बाल केशव ठाकरे... एक ऐसा नाम, जिसके बिना शिवसेना की कल्पना नहीं की जा सकती. एक बेहतरीन कार्टूनिस्ट, जिसके कार्टून दिल में चुभ जाते थे. बाल ठाकरे ने मराठी मानुष का मुद्दा उठाया. उन दिनों मुंबई में दक्षिण भारतीयों का दबदबा था. नौकरी, कारोबार से लेकर ठेकेदारी तक.. हर जगह दक्षिण भारतीयों का कब्जा था. मराठियों की इन समस्याओं को बाल ठाकरे ने भांप लिया था और अपने कार्टून के जरिए इन समस्याओं को उठाने लगे. उनकी पत्रिका 'मार्मिक' लोकप्रिय होने लगी. मराठी इसे पसंद करने लगे. इसका मतलब था कि महाराष्ट्र में दक्षिण भारतीयों के दबदबे के खिलाफ मराठियों में असंतोष था. इस मुद्दे से शिवसेना बनाने का आधार मिला. बाल ठाकरे मराठियों के अधिकारों का सवाल उठाने लगे और शिवसेना बनाने की तरफ बढ़ने लगे. इस संघर्ष के बीच वो दिन भी आ गया, जब शिवसेना एक पार्टी के तौर पर सामने आई.
19 जून को शिवसेना की स्थापना-
साल 1966 में 19 जून को बाल ठाकरे ने मुंबई के शिवाजी पार्क में एक बैठक बुलाई. इस मैदान में 50 हजार लोगों के आने की उम्मीद थी. इसलिए इतने लोगों के लिए इंतजाम किए गए थे. लेकिन जब मैदान में 2 लाख लोग जुट गए तो सबकी आंखें फटी की फटी रह गई. इस विशाल जनसैलाब के बीच बाल केशव ठाकरे ने नारियल फोड़कर शिवसेना पार्टी की नींव रखी. इस दौरान बाल ठाकरे ने पहला भाषण दिया. इसमें मराठी अस्मिता को पार्टी का आधार बनाया. इसके दो साल बाद यानी 1968 में शिवसेना को राजनीति दल के तौर पर पंजीकृत कराया गया. इसके बाद पार्टी लगातार मजबूत होती गई और महाराष्ट्र में ताकतवर भी.
शिवसेना ने 1971 में लड़ा पहला चुनाव-
साल 1967 में शिवसेना ने ठाणे नगर परिषद चुनाव में उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें जीत भी मिली थी. लेकिन शिवसेना को राजनीति दल के तौर पर एक साल बाद पंजीकृत कराया गया. इस तरह से सियासी दल के तौर पर शिवसेना साल 1971 आम चुनाव में पहली बार मैदान में उतरी. शिवसेना ने 5 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. लेकिन किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई.
1980 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को समर्थन-
साल 1980 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में शिवसेना ने कांग्रेस को समर्थन दिया था. इस चुनाव में एक भी सीट पर शिवसेना ने चुनाव नहीं लड़ा था. चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी. इसके बाद महाराष्ट्र को पहला मुस्लिम मुख्यमंत्री मिला था. बाल ठाकरे के दोस्त अब्दुल रहमान अंतुले मुख्यमंत्री बने थे. विधानसभा चुनाव में समर्थन के बदले कांग्रेस ने विधान परिषद में शिवसेना को 3 सीटें दी थी.
साल 1989 में शिवसेना का पहला सांसद-
साल 1989 लोकसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी का पहली बार गठबंधन हुआ. इस चुनाव में शिवसेना के 4 सांसद चुने गए. इसके बाद शिवसेना की ताकत बढ़ती गई. साल 1990 में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए. जिसमें शिवसेना ने बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा. शिवसेना को 52 सीटों पर जीत मिली. लेकिन इसके बावजूद शिवसेना सरकार नहीं बना पाई.
साल 1995 में शिवसेना की पहली सरकार-
महाराष्ट्र में वो दिन भी आ गया, जब शिवसेना की सरकार बनी. साल 1995 विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की जीत हुई. शिवसेना ने 73 सीटों पर जीत हासिल की. जबकि बीजेपी को 65 सीटों पर जीत मिली थी. गठबंधन की शर्त के मुताबिक शिवसेना को मुख्यमंत्री का पद मिला. राज्य में पहली बार शिवसेना ने सरकार बनाई. शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बनाए गए.
साल 1999 में हाथ से निकली सत्ता-
साल 1999 विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 161 सीटों और बीजेपी ने 117 सीटों पर चुनाव लड़ा. शिवसेना ने 69 सीटों पर जीत हासिल की. जबकि बीजेपी को 56 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन इस बार सत्ता शिवसेना के हाथ से निकल गई. साल 2004 विधानसभा चुनाव में भी शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सत्ता से दूर रहा. शिवसेना की सीटों की संख्या भी घट गई. इस चुनाव में शिवसेना को 62 सीटों पर जीत मिली थी.
साल 2009 में भी कम हो गए पार्टी के विधायक-
साल 2009 में विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा. लेकिन इस बार दोनों के सीटों की संख्या में कमी आई. शिवसेना को पिछले चुनाव के मुकाबले 18 सीटों का नुकसान हुआ. शिवसेना को सिर्फ 44 सीटें हासिल हुईं. जबकि बीजेपी ने इस बार शिवसेना से 2 ज्यादा सीटें यानी 46 सीटों पर जीत दर्ज की. हालांकि राज्य में ये गठबंधन सत्ता से दूर रहा.
2014 में अकेले मैदान में उतरी शिवसेना-
साल 2014 विधानसभा चुनाव में शिवसेना बिना गठबंधन के चुनाव मैदान में उतरी. शिवसेना ने 282 सीटों पर चुनाव लड़ा. पार्टी को बड़ी जीत मिली. शिवसेना ने 63 सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि इस चुनाव में बीजेपी को 122 सीटों पर जीत मिली थी और उसने अपने दम पर सरकार बनाई. बाद में बीजेपी ने शिवसेना को सरकार में शामिल किया. शिवसेना को 2009 में 16.30 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2014 चुनाव में 19.35 फीसदी वोट मिले. साल 2019 विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी ने एक साथ चुनाव लड़ा. दोनों ने बड़ी जीत हासिल की. लेकिन इस बार शिवसेना गठबंधन से अलग हो गई. शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने. लेकिन बीच में ही शिवसेना टूट गई और उद्धव ठाकरे को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.
बीएमसी में शिवसेना का दबदबा-
पार्टी बनने के बाद से बीएमसी में शिवसेना का लगातार दबदबा रहा है. साल 1971 में शिवसेना बीएमसी में अपना मेयर बनाने में कामयाब रही थी. उसके बाद से लगातार शिवसेना का दबदबा बना हुआ है. आपातकाल में भी कांग्रेस से मिलकर शिवसेना ने अपना दबदबा बनाए रखा. साल 1985 में शिवसेना ने बीएमसी पर पकड़ इतनी मजबूत कर ली कि उसे कोई तोड़ नहीं पाया. हालांकि बीच में साल 1992 से 1995 तक कांग्रेस ने जरूर इसमें सेंधमारी की और अपना मेयर बनाया. लेकिन साल 1996 के बाद से लगातार बीएमसी पर शिवसेना का प्रभुत्व कायम है.
भुजबल, राणे, राज ठाकरे छोड़ चुके हैं पार्टी-
शिवसेना 57 साल पुरानी पार्टी है. लेकिन कई मौके ऐसे आए, जब पार्टी को टूट का सामना करना पड़ा. साल 1991 में छगन भुजबल 8 विधायकों के साथ पार्टी छोड़कर चले गए और एनसीपी में शामिल हो गए. साल 2005 में एक बार फिर पार्टी को टूट का सामना करना पड़ा. पार्टी के बड़े नेता नारायण राणे ने 10 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए. साल 2006 में शिवसेना को सबसे बड़ा झटका लगा. हालांकि ये झटका पार्टी के साथ ठाकरे परिवार को भी था. बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ दी और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम से पार्टी बना ली.
शिवसेना को लगा था सबसे बड़ा झटका-
शिवसेना को पार्टी के तौर पर सबसे बड़ा झटका साल 2022 में लगा. जब पार्टी के दिग्गज नेता एकनाथ शिंदे ने पार्टी तोड़ दी है. 40 विधायकों के साथ शिंदे उद्धव ठाकरे से अलग हो गए. शिंदे ने सिर्फ विधायकों को ही नहीं तोड़ा. उन्होंने शिवसेना पार्टी पर भी अपना दावा ठोंका दिया. पार्टी पर कब्जे की लड़ाई चुनाव आयोग तक पहुंची. चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना माना और पार्टी का चुनाव चिन्ह धनुष बाण शिंदे गुट को मिल गया. जबकि उद्धव ठाकरे को मशाल चुनाव चिन्ह मिला.
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