scorecardresearch

29th April in Congress President History: 29 अप्रैल को ही नेताजी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से दिया था इस्तीफा, बापू और बोस के रास्ते हो गए थे अलग, लेकिन क्यों, जानिए

29 जनवरी, 1939 को कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ. सुभाष चंद्र बोस को 1580 और पट्टाभि सीतारमैय्या को 1377 वोट मिले. राष्ट्रपिता ने इसे अपनी हार बताया. इसके बाद कांग्रेस का एक धड़ा नेताजी की ओर तो दूसरा बापू की ओर हो गया. आइए जानते हैं आखिरकार बोस को अध्यक्ष पद से इस्तीफा क्यों देना पड़ा?

एक कार्यक्रम में राष्ट्रपिता के साथ नेताजी (फाइल फोटो) एक कार्यक्रम में राष्ट्रपिता के साथ नेताजी (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • सुभाष चंद्र बोस 1938 में पहली बार चुने गए थे निर्विरोध कांग्रेस के अध्यक्ष 

  • दूसरी बार अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में पट्टाभि सीतारमैय्या को हराया

नेताजी सुभाष चंद्र बोस गरम दल के नेता माने जाते थे. कहा जाता है उनकी और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कभी नहीं बनी. नेताजी फरवरी 1938 में पहली बार निर्विरोध कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे. इसके बाद 1939 में भी वह अध्यक्ष चुने गए. आइए आज जानते हैं फिर ऐसा क्या हुआ कि नेताजी को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ गया.

बापू नहीं चाहते थे कि बोस अध्यक्ष पद की दावेदारी करें
29 जनवरी, 1939 को कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष पद का चुनाव होना था. पिछली बार 1938 में सुभाष चंद्र बोस अध्यक्ष चुने गए थे. इस बार भी वह अध्यक्ष पद की दावेदारी कर रहे थे. बापू नहीं चाहते थे कि बोस अध्यक्ष पद की दावेदारी करें. गांधी जी अबुल कलाम आजाद को अध्यक्ष बनाना चाहते थे. गांधी जी के अलावा वर्किंग कमेटी के सदस्य बल्लभ भाई पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, जयराम दास दौलत राम, जेवी कृपलानी, जमना लाल बजाज, शंकर राव देव और भूला भाई देसाई भी सुभाष के अध्यक्ष बनने के खिलाफ थे. 

मौलाना अबुल कलाम आजाद हट गए पीछे
इधर, सुभाष चन्द्र बोस ने भी अपनी उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया, उधर बारडोली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में मौलाना अबुल कलाम आजाद की उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया गया. हालांकि बाद में कलाम ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली. गांधी के जोर देने के बाद भी वह सुभाष चन्द्र बोस के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे. वजह ये कि दोनों कलकत्ता से आते थे और वह नहीं चाहते थे कि बंगाल के ही दो लोगों में अध्यक्ष पद के लिए मुकाबला हो.

पंडित नेहरू ने भी चुनाव लड़ने से कर दिया इंकार
मौलाना आजाद के चुनाव नहीं लड़ने पर गांधी जी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू को चुनाव लड़ने के लिए राजी करने की कोशिश की. नेहरू के भी इनकार के बाद महात्मा गांधी ने आंध्र प्रदेश से आने वाले पट्टाभि सीतारमैया का नाम तय किया. 29 जनवरी 1939 को चुनाव होना था. मतदान से से कुछ दिन पहले सरदार बल्लभ भाई पटेल समेत कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सात सदस्यों ने संयुक्त बयान जारी कर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से चुनाव लड़ने के अपने फैसले पर पुनर्विचार की अपील की ताकि पट्टाभि सीतारमैया निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाएं. बोस ने पटेल और वर्किंग कमेटी के अन्य सदस्यों के बयान पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि किसी एक का पक्ष लेना ठीक नहीं है.

बोस ने पट्टाभि को दी मात
29 जनवरी, 1939 को कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ. सुभाष चंद्र बोस को 1580 और पट्टाभि सीतारमैय्या को 1377 वोट मिले. इस नतीजे ने कांग्रेस में खलबली मचा दी. बोस को बंगाल, मैसूर, यूपी, पंजाब और मद्रास से जबरदस्त समर्थन मिला. चुनाव के बाद महात्मा गांधी ने सार्वजनिक तौर पर कह दिया कि पट्टाभि सीतारमैया की हार उनसे ज्यादा मेरी हार है क्योंकि मैंने ही डॉक्टर पट्टाभि को चुनाव से पीछे नहीं हटने को कहा था. 

कमेटी में गांधी समर्थकों का था दबदबा
सुभाष चन्द्र बोस दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष तो बन गए लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी में गांधी समर्थकों का ही दबदबा था. चुनाव बाद कड़वाहट और भी ज्यादा बढ़ गई. मार्च 1939 में जबलपुर के नजदीक त्रिपुरी में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन होना था. उससे पहले 20- 21  फरवरी को वर्धा में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग प्रस्तावित थी. बोस उस समय बीमार थे और उन्होंने पटेल को टेलिग्राम भेजकर वर्किंग कमेटी की मीटिंग को वार्षिक अधिवेशन तक के लिए टालने का अनुरोध किया. उन्होंने गांधीजी को भी एक टेलिग्राम भेजकर नई गठित होने वाली वर्किंग कमेटी के सदस्यों को अपने हिसाब से नॉमिनेट करने का अनुरोध किया. बोस ने अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश की कि पार्टी के भीतर टकराव को रोका जाए.  लेकिन पटेल नेहरू समेत वर्किंग कमेटी के 13 सदस्यों ने बोस पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए वर्किंग कमेटी से इस्तीफा दे दिया. 

बोस अधिवेशन में स्ट्रेचर पर पहुंचे
सुभाष चन्द्र बोस की अस्वस्थता के बीच ही कांग्रेस का त्रिपुरी अधिवेशन, 1939 शुरू हुआ जो 8 से 12 मार्च तक चला. महात्मा गांधी ने उससे दूरी बना ली और वह राजकोट चले गए. अधिवेशन के दौरान माहौल में कड़वाहट ही घुली रही. बीमार होने की वजह से बोस अधिवेशन में स्ट्रेचर पर पहुंचे. कटुता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि बोसविरोधी खेमे के एक कांग्रेसी ने यहां तक कह दिया, चेक किया जाना चाहिए कि कहीं वह कांख के नीचे कोई प्याज तो नहीं रखे हैं. इस तरह बोस की बीमारी तक का मजाक उड़ाया गया. दरअसल, मान्यता है कि कांख में प्याज दबा लेने से शरीर का तापमान बढ़ जाता है जिससे दूसरों को ये लगता है कि शख्स बुखार से तप रहा है.

...और गांधी और बोस के रास्ते पूरी तरह हो गए अलग
त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष समर्थकों और विरोधियों में जमकर हंगामा हुआ. आचार्य कृपलानी ने अपनी आत्मकथा, 'माई लाइफ' में लिखा है सुभाष बोस के बंगाली समर्थकों ने राजेन्द्र प्रसाद के कपड़े फाड़ दिए. इस हंगामे की खबर पूरी देश में गूंजी. टैगोर ने गांधी से हस्तक्षेप करने को कहा. लेकिन गांधी तब अनशन पर बैठे हुए थे. नेहरू ने बीच-बचाव की कोशिश करते हुए सुभाष से कहा कि वो अपना कार्यकाल पूरा करें. लेकिन अब तक सुभाष इस्तीफा देने का मन बना चुके थे. 29 अप्रैल 1939 को उन्होंने कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ दिया.  3 मई 1939 को उन्होंने कलकत्ता की एक रैली में फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना का ऐलान किया और इस तरह उनकी राह कांग्रेस और गांधी जी से अलग हो गई.