भारत में जमीन-जायदाद के बंटवारे को लेकर सभी धर्मों के अपने अलग-अलग कानून मौजूद हैं. मुसलमानों के लिए उनका पर्सनल लॉ है, हिंदुओं के लिए अपना अलग कानून और ऐसे ही ईसाइयों के लिए अलग. लेकिन इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो सभी पर लागू होते हैं. संविधान में बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा दिया गया है. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने पिता की संपत्ति पर बेटियों के अधिकार का दायरा बढ़ा दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर और कृष्ण मुरारी की बेंच ने कहा है कि जमीन-जायदाद से जुड़े उत्तराधिकार के वो मामले जो 1956 से पहले के हैं, उनमें भी भी बेटियों को बेटों के बराबर ही अधिकार दिया जाएगा. अगर वसीयत नहीं लिखी गई है और हिंदू पुरुष की मृत्यु हो गई है, तो भी उनकी संपत्ति फिर चाहे वह स्व-अर्जित हो या पैतृक हो, उसके उत्तराधिकारियों के बीच बांटी जाएगी.
आपको बता दें, भारत में दो प्रकार की संपत्ति मानी गयी है. एक वो जो व्यक्ति ने खुद अर्जित की है यानि स्वअर्जित और दूसरी पैतृक यानि जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे पास चलती आ रही है.
अगर नहीं लिखी गई है वसीयत?
साथ ही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा है कि अगर किसी जमीन के मालिक की मृत्यु हो गई है और वसीयत नहीं लिखी गई है, तो उत्तराधिकार के सिद्धांत के तहत वो जमीन-जायदाद उसकी संतानों को मिलेगी. संतानों में फिर चाहे बेटा हो या बेटी या फिर दोनों, सभी में संपत्ति बांटी जाएगी.
अगर व्यक्ति अपने पूरे जीवनकाल में भाईयों या दूसरे सगे-संबंधियों के पास रहा है, तब भी वो संपत्ति उनके पास नहीं जाएगी. संपत्ति का बंटवारा बच्चों में ही किया जाएगा.
1956 से पहले के मामलों में भी बेटियों का हिस्सा
हिंदू उत्तराधिकार कानून-1956 के लागू होने के बाद से ही बेटियों को पिता, दादा, परदादा की स्वअर्जित संपत्ति में बेटों के बराबर का अधिकार दे दिया गया है. अब सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पक्का कर दिया है कि पैतृक संपत्ति में बेटियों और बेटों के बराबर के अधिकार 1956 से पहले के मामलों में भी लागू किये जाएंगे.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, ये फैसला मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय को पलटते हुए सुनाया गया है. इसके तहत 1949 में मरप्पा गोंदर स्वर्गवासी हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपनी कोई वसीयत नहीं लिखी थी. अब उनकी जायदाद जब सौंपने की बारी आई तो वह उनकी बेटी कुपाई अम्मल को देने की बात कही गई. इसका साथ देते हुए जस्टिस कृष्ण मुरारी ने फैसला सुनाया है कि ये संपत्ति बेटी पर ही जाएगी. अपने 51 पन्नों के जजमेंट में जस्टिस मुरारी ने प्राचीन ग्रंथों का भी जिक्र किया, उन्होंने कहा, “प्राचीन ग्रंथ जैसे स्मृतियां, ग्रंथ आदि सभी में महिलाओं, बेटियों, पत्नियों को बराबर का उत्तराधिकारी माना गया है.”