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विवाह कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार, क्या इस बार भी मिलेगी निजता के अधिकार को तरजीह

सुप्रीम कोर्ट में हिंदू और मुस्लिम विवाह कानून के खिलाफ याचिका दायर की गई है. दोनों कानून को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि कोई भी कानून पति-पत्नी को आपसी संबंध बनाने के लिए या बनाए रखने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. क्योंकि यह सीधे-सीधे लोगों के निजता के अधिकारों का उल्लंघन है. 

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
हाइलाइट्स
  • जुलाई 2021 में केंद्र सरकार को दिया गया था नोटिस

  • क्या इस मामले में मिलेगी निजता के अधिकार को तरजीह

सुप्रीम कोर्ट में हिंदू और मुस्लिम विवाह कानून के खिलाफ याचिका दायर की गई है. दोनों कानून को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि कोई भी कानून पति-पत्नी को आपसी संबंध बनाने के लिए या बनाए रखने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. क्योंकि यह सीधे-सीधे लोगों के निजता के अधिकारों का उल्लंघन है. 

यह मामला गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले से संबंधित है. दरअसल, कुछ समय पहले गुजरात हाई कोर्ट में एक पत्नी को उसकी इच्छा के विरुद्ध अपने पति के साथ रिश्ता रखने को कहा गया था. जबकि वह अपने पति का घर छोड़कर चली गई थी. इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.  

यह मामला मुस्लिम दंपति का है. लेकिन हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में भी यही प्रावधान है. हिंदू विवाह कानून 1955 की धारा 9 के मुताबिक भी पति को छोड़कर गई पत्नी के साथ संबंध कायम करने के लिए भी अदालत का सहारा लिया जाता है.  

जुलाई 2021 में केंद्र सरकार को दिया गया था नोटिस: 

हिंदू विवाह कानून 1955 की धारा 9 की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. तीनों जजों की पीठ ने इस मुद्दे पर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जुलाई 2021 में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. 

कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को इस पेचीदा मामले में कोर्ट की मदद करने को भी कहा था. उम्मीद की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे का 2022 में समाधान निकाल देगा.
 
हालांकि इस मामले से जुड़े कई दिलचस्प तथ्य भी हैं. जैसे सुप्रीम कोर्ट ने 36 साल पहले 1984 में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 को निरस्त करने से मना कर दिया था. तब कोर्ट ने इसे संवैधानिक ठहराया था. अब 35 साल बाद सुप्रीम कोर्ट इस पेचीदा मामले को फिर से सुनने को राजी हो गया है. 

क्या इस मामले में मिलेगी निजता के अधिकार को तरजीह?  

अभी तीन जजों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर रखा है. सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ ने 2019 में आधार की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला देते हुए निजता के मौलिक अधिकार की व्याख्या की थी. उसमें निजता के अधिकार के फैसले ने नागरिकों की स्थिति बदल दी. 

हिंदू विवाह कानून की धारा 9 के मुताबिक पति या पत्नी अपने रिश्ते बनाने के अधिकार को बहाल करने के लिए कोर्ट की शरण में जाते हैं. यानी जब पति या पत्नी बिना किसी तार्किक कारण के एक दूसरे का साथ छोड़ देते हैं तो पीड़ित पक्ष जिला अदालत में जाकर अपने अधिकार को बहाल करने के लिए अर्जी दे सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में परस्त्री गमन कानून यानी एडल्ट्री एक्ट या फिर जारता अधिनियम के मुताबिक आईपीसी की धारा 497 को समाप्त कर दिया था. 

इतना ही नहीं 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को सबसे ऊपर रखते हुए कौमार्य जांच के लिए टूफिंगर टेस्ट को भी अवैध घोषित किया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिक संबंधों को अपराध मुक्त बनाकर धारा 377 के प्रावधानों पर भी फैसला दिया था. 

अब उम्मीद की जा रही है कि दशकों से जारी विवाह अधिनियम में भी निजता के अधिकारों को सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम तरजीह देगा.