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MS Swaminathan Story: बनना चाहते थे पुलिस अफसर, अकाल ने बदली सोच, गेहूं-चावल में देश को बनाया आत्मनिर्भर... Green Revolution के जनक एमएस स्वामीनाथन की कहानी

मशहूर कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन का का जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुंबकोणम में हुआ था. उनके पिता एक सर्जन थे. स्वामीनाथन एक पुलिस अफसर बनना चाहते थे, लेकिन बंगाल में अकाल ने उनकी सोच बदल दी. डॉ. स्वामीनाथन ने गेहूं और चावल उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाया.

हरित क्रांति के जनक और मशहूर वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने 98 साल की उम्र में आखिरी सांस ली हरित क्रांति के जनक और मशहूर वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने 98 साल की उम्र में आखिरी सांस ली

भारत के मशहूर कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन ने 98 साल की उम्र में चेन्नई में आखिरी सांस ली. स्वामीनाथन ने देश को गेहूं और चावल में आत्मनिर्भर बनाया था. भारत में ही नहीं, दुनियाभर में उनके काम की तारीफ होती थी. इस कृषि वैज्ञानिक को 40 से ज्यादा अवॉर्ड मिल चुके थे. उनको पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.

पुलिस अफसर बनना चाहते थे, बन गए वैज्ञानिक-
मशहूर वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुंबकोणम में हुआ था. उनके पिता एमके संबासिवन एक सर्जन थे. शुरू में स्वामीनाथन पुलिस अफसर बनना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने साल 1940 में एग्जाम भी क्वालिफाई कर लिया था. लेकिन इसके बाद उन्होंने कृषि क्षेत्र में काम करना शुरू किया और कृषि में 2 बैचलर डिग्री हासिल की.

अकाल ने बदली सोच-
साल 1943 में बंगाल में अकाल पड़ा. जिसकी वजह से भूख से लाखों लोगों की मौत हो गई. इस अकाल ने स्वामीनाथन की सोच बदल दी. उन्होंने लोगों की भूख मिटाने के लिए जीवन समर्पित करने का फैसला किया. स्वामीनाथन ने त्रिवेंद्रम के महाराजा कॉलेज से जीव विज्ञान में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. फिर इन्होंने कृषि विज्ञान में बीएससी किया. इसके बाद उन्होंने साल 1952 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी की. 

हरित क्रांति से बदल दी तस्वीर-
कृषि वैज्ञानिक डॉ. स्वामीनाथन को देश में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है. उनके प्रयासों की बदौलत ही देश गेहूं और चावल उत्पादन में आत्मनिर्भर बन पाया. साल 1960 के दशक में भारत में अनाज की कमी हो गई थी. तब अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग और एमएस स्वामीनाथन ने दूसरे वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं की एचवाईवी किस्म के बीज विकसित किए. उन्होंने साल 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिलाकर गेहूं के संकर बीज विकसित किए थे.

डॉ. स्वामीनाथन साल 1972 से 1979 तक इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के डायरेक्टर रहे. इसके साथ ही वो साल 1979 से 1980 तक भारतीय कृषि और सिंचाई मंत्रालय के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रहे. इस दौरान उन्होंने भारत में मॉडर्न खेती की शुरुआत की. हरित क्रांति कार्यक्रम में उन्होंने केमिकल-बायोलॉजिकल टेक्नोलॉजी के जरिए गेहूं और चावल की प्रोडक्टिविटी बढ़ाई. डॉ. स्वामीनाथन साल 1982 से 1988 तक अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के डायरेक्टर भी रहे.

दुनियाभर में मिला सम्मान-
डॉ. एमएस स्वामीनाथन को दुनियाभर में 40 से अधिक अवॉर्ड्स से नवाजा गया था. साल 1971 में उनको मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसके बाद साल 1981 में पहले वर्ल्ड फूड अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन को फ्रांस, अमेरिका, जापान जैसे देशों में पुरस्कार दिए गए. डॉ. स्वामीनाथन को भारत में साल 1967 में पद्म श्री, साल 1972 में पद्म भूषण और साल 1989 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था.

साल 1988 में कृषि वैज्ञानिक ने एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन नाम के एनजीओ की स्थापना की. ये संस्था विशेष तौर पर ग्रामीण महिलाओं के लिए आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है. डॉ. स्वामीनाथन की बेटी सौम्या स्वामीनाथन भी वैज्ञानिक हैं.

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