80 साल की उम्र...जिंदगी एक ऐसा पड़ाव जहां जीने की चाह कम होने लगती है. अगर होती है तो अपने दम पर जीने की हिम्मत शायद नहीं बचती. उम्र के इस पड़ाव पर जहां लोग हिम्मत हारने लगते हैं वहीं दिल्ली के राम कदम की कहानी आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगी कि ऐसे में भी कोई इतना खुद्दार कैसे रह सकता है. हिम्मत, जज्बे और खुद्दारी को बयां करती है राम कदम की जिंदगी.
हिम्मत टूटने वाली उम्र में जीने की चाह जगाने वाले राम कदम
राम कदम किशनगंज से पैदल चलकर मंडी हाउस मूंगफली खरीद कर लाते हैं. इसके बाद दस रुपए के लिफाफे बनाकर मंडी हाउस और अबुल फजल रोड पर बेचते हैं. हिम्मत टूटने वाली उम्र में राम कदम जीने की चाह जगाते हैं. वह अपनी मेहनत से पैसा कमाते हैं ताकि अपनी गुजर बसर कर सकें. एक बार में पांच किलो मूंगफली खरीदकर लाते हैं और इसे तीन-चार दिन बेचते हैं. राम कदम बताते हैं कि मुनाफा 60-70 रुपए होता है.
राम कदम बागपत के रहने वाले हैं और हर महीने कुछ पैसे बचाकर अपने घरवालों को भी भेज देते हैं. राम कदम रोज 15 किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलते हैं. महंगी गाड़ियों के शौकीन और काम से जी चुराने वाली बहानेबाजी के जमाने में राम कदम मिसाल हैं खुद्दारी की.