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Adoption in India: क्या कोई भी कर सकता है किसी बच्चे को अडॉप्ट? भारत में गोद लेने का प्रोसेस क्या है? कौन कर सकते हैं?

Adoption eligibility in India: भारत में, गोद लेने की प्रक्रिया मुख्य रूप से जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 और हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 के तहत रेगुलेट होती है. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत सभी धर्मों के लोग कानूनी प्रक्रिया से बच्चों को गोद ले सकते हैं. लेकिन गोद लेने की प्रक्रिया भारत में काफी लंबी और मुश्किल है. 

Adoption in India Adoption in India
हाइलाइट्स
  • भारत में बच्चा गोद लेना नहीं है आसान

  • एप्लीकेशन अप्रूव होने में लगते हैं महीनों

सुप्रीम कोर्ट ने भारत में अडॉप्टिव पेरेंट्स और मैटरनिटी बेनिफिट को लेकर अहम सवाल उठाया है. मंगलवार को मटेरिटी बेनिफिट एक्ट, 1961 के एक नियम पर ये सवाल उठाया गया है. इस नियम के मुताबिक अगर गोद लिया गया बच्चा तीन महीने से कम उम्र का है, तभी मां को मैटरनिटी बेनिफिट के तहत 12 हफ्ते की छुट्टी मिलेगी. इस नियम को 2017 के संशोधन में जोड़ा गया था. अब इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया है.

हंसा आनंदिनी नंदुरी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य मामले में ये सभी सवाल उठाए गए हैं. 

जस्टिस जेबी पारदीवाला और पंकज मित्तल की बेंच ने इस बात पर सवाल उठाया कि गोद लेने वाली माताओं को मैटरनिटी बेनिफिट केवल तीन महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लेने पर ही क्यों दिया जाता है. सुनवाई के दौरान जस्टिस पारदीवाला ने कहा, “बच्चे की उम्र तीन महीने या उससे कम क्यों होनी चाहिए? मैटरनिटी लीव देने का उद्देश्य क्या है? एक बच्चे की देखभाल करना, चाहे वह बायोलॉजिकल हो या अडॉप्ट किया हुआ.”  

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मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट की धारा 5(4)
1961 के मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट को 2017 में गोद लेने वाली माताओं के लिए संशोधित किया गया था. लेकिन यह केवल कुछ शर्तों के तहत किया गया. धारा 5(4) के अनुसार, एक गोद लेने वाली मां को बारह हफ्ते की मैटरनिटी लीव मिलती है अगर उन्होंने कानूनी रूप से तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लिया है तो. यह शर्त गोद लेने वाली माताओं की देखभाल की जरूरतों को मान्यता देने के लिए लाई गई थी, लेकिन इसमें विवाद तीन महीने की उम्र से है. 

याचिकाकर्ता हंसाआनंदिनी नंदुरी का तर्क है कि यह प्रावधान भारत के जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट के साथ मेल नहीं खाता है. ये कहीं न कहीं संविधान के दिए हुए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के अनुसार, बड़े बच्चे भी गोद लिए जा सकते हैं. लेकिन मैटरनिटी बेनिफिट में छुट्टी को लेकर उम्र की सीमा रखी गई है. इसके अलावा, गोद लेने की प्रक्रिया में छोटे बच्चों को गोद लेना काफी मुश्किल होता है, जिससे कई गोद लेने वाले माता-पिता इसका फायदा नहीं ले पाते हैं. 

तीन महीने के नियम पर चिंता क्यों? 
अब अगर नियमों की बात करें, तो मौजूदा समय में जो नियम है वो गोद लेने वाले माता-पिता को वो सब सुविधा नहीं देता है, जो बायोलॉजिकल माता-पिता को मिलती हैं. ज्यादातर मामलों में इसके कई नुकसान होते हैं. जैसे माएं बच्चों के साथ समय नहीं बिता पाती हैं, जिससे उनका बच्चे के साथ बॉन्ड अच्छा नहीं बन पाता है. इसके अलावा, तीन महीने से ज्यादा उम्र के बच्चों को गोद लेने वाली माताएं भी केयर और इमोशनल कनेक्शन में चुनौतियों का सामना कर सकती हैं. बायोलॉजिकल माता-पिता के साथ ऐसा नहीं होता है. 

भारत में गोद लेना क्या आसान है?
भारत में, गोद लेने की प्रक्रिया मुख्य रूप से जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 और हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 के तहत रेगुलेट होती है. जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत सभी धर्मों के लोग कानूनी प्रक्रिया से बच्चों को गोद ले सकते हैं. लेकिन गोद लेने की प्रक्रिया भारत में काफी लंबी और मुश्किल है. 

गोद लेने वाले माता-पिता की उम्र कम से कम 21 साल होनी चाहिए और 55 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए. एक शादीशुदा कपल बच्चे को गोद ले सकता है, लेकिन उनमें से कम से कम एक भारतीय नागरिक होना चाहिए.आपको गोद लेने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए CARA या किसी दूसरे एडॉप्शन एजेंसी में रजिस्ट्रेशन करना होता है. आप ऐसी गोद लेने की एजेंसी का चयन कर सकते हैं जो CARA या राज्य सरकार से रजिस्टर्ड हो. 

इसके बाद, गोद लेने वाली एजेंसी देखेगी कि गोद लेने वाले माता-पिता बच्चे को गोद लेने के लिए सही हैं या नहीं. एक बार जब आपकी एप्लीकेशन अप्रूव होने के बाद एजेंसी आपको एक बच्चे से मिलाने का प्रयास करेगी. बच्चे का मूल्यांकन उसकी हेल्थ, उम्र और बैकग्राउंड जैसे पहलुओं के आधार पर किया जाएगा. एक बार जब मिलान हो जाता है, तो आपको बच्चे से मिलने और यह निर्णय लेने के लिए समय दिया जाएगा कि क्या आप गोद लेने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहते हैं. अगर आप सहमत होते हैं, तो बच्चे को कुछ महीनों के लिए फॉस्टर केयर व्यवस्था के तहत आपके पास रखा जाता है. 

आखिर में, कोर्ट गोद लेने की प्रक्रिया की समीक्षा करेगी और अगर सब कुछ ठीक रहता है, तो एक गोद लेने का आदेश जारी करेगी, जिससे प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाएगा. इससे बच्चे को आपके बच्चे के रूप में सभी कानूनी अधिकार मिलेंगे. 

दूसरे देशों में क्या प्रावधान है?
आपको बता दें, कई देशों में गोद लेने वाले माता-पिता के लिए कानून अलग हैं. अमेरिका में फैमिली एंड मेडिकल लीव एक्ट (FMLA) सभी माता-पिता को 12 हफ्ते की छुट्टी मिलती है, चाहे बच्चे की उम्र कुछ भी हो. इसके अलावा, ब्रिटेन में गोद लेने वाले माता-पिता को 52 सप्ताह की स्टैच्यूटरी एडॉप्शन लीव मिलती है. कनाडा में ज्यादातर जगहों में गोद लेने की उम्र के आधार पर कोई प्रतिबंध नहीं है.