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CS Venkatachar: उस IAS अफसर की कहानी, जो 110 दिन तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे

CS Venkatachar Story: सीएम वेंकटाचार IAS अधिकारी थे. जोधपुर को भारत का हिस्सा बनाने में उनकी अहम भूमिका थी. बाद में वो राजस्थान के दूसरे मुख्यमंत्री बने. इस पद पर वो 110 दिन तक रहे. बाद में उनको कनाडा का हाई कमिश्नर बनाया गया.

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर सियासी दलों ने प्रचार तेज हो गया है. गली-चौराहे से लेकर चाय की दुकानों तक पर खूब सियासी चर्चाएं हो रही है. इस चुनावी फिजा में सियासी कहानियां भी अपनी जगह बना रही हैं. हम भी आपको पॉलिटिकल किस्सा सुनाते हैं. उस आईएएस अफसर की कहानी बताते हैं, जो पैदा कर्नाटक में हुआ, लेकिन सियासत के शिखर पर राजस्थान में पहुंचा. चलिए आपको आईएएस कदांबी शेषाटार वेंकटाचार की पूरी सियासी कहानी बताते हैं.

पिता के रास्ते पर चला बेटा-
आईएएस सीएस वेंकटाचारी का जन्म 11 जुलाई 1899 को ब्रिटिश भारत में मैसूर के कोलार में हुआ था. उनके पिता अंग्रेज सरकार में अफसर थे. वेंकटाचारी ने साल 1921 में आईसीएस की परीक्षा पास की. वेंकटाचारी को उत्तर प्रदेश में पोस्टिंग मिली. इस दौरान उन्होंने बेहतरीन काम किया. उनको इसका इनाम भी मिला. उनको इंडियन पॉलिटिकल सर्विसेज में भेज दिया गया. इस सेवा में सिर्फ ब्रिटिश मिलिट्री के लोग ही जा सकते थे. लेकिन वेंकटाचारी के लिए ये नियम टूट गया. साल 1942 में उनको इलाहाबाद का कमिश्नर नियुक्त किया गया. इस दौरान वो जवाहर लाल नेहरू की नजर में आए. इसके बाद सियासत में भी उन्होंने मुकाम हासिल किया. 

डोनाल्ड फील्ड की जगह बनाए गए प्रधानमंत्री-
साल 1945 में जोधपुर में डोनाल्ड फील्ड प्रधानमंत्री थे. उस वक्त के दिग्गज नेता जयनारायम व्यास ने पंडित नेहरू को चिट्ठी लिखी और डोनाल्ड फील्ड की शिकायत की. इसके बाद नेहरू जोधपुर गए थे और महाराजा उम्मेद सिंह से मुलाकात की थी. इस दौरान नेहरू ने महाराज को सलाह दी कि फील्ड को पीएम के पद से हटा देना चाहिए. महाराजा ने भी इससे सहमति जताई. लेकिन उन्होंने पूछा कि डोनाल्ड की जगह कौन होगा? इसके बाद नेहरू ने वेंकटाचार का नाम लिया. सीएस वेंकटाचार को जोधपुर का प्रधानमंत्री बनाया गया.

जोधपुर को भारत में मिलाने में निभाई अहम भूमिका-
साल 1946 में भारत में अंतरिम सरकार बनी. जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने. साल 1947 की शुरुआत में जोधपुर के महाराजा उम्मेद सिंह का निधन हो गया. गद्दी पर उनके बेटे हनवंत सिंह बैठे. इस बीच 3 जून 1947 को भारत विभाजन की बात तय हो गई. इसमें ये तय हुआ कि रियासतें भारत या पाकिस्तान में से किसी एक के साथ रह सकती हैं या अलग रह सकती हैं. इसके बाद भारत और पाकिस्तान दोनों रियासतों को अपने साथ मिलाने में जुट गए.

जोधपुर के राजा हनवंत सिंह न दोनों तरफ बातचीत कर रहे थे. दिसंबर 1947 में वो भारत की संविधान सभा का हिस्सा बन गए. लेकिन जिन्ना से भी बातचीत कर रहे थे. 5 अगस्त 1947 को हनवंत सिंह ने जिन्ना से मुलाकात की और पाकिस्तान में शामिल होने के लिए खाली कागज दस्तखत कर दे दिया. इस दौरान उनके एडीसी केसरी सिंह ने सलाह दी कि फैसला लेने से पहले घरवालों से बात करनी चाहिए. इसके बाद हनवंत सिंह ने जिन्ना से कुछ समय मांगा. दोनों कराची से वापस लौट आए.

केसरी सिंह ने सारी बात वेंकटाचार को बताई. उन्होंने तुरंत चिट्ठी लिखकर सरकार पटेल को सबकुछ बताया. पटेल ने हनवंत सिंह को दिल्ली बुलाया और मीटिंग की. इस दौरान गर्मागर्म बहस हुई. आखिरकार जोधपुर भारत में शामिल किया गया.

हनवंत सिंह ने वेंकटाचार से लिया बदला-
जब महाराजा हनवंत सिंह को पता चला कि वेंकटाचार ने खत लिखकर पटेल को सबकुछ बताया था तो उन्होंने वेंकटाचार को प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया और अपने भाई अजीत सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया. उधर, बीकानेर के महाराजा सादुल सिंह ने वेंकटाचार को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. इसके बाद साल 1949 में राजस्थान राज्य बना तो जयपुर के राज प्रमुख राजा मान सिंह थे. उन्होंने वेंकटाचार को प्रशासनिक अधिकारी बनाया.

110 दिन तक सीएम की कुर्सी पर रहे वेंकटाचार-
हीरालाल शास्त्री राजस्थान के पहले मुख्यमंत्री थे. लेकिन उनके खिलाफ कांग्रेस में बगावत हो गई. इसके बाद उनको सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. सीएम की रेस में जयनारायण व्यास का नाम सबसे आगे था. लेकिन रफी अहमद किदवई ने उनके नाम पर वीटो कर दिया. इसके बाद दूसरे नाम की तलाश शुरू हुई. इस बीच वेंकटाचार का नाम सुझाया गया और उसपर मुहर लग गई. 6 जनवरी 1951 को वेंकाटाचार सीएम पद की शपथ दिलाई गई. वो सीएम पद पर 110 दिन तक रहे. उसके बाद उनको इस्तीफा देना पड़ा.

कनाडा के हाई कमिश्नर बनाए गए वेंकटाचार-
राजस्थान में मुख्यमंत्री बदल गया. वेंकटाचार की जगह जयनारायण व्यास को मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद वेंकटाचार को दिल्ली बुलाया गया. वो दिल्ली में राजेंद्र बाबू के मुख्य सचिव रहे. साल 1958 में उनका कार्यकाल खत्म हुआ तो सरकार ने उनको कनाडा का हाई कमिश्नर बना दिया.

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