मध्य प्रदेश का एक ऐसा लीडर, जो बचपन से ही जिद्दी और भीड़ से अलग खड़ा होने वाला था. 7 साल की उम्र में जब महात्मा गांधी ने उसकी टाई पकड़ी तो फिर कभी टाई को हाथ नहीं लगाया. 10 साल की उम्र में राजसी कपड़े पहनने से इनकार कर दिया. पिता के अपमान का बदला निर्दलीय विधायक बनकर लिया. मध्य प्रदेश में सीएम रहते कांग्रेस को पूर्ण बहुमत दिलाया, शपथ के एक दिन बाद इस्तीफा दिया. भोपाल गैस त्रासदी के आरोपी वारेन एंडरसन को भगाने का आरोप लगा. उच्च शिक्षा में ओबीसी को आरक्षण दिलाया. उस लीडर का नाम अर्जुन सिंह था. अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के 3 बार मुख्यमंत्री रहे, राज्यपाल रहे और 5 बार केंद्रीय मंत्री रहे. चलिए इस दिग्गज नेता की पूरी कहानी बताते हैं.
7 साल की उम्र टाई पहनना छोड़ दिया-
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह का जन्म 5 नवंबर 1930 को चुरहट में हुआ था. उनके पिता राव शिव बहादुर सिंह सामंत थे. इसके साथ ही वो कांग्रेस लीडर और विंध्य प्रदेश के पहले मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री थे. जब अर्जुन सिंह 7 साल के थे तो वो इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में पढ़ते थे. एक बार महात्मा गांधी इलाहाबाद आए तो अर्जुन सिंह उनको देखने गए. बताया जाता है कि महात्मा गांधी जब उनके सामने से गुजरे तो अर्जुन सिंह की टाई पकड़ ली. इस घटना के बाद अर्जुन सिंह ने कभी टाई नहीं पहनी. इतना ही नहीं, जब वो 10 साल के हुए तो उन्होंने राजसी कपड़े भी पहनने छोड़ दिए.
एक्टर बनने का था सपना-
अर्जुन सिंह राजनीति में आने से पहले एक्टर बनना चाहते थे. इसका जिक्र वरिष्ठ पत्रकार डॉ. रामशरण जोशी ने अपनी किताब 'अर्जुन सिंह: एक सहयात्री का इतिहास' में किया है. इस किताब के मुताबिक अर्जुन सिंह बॉलीवुड में अपनी किस्मत आजमाना चाहते थे. किताब में मुताबिक जब अर्जुन सिंह इस ख्वाहिश को अपने पिता से शेयर किया तो उन्होंने कहा कि अपनी पत्नी से पूछ लो. लेकिन अर्जुन सिंह कभी अपनी पत्नी से ये पूछ नहीं पाए और उनको एक्टर बनने का सपना अधूरा रह गया.
पिता के अपमान का बदला लेने की खाई कसम-
अर्जुन सिंह दरबार कॉलेज स्टूडेंट यूनियन का प्रेसिडेंट चुना गया था. उस समय उनके पिता राव शिव बहादुर सिंह को कांग्रेस ने चुरहट से विधानसभा का टिकट किया. लेकिन जब जवाहर लाल नेहरू प्रचार करने आए तो उन्होंने भरे मंच से राव शिव बहादुर सिंह की बेइज्जती कर दी. उन्होंने कहा था कि चुरहट का उम्मीदवार कांग्रेस का नहीं है. दरअसल शिव बहादुर सिंह पर करप्शन के आरोप लगे थे. इसका असर हुआ कि शिव बहादुर चुनाव हार गए. इसके बाद मुकदमों की वजह से 3 साल तक जेल में भी रहना पड़ा. इससे अर्जुन सिंह काफी आहत हुए. उन्होंने अपने दम पर जीतकर विधानसभा पहुंचकर इसका बदला लेने की कसम खाई. साल 1957 के चुनाव में अर्जुन सिंह को टिकट देने के लिए बुलाया गया. लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. अर्जुन सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत हासिल की. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई थी.
इस जीत के बाद अर्जुन सिंह का कद बढ़ जाता है. उनको आनंद भवन बुलाया जाता है. इसके बाद वो कांग्रेस में शामिल हो जाते हैं. साल 1962 में वो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं और जीत हासिल करते हैं.
संजय गांधी से बढ़ी करीबी, मिली CM की कुर्सी-
अर्जुन सिंह की कद कांग्रेस में बढ़ने लगता है. अब बात साल 1977 की, जब कांग्रेस अर्जुन सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाती है. इसके बाद संजय गांधी से अर्जुन सिंह की नजदीकी बढ़ने लगती है. इंदिरा गांधी भोपाल जाती हैं तो अर्जुन सिंह के घर रुकती हैं. साल 1980 का विधानसभा चुनाव आया. संजय गांधी अपने करीबी अर्जुन सिंह के चुनाव प्रचार के लिए चुरहट जाते हैं. नतीजे आते हैं. कांग्रेस को जीत मिलती है. जप विधायक दल के नेता चुनने की बारी आती है तो कई नाम सामने आते हैं. वोटिंग के जरिए नेता के चुनाव का फैसला होता है. वोटिंग होती है. बॉक्स को दिल्ली लाया जाता है. लेकिन वोटों की गिनती होती, इससे पहले ही संजय गांधी से करीबी का फायदा अर्जुन सिंह को मिलता है. संजय गांधी अर्जुन सिंह को विधायक दल का नेता घोषित कर देते हैं. अर्जुन सिंह पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते हैं.
दूसरी बार एक दिन के लिए बने CM-
अर्जुन सिंह की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार ने 5 साल तक शासन किया. इसके बाद साल 1985 में विधानसभा चुनाव हुए. कांग्रेस को 251 सीटों पर जीत मिली. अर्जुन सिंह सीएम बनना तय माना जा रहा था. 11 मार्च 1985 को अर्जुन सिंह दूसरी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद वो कैबिनेट को अंतिम रूप देने के लिए राजीव गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे. जब उनकी मुलाकात राजीव गांधी से हुई तो उन्होंने पंजाब का राज्यपाल बनने को कहा. इसके बाद 12 मार्च को अर्जुन सिंह को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. वो पंजाब के राज्यपाल बनाए गए.
लेकिन एक बार फिर कांग्रेस को मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह की कमी महसूस होने लगी. 3 साल बाद साल 1988 में 14 फरवरी को अर्जुन सिंह तीसरी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
भोपाल गैस त्रासदी में लगे गंभीर आरोप-
भोपाल में 2-3 दिसंबर की रात को यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से गैस का रिसाव हुआ. इस हादसे में हजारों लोगों की मौत हुई. इस मामले में यूनियन कार्बाइड के मुखिया वॉरेन एंडरसन को गिरफ्तार किया गया. लेकिन ये गिरफ्तारी कागजी कार्रवाई भर थी. सिर्फ 25 हजार रुपए के बांड भरकर एंडसरन को जमानत मिल गई. इसके बाद वो दिल्ली आया और देश से बाहर चला गया. एंडसरन को भगाने के आरोप अर्जुन सिंह पर लगे.
इसके बाद जब अर्जुन सिंह तीसरी बार सीएम बने तो उनके बेटे का नाम चुरहट लॉटरी कांड में आया. साल 1982 में चुरहट चिल्ड्रेन वेलफेयर सोसायटी बनी थी. इसको बनाने वाला अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह का करीबी था. इसमें करोड़ों को घपले की बात सामने आई. हाालांकि बाद में अर्जुन सिंह के करीबी बरी हो गए. लेकिन इसकी वजह से उनको सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी.
उच्च शिक्षा में ओबीसी को आरक्षण दिलाया-
अर्जुन सिंह यूपीए सरकार में साल 2004 से 2009 तक मानव संसाधन विकास मंत्री भी रहे. इस दौरान उन्होंने ऐतिहासिक काम किया. अर्जुन सिंह ने उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को आरक्षण दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसको लेकर खूब विवाद भी हुआ. इसका खामियाजा भी उनको भुगतना पड़ा. जब साल 2009 में दूसरी बार यूपीए की सरकार बनी तो उनको डॉ. मनमोहन सिंह के कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया. इसके बाद अर्जुन सिंह राजनीति से दूर होते चले गए. 80 साल की उम्र में 4 मार्च 2011 को दिल्ली में उनका निधन हो गया. उनके बेटे अजय सिंह मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सियासत करते हैं.
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