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पारसियों के शव वाहकों को भी मिले स्वास्थ्यकर्मी का दर्जा: सुप्रीम कोर्ट का नोटिस!

गुजरात के सूरत में पिछले महीने में पारसी समुदाय के करीब 13 लोगों की मौत हो चुकी है. इन मरीजों की मौत का कारण कोरोना वायरस है. शहर में कुल पारसियों की संख्या काफी कम है. मृत शरीर के जरिये किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमण से बचाने के लिए समुदाय ने दाह संस्कार का रास्ता चुना था. लेकिन अब सूरत पारसी पंचायत ने परंपरागत तरीके से अंतिम संस्कार की अनुमति देने और शव ढोने वालों को स्वास्थ्य कार्यकर्ता की मान्यता देने की मांग की है.

पारसियों के शव वाहकों को भी स्वास्थ्यकर्मी का दर्जा दिलाने की मांग पारसियों के शव वाहकों को भी स्वास्थ्यकर्मी का दर्जा दिलाने की मांग
हाइलाइट्स
  • पारसी समुदाय ने कोरोना के समय बदला अंतिम संस्कार का तरीका

  • समुदाय ने अंतिम संस्कार करने वाले को हेल्थ वर्कर का दर्जा मिलने की मांग की

जब कोरोना महामारी आई, तो बहुत कुछ बदला, लोगों की जीवनशैली के साथ-साथ, उनके रीति रिवाज भी बदले. शादी-विवाह के तरीकों के साथ-साथ अंतिम संस्कार के भी तरीके बदले. इन सबका का सबसे बड़ा असर पड़ा पारसी समाज पर, जिन लोगों ने दोखमे नशीन को छोड़कर दाह संस्कार करना शुरू कर दिया. उस वक्त हालातों के मद्देनजर पारसी पंचायत पदाधिकारियों ने कोरोना के चलते जान गंवाने वाले लोगों को दाह-संस्कार करने की अनुमति दे दी थी. 

पारसी समुदाय ने बदला अंतिम संस्कार का तरीका
एक रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात के सूरत में पिछले महीने में पारसी समुदाय के करीब 13 लोगों की मौत हो चुकी है. इन मरीजों की मौत का कारण कोरोना वायरस है. शहर में कुल पारसियों की संख्या काफी कम है. मृत शरीर के जरिये किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमण से बचाने के लिए समुदाय ने दाह संस्कार का रास्ता चुना था. लेकिन अब सूरत पारसी पंचायत ने परंपरागत तरीके से अंतिम संस्कार की अनुमति देने और शव ढोने वालों को स्वास्थ्य कार्यकर्ता की मान्यता देने की मांग की है. उनका कहना है कि कोरोना के मद्देनजर आए गुजरात हाई कोर्ट के एक आदेश से शवों का पारसी रीति-रिवाज से संस्कार मुश्किल हो गया था. 

कोर्ट ने जारी किया नोटिस
अब कोर्ट ने याचिका पर नोटिस भी जारी किया है. जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस बोपन्ना की पीठ के सामने सीनियर एडवोकेट फाली साम नरीमन ने गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कोविड की वजह से मारे गए पारसियों के शवों के अंतिम संस्कार करने वालों को भी हेल्थ वर्कर की तरह विशेष दर्जा और सुविधाएं दी जाए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस बारे में जस्टिस श्रीकृष्णा के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यहां भी वही लागू होता है.

अंतिम संस्कार करने वाले को मिले हेल्थ वर्कर का दर्जा
याचिकाकर्ता सूरत पारसी पंचायत की ओर से नरीमन ने कहा कि धार्मिक मान्यता के मुताबिक पारसी धर्म मानने वालों के परिवार में कोई मौत होने पर परिजन शव को हाथ नहीं लगाते बल्कि अंतिम संस्कार करने वाले खास लोग होते हैं वही शव को ले जाकर अंतिम संस्कार करते हैं. अब भले कोविड का प्रकोप थोड़ा घटा हो लेकिन जब ये याचिका दायर की गई थी, तो उससे पिछले महीने में सिर्फ सूरत में ही 13 पारसियों की मौत कोविड की वजह से हुई थी. ये उनकी नस्ल के लिए बहुत खतरे की बात है. ऐसे में उनकी सेहत की सुरक्षा बहुत जरूरी है. सरकार को उन लाश ढोने और अंतिम संस्कार करने वालों को हेल्थ वर्कर का दर्जा देना चाहिए, ताकि उनको भी सरकार से तमाम एहतियाती सुविधाएं मिल सकें. जिससे वो संक्रमण से बचते और सुरक्षित रहते हुए शवों के अंतिम संस्कार कर सकें. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर जनवरी के दूसरे हफ्ते में सुनवाई करने को कहा है.

क्या है दोखमे नशीन?
भारत के अल्पसंख्यक पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार की दोखमे नशीन परंपरा है. इस परंपरा में शव को गिद्धों या अन्य पक्षियों के लिए खुले में छोड़ दिया जाता है. दरअसल पारसी समुदाय जल, पृथ्वी और अग्नि को काफी पवित्र मानते है. जिस कारण ये लोग मृत देह को जल, पृथ्वी और अग्नि के सुपुर्द नहीं करते हैं. बल्कि व्यक्ति की मौत के बाद उसके शरीर को गिद्धों के लिए 'टॉवर ऑफ साइलेंस' में छोड़ दिया जाता है. 'टॉवर ऑफ साइलेंस' एक खुली जगह है, जिसमें मृत शरीर को छोड़ दिया जाता है.