सुप्रीम कोर्ट आए दिन कई ऐतिहासिक फैसले दे रहा है. एक बार फिर से कोर्ट ने एक फैसले में अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने 28 साल पहले हुए एक हत्याकांड में आरोपी पिता पुत्र को बरी करते हुए ये टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा की कि अदालतों को ये ध्यान रखना चाहिए कि मामले में एक और एंगल की संभावना मात्र ही किसी को बरी करने में बाधा नहीं हो सकती.
आरोपी को किया बरी
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एम ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने ये टिप्पणी की है. अपने फैसले में जस्टिस ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट ने न्याय के स्थापित सिद्धांत की अनदेखी करते हुए निचली अदालत के आरोपियों को बरी करने का फैसला पलटा है. जबकि अपीलीय अदालत केवल इस आधार पर आरोपी को बरी करने के आदेश को पलट नहीं सकती कि उस मामले में एक और दृष्टिकोण या एक और थ्योरी भी संभव है, जिस आधार पर जांच नहीं हुई.
क्या कहा कोर्ट ने?
पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि अपीलीय अदालत जब तक बरी करने के फैसले में कोई त्रुटि नहीं पाती, उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं. उस त्रुटि का जिक्र और न्याय सम्मत होने के हवाला भी देना जरूरी है.
पीठ की ओर से सर्वसम्मत फैसला लिखने वाले जस्टिस ओक ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि बरी किए जाने के खिलाफ अपील पर फैसला करते समय अपीलीय अदालत को सबूतों की फिर से पड़ताल करनी होती है. इस परिप्रेक्ष्य में अपीलीय अदालत को यह भी देखना चाहिए कि निचली अदालत का फैसला मौजूद सबूतों के आधार पर उचित है या नहीं.
हाई कोर्ट का फैसला पलटा
फैसले में आगे कहा गया कि ऐसा लगता है कि इस मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को इस कसौटी पर कस कर नहीं परखा. गुजरात में 1996 में हुई एक हत्या मामले में निचली अदालत ने आरोपी पिता-पुत्र को बरी कर दिया था. वो फैसला हाईकोर्ट ने पलट दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए निचली अदालत का फैसला ही बहाल कर दिया.