी!
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने यह भी पाया कि शादी के 10 सालों में पति-पत्नी केवल 3 दिन ही साथ रहे थे. 2016 में जुलाई के महीने में वे साथ थे, लेकिन उस दौरान भी पत्नी को बुरे अनुभवों से गुजरना पड़ा. इसके बाद दोनों कभी साथ नहीं रहे.
कोर्ट ने कहा, "यह ऐसा मामला नहीं है जहां पत्नी खुद अपनी गलती का फायदा उठा रही हो. बल्कि यह मामला है जहां पत्नी को अपने सपने और करियर की कुर्बानी देने के लिए मजबूर किया गया."
हाईकोर्ट ने तलाक को मंजूरी दी
कोर्ट ने इस शादी को "अविवाहित संबंध" (irretrievable breakdown of marriage) करार दिया क्योंकि दोनों 2016 से अलग रह रहे थे और एक-दूसरे के साथ रहने की कोई संभावना नहीं थी.
आखिर में, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया, तलाक को मंजूरी दी और पति के 'वैवाहिक अधिकारों की बहाली' (Restitution of Conjugal Rights) की मांग को खारिज कर दिया.
हाईकोर्ट ने इस मामले में कहा, "शिक्षा सिर्फ एक अधिकार नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन का हिस्सा है. अगर कोई महिला इसे हासिल नहीं कर पाती, तो यह सिर्फ उसका नुकसान नहीं, बल्कि समाज के लिए भी एक नुकसान है."
यह फैसला उन महिलाओं के लिए एक बड़ी मिसाल है जिन्हें शादी के बाद अपने सपनों और पढ़ाई को छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है. अब अगर किसी महिला को पढ़ाई करने से रोका जाता है, तो वह इसे मानसिक उत्पीड़न का आधार बनाकर तलाक मांग सकती है.
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