बिहार के सीएम नीतीश कुमार एक रसूखदार घर में हुआ था. उनके पिता रामलखन सिंह आयुर्वेदिक वैद्य थे और आजादी की लड़ाई में कई बार जेल गए थे. साल 1929 में साइमन कमीशन का विरोध करने पर जेल जाना पड़ा. इसके बाद साल 1930 के नमक आंदोलन और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी जेल गए. संतोष सिंह की किताब 'कितना राज, कितना काज' में इसका जिक्र है. इस किताब के मुताबिक नीतीश कुमार अपने घर आने वाले कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बातें सुनते थे. किताब के मुताबिक नीतीश कुमार ने बताया था कि वो पिताजी की आयुर्वेद की दवाई की पुड़िया बनाने में मदद करते थे और कार्यकर्ताओं की बातचीत सुनते थे.
पत्नी और दोस्त के 20-20 हजार से लड़ा चुनाव-
नीतीश कुमार दो चुनाव हार चुके थे. उनके सामने बीसीआई इंजानियरिंग डिग्री के आधार पर नौकरी मिलने का मौका था. उस समय नीतीश की पत्नी मंजू सिन्हा अपने पैतृक गांव सियोधा के सरकारी स्कूल में पढ़ा रही थीं. किताब के मुताबिक नीतीश कुमार ने अपनी पत्नी से साल 1985 विधानसभा चुनाव में आखिरी बार भाग्य आजमाने का मौका मांगा.
किताब के मुताबिक नीतीश कुमार के दोस्त नरेंद्र सिंह के बताया कि हमने तय कर लिया था कि इस बार जीत सुनिश्चित करनी है. मंजू ने अपनी बचत से 20 हजार रुपए दिए और मैंने अपने अकाउंट से 20 हजार निकाले. उन्होंने बताया कि कांग्रेस उम्मीदवार ने 8 बूथ पर अपने पक्ष में इंतजाम के लिए दो हजार रुपए हर बूथ को दिए. जबकि नीतीश कुमार की तरफ से हर बूथ पर 5 हजार रुपए दिए गए. हालांकि नरेंद्र ने इसका जिक्र कभी भी नीतीश कुमार के सामने नहीं किया.
नीतीश कुमार के समर्थकों की ये मेहनत रंग लाई और साल 1985 विधानसभा चुनाव का जब काउंटिंग हुई तो नीतीश कुमार हरनौत से 21 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गए थे.
नीतीश कुमार की लकी बाइक-
नीतीश कुमार बख्तियारपुर में जब जनता के बीच घूमते थे तो उनके पास एक बाइक थी, जो उनके लिए लकी थी. दरअसल ये राजदूत बाइक उनके दोस्त मुन्ना सरकर की थी. मुन्ना ने बख्तियारपुर में शुरुआती दिनों में नीतीश कुमार का बहुत साथ दिया. नीतीश कुमार अक्सर उनकी बाइक पर पीछे बैठकर घूमा करते थे. इसका जिक्र किताब में है. इस बाइक का नंबर बीएचक्यू 3121 था, जिसका कुल योग 7 आता था और ये अंक नीतीश कुमार के लिए आज भी शुभ है. नीतीश ने 1977 में सियासत में इंट्री ली और 1987 में युवा लोकदल के अध्यक्ष बने.
पिता की भविष्यवाणी सच साबित हुई-
नीतीश कुमार के पिता रामलखन सिंह अक्सर कहा करते थे कि मैं जब मरूंगा तो नीतीश कहीं भाषण दे रहा होगा. उनकी ये बात सच साबित हुई. साल 1978 में नीतीश कुमार युवा लोकदल के नेता के तौर पर हाजीपुर में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे, उसी समय 68 साल के उनके पिता रामलखन सिंह का निधन हो गया. किताब 'कितना राज, कितना काज' के मुताबिक नीतीश कुमार के कॉलेज से दोस्त नरेंद्र सिंह ने बताया कि नीतीश कुमार उनके प्रिया बजाज स्कूटर की पिछली सीट पर बैठकर पटना से बख्तियारपुर पहुंचे थे.
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