
मौत की सजा देने से पहले अपराधी को सुनवाई का एक मौका मिलना चाहिए या नहीं इसको लेकर अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ फैसला करेगी. चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई करते समय ये सिफारिश की है. साथ ही बेंच ने मौत की सजा से जुड़े मामले की सुनवाई के लिए 5 जजों की संविधान पीठ करने का आदेश दिया है. बेंच का कहना है कि संविधान पीठ की तरफ से मौत की सजा के मामले में जो नियम तय होगा वो आगे पूरे देश में सभी अदालतों के सामने मिसाल बनेगा, जिसके आधार पर अदालतें अपने फैसले ले पाएंगी.
बच्चन सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब मामले का दिया हवाला
CJI यूयू ललित के साथ ही जस्टिस एस. रविंद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की मौजूदगी वाली बेंच का मानना है कि मौत की सजा से पहले सुनवाई को लेकर अलग-अलग अदालतों ने कई तरह के अलग-अलग फैसले दिए हैं. बेंच ने 1983 के बच्चन सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब मामले का भी जिक्र किया जिसमें कोर्ट ने भारत के 48वें विधि आयोग की सिफारिशों के आधार पर मौत की सजा से पहले आरोपियों को अलग सुनवाई का आदेश दिया था.
क्या है बच्चन सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब मामला?
बच्चन सिंह को अपनी पत्नी का कत्ल करने के इलजाम में 14 साल का आजीवन कारावास हुआ था. 14 साल पूरे होने पर बच्चन सिंह जब जेल से बाहर निकला, तो वो अपने भाई के घर रहने गया. लेकिन उसके भाई की बीवी और बच्चों को बच्चन का वहां रहना नहीं रास आया, तो उन्होंने इसका विरोध किया. बच्चन को ये बात पसंद नहीं आई. जिसके बाद बच्चन का भाई और उसकी बीवी जब घर से गए तो बच्चन ने भाई के 4 में 3 बच्चों को मौत के घाट उतार दिया. जिसके बाद सेशन कोर्ट में बच्चन को फांसी की सज़ा सुनाई गई.
फिर बच्चन के वकील ने हाईकोर्ट में सज़ा को कम करने गुहार लगाई, लेकिन हाईकोर्ट ने भी सजा कम करने से इंकार कर दिया. इसके बाद बच्चन सिंह के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की अपील की.
जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला...
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो इस मामले ने कुछ अलग ही मोड़ ले लिया. सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या फांसी की सजा देना संवैधानिक रूप से सही है या नहीं? उस वक्त बच्चन के वकील ने संविधान के आर्टिकल 19 (सभी को बोलने का अधिकार) और आर्टिकल 21 (सभी को जीने का अधिकार) का हवाला दिया. हालांकि उसपर सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों पर अडिग रहने के लिए दूसरों के अधिकारों का हनन नहीं कर सकता है. इसके बाद सवाल ये भी उठा कि क्या सुप्रीम कोर्ट हर मर्डर केस को लेकर व्यक्तिगत रूप से फैसला सुनाएगी.
जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि केवल रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केस (Rarest of the Rare case) में ही फांसी की सज़ा दे सकते हैं. लेकिन इसके साथ उन्होंने इसको लेकर कुछ गाइडलाइन भी जारी की, जिसके अनुसार फांसी बहुत ही अलग और दुर्लभ केस में दी जानी चाहिए, साथ ही सभी परिस्थितियों का ठीक तरह से आकलन किया जाना चाहिए. साथ ही इस सज़ा का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर अदालत को आजीवन कारावास की सजा कम लग रही हो तो उस केस में भी फांसी की सजा सुनाई जा सकती है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कई तरह के सवाल उठे. यहां तक की आज तक इसको लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं.