सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को मुस्लिम महिलाओं के हक में ऐतिहासिक फैसला सुनाया. शीर्ष कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत मुस्लिम तलाकशुदा महिलाएं भी अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि देश में सेकुलर कानून ही चलेगा. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह फैसला सुनाया.
कोई दान नहीं है गुजारा भत्ता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता कोई दान नहीं है. यह हर शादीशुदा महिला का अधिकार है. फिर चाहे उनका धर्म कोई भी हो. सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अब मुस्लिम महिलाएं भी तलाक के बाद गुजारा पाने के लिए इस कानून का इस्तेमाल कर सकती हैं. अदालत ने कहा कि ये अधिकार धर्म की सीमाओं से परे है और सभी विवाहित महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और आर्थिक सुरक्षा के सिद्धांत को मजबूत करता है.
पत्नी को देनी चाहिए आर्थिक मदद
शीर्ष कोर्ट ने अपने अहम फैसले में ये भी कहा कि अब भारतीय पुरुषों को ये समझने का वक्त आ गया है कि घर चलाने में गृहिणियों की भूमिका और उनके त्याग कितने अहम होते हैं. कोर्ट की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि पति को अपनी पत्नी को आर्थिक मदद देनी चाहिए. साथ ही ये भी सुझाया कि पति-पत्नी मिलकर बैंक खाता खोलें और एटीएम का कार्ड भी दोनों के पास रहे.
इससे घर में महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. सुप्रीम कोर्ट इससे पहले भी गृहिणियों को लेकर इस तरह की टिप्पणी कर चुका है. फरवरी 2024 में एक अलग मामले की सुनवाई के दौरान भी शीर्ष कोर्ट ने हाउस वाइफ्स की महत्ता पर अपनी टिप्पणी की थी. उस दौरान कोर्ट ने कहा था कि एक गृहिणी की भूमिका वेतनभोगी परिवार के सदस्य जितनी महत्वपूर्ण है.एक गृहिणी के महत्व को कभी कम नहीं आंकना चाहिए.
क्या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले में मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया है, वह तेलंगाना राज्य से जुड़ा है. अब्दुल समद ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने के तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. याचिकाकर्ता मुस्लिम महिला ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दाखिल कर अपने पति से गुजारा भत्ते देने की मांग की थी.
इस परअब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में ने दलील दी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है. महिला को मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 अधिनियम के प्रावधानों के तहत ही चलना होगा. ऐसे में कोर्ट के सामने सवाल था कि इस केस में मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 को प्राथमिकता मिलनी चाहिए या सीआरपीसी की धारा 125 को.
पर्सनल लॉ के अनुसार ले लिया था तलाक
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील वसीम कादरी की दलीलें सुनने के बाद 19 फरवरी को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. मामले में न्यायालय की सहायता के लिए उसने वकील गौरव अग्रवाल को न्याय मित्र नियुक्त किया था. कादरी ने दलील दी थी कि सीआरपीसी की धारा-125 के मुकाबले 1986 का कानून मुस्लिम महिलाओं के लिए ज्यादा फायदेमंद है. तेलंगाना उच्च न्यायालय ने 13 दिसंबर 2023 को समद की पत्नी को अंतरिम गुजारे भत्ते के भुगतान के संबंध में परिवार अदालत के फैसले पर रोक नहीं लगाई थी.
हालांकि, उसने गुजारा भत्ता की राशि प्रति माह 20 हजार रुपए से घटाकर 10 हजार कर दी थी, जिसका भुगतान याचिका दाखिल करने की तिथि से किया जाना था. समद ने उच्च न्यायालय में दलील दी थी कि 2017 में पर्सनल लॉ के अनुसार तलाक ले लिया था और उसके पास तलाक प्रमाणपत्र भी है, लेकिन परिवार अदालत ने इस पर विचार नहीं किया और उसे पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश जारी कर दिया. उच्च न्यायालय से कोई राहत न मिलने पर समद ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया था.
मुस्लिम महिलाओं को क्या नहीं मिलता था गुजारा भत्ता
तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को कई बार गुजारा भत्ता नहीं मिल पाता है या मिलता है तो भी इद्दत की अवधि तक. इद्दत एक इस्लामिक परंपरा है, जिसके अनुसार यदि किसी महिला को उसका पति तलाक दे देता है या उसकी मौत हो जाती है तो महिला इद्दत की अवधि (करीब तीन महीने) तक दूसरी शादी नहीं कर सकती.
अप्रैल 2022 में एक मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत की अवधि के बाद भी गुजारा भत्ता की हकदार है और उसे ये भत्ता तब तक मिलता रहेगा,जब तक वो दूसरी शादी नहीं कर लेती. जनवरी 2024 में एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला यदि दोबारा शादी भी कर लेती है तो भी वो पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है.
क्या है सीआरपीसी की धारा 125
सीआरपीसी की धारा 125 में पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण को लेकर जानकारी दी गई है. इस धारा के अनुसार पति, पिता या बच्चों पर आश्रित पत्नी, मां-बाप या बच्चे गुजारे-भत्ते का दावा केवल तभी कर सकते हैं, जब उनके पास आजीविका का कोई और साधन उपलब्ध नहीं हो.