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Sanjay Gandhi Life Story: मशीनों से लगाव, पढ़ाई में एवरेज, धुन के पक्के, मेनका की एंट्री... चर्चित शख्सियत संजय गांधी के किस्से

संजय गांधी को मशीनों से खासा लगाव था. बचपन में वो अक्सर छोटी मोटी चीजें ठीक कर देते थे. कोई टूटा सामान अगर वो चिपका देते थे तो वो नया लगने लगता था. लेकिन हर काम के बदले उनको कुछ चाहिए होता था. जैसे कहानियों की किताब या फिल्म की कैसेट.

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आज यानी 14 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे और चर्चित शख्सियत संजय गांधी की 77वीं जयंती है. संजय गांधी कभी किसी संवैधानिक पद पर नहीं रहे. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था, जब उनकी इजाजत के बिना देश की सियासत में कुछ भी नहीं होता था. उस दौर की चर्चा बिना संजय गांधी के अधूरी रहती है. चलिए आपको देश की सियासत के इस असाधारण शक्ति, धुन के पक्के और विवादित शख्सियत के किस्से बताते हैं.

धुन के पक्के थे संजय गांधी-
सालों तक कांग्रेस को करीब से देखने वाले पत्रकार रशीद किदवाई बताते हैं कि संजय गांधी धुन के पक्के थे. जो ठान लेते थे, वो करते ही थे. उनका एक चर्चित कथन अक्सर हुआ करता था- Convince me or get convinced. इसका मलतब है कि या तो मेरी बात मान लो या मुझे अपनी बात मानने के लिए मना लो.

मशीनों से था लगाव-
संजय गांधी को मशीनों से खूब लगाव था. वो बचपन में मशीनों से खेला करते थे. विनोद मेहता की किताब 'संजय स्टोरी' में उनके बचपन का भी जिक्र है. किताब में नेहरू हाउस के रिसेप्शन ऑफिसर के हवाले से बताया गया है कि संजय गांधी को मशीनों से बड़ा लगाव था. कमरे में एक छोटी सी वर्कशॉप चल रही होती थी, जिसमें हमेशा वो किसी चीज की मरम्मत कर रहा होता था. हम उसे अक्सर छोटी मोटी चीजें ठीक करने को दे देते थे. बारीकी से काम करना उसका सबसे बड़ा गुण था. एक टूटा हुआ सामान अगर वो चिपका देते तो वो नया लगने लगता था. लेकिन हर काम के बदले उसे कुछ चाहिए होता था. जैसे कोई कहानियों की किताब या फिल्म की कैसेट.

पढ़ाई में एवरेज थे संजय-
14 दिसंबर 1946 को दिल्ली में जन्मे संजय गांधी की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई देहरादून के प्रतिष्ठित दून स्कूल में हुई थी. इस स्कूल में देश के बड़े परिवारों के बच्चे पढ़ते थे. संजय गांधी पढ़ाई में एवरेज थे. पढ़ाई में फिसड्डी होने की वजह से उनको ड्रॉप कर दिया गया. संजय गांधी ब्रिटेन की एक कंपनी के साथ 3 साल की इंटर्नशिप करने गए. लेकिन दूसरे साल ही संजय लौट आए. इसके बाद भारत की सियासत में उनका प्रभाव दिखने लगा.

देश की पहली कार बनाने का श्रेय-
देश की पहली कार बनाने का श्रेय संजय गांधी को जाता है. वो देश में मारुति 800 लेकर आए. उनका सपना था कि भारत में आम लोगों की कार हो. उन्होंने दिल्ली के गुलाबी बाग में एक वर्कशॉप भी तैयार करवाया. 4 जून 1971 को मारुति मोटर्स लिमिटेड नामक कंपनी का गठन किया. इसके पहले एमडी संजय गांधी ही थे.

संजय की लाइफ में मेनका की एंट्री-
संजय गांधी की मेनका गांधी से पहली मुलाकात एक पार्टी में हुई थी. 14 सितंबर 1973 को संजय गांधी एक दोस्त की शादी की पार्टी में गए थे. इस पार्टी में संजय की मुलाकात मेनका से हुई. उस समय मेनका गांधी सिर्फ 17 साल की थीं. जबकि संजय उनसे 10 साल बड़े थे. इसके बाद दोनों की मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा. एक साल बाद ही दोनों ने 23 दिसंबर 1974 को शादी कर ली. यह शादी संजय गांधी के पुराने दोस्त मुहम्मद यूनुस के घर हुई थी.

अभी संजय गांधी और मेनका गांधी की शादी के 6 साल हुए थे, तभी 23 जून 1980 को संजय गांधी की विमान हादसे में जान चली गई. संजय गांधी उस समय 33 साल के थे.

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