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फर्जी दवाइयों और जादुई इलाज के झूठे विज्ञापनों पर Supreme Court की सख्त नजर, जल्द जनता को भी मिलेगा शिकायत करने का अधिकार!

सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट शादन फरासत से इस कानून के क्रियान्वयन पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है और साफ कहा है कि इस मामले में ठोस कार्रवाई होनी चाहिए. अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी आदेश दिया है कि वे 2018 से अब तक झूठे मेडिकल विज्ञापनों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट सौंपें.

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हाइलाइट्स
  • सरकार और राज्यों को कोर्ट की चेतावनी

  • आंध्र प्रदेश पर कोर्ट ने दिखाई सख्ती!

भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (IMA) द्वारा भ्रामक मेडिकल विज्ञापनों के खिलाफ दायर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा बयान दिया है. अदालत ने Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act को "सबसे महत्वपूर्ण कानूनों में से एक" करार देते हुए कहा कि इसमें नागरिकों को शिकायत करने का स्पष्ट मैकेनिज्म होना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि इस कानून के तहत एक पूरी शिकायत निवारण प्रणाली (Grievance Redressal Mechanism) बनाई जाए. जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भूयान की पीठ ने टिप्पणी की, “अगर कोई नागरिक शिकायत करना चाहता है, तो वह कैसे करेगा? हमें इसपर दिशा-निर्देश जारी करने होंगे. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई हेल्पलाइन नंबर या ऑनलाइन पोर्टल हो, जहां लोग अपनी शिकायत दर्ज करा सकें.”

सरकार और राज्यों को कोर्ट की चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट शादन फरासत (Amicus Curiae) से इस कानून के क्रियान्वयन पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है और साफ कहा है कि इस मामले में ठोस कार्रवाई होनी चाहिए. अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी आदेश दिया है कि वे 2018 से अब तक झूठे मेडिकल विज्ञापनों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट सौंपें.

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क्या है ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट?
1954 में बने इस कानून के तहत ऐसे किसी भी उत्पाद के विज्ञापन पर प्रतिबंध है जो झूठे दावे करता हो, जैसे -

  •  "7 दिन में 10 किलो वजन घटाएं!"
  •  "1 महीने में डायबिटीज, कैंसर, हृदय रोग का जड़ से इलाज!"
  •  "जादुई तेल लगाएं और बाल झड़ना हमेशा के लिए बंद!"

इस कानून का पालन न करने पर जुर्माना और जेल की सजा दोनों हो सकती है, लेकिन आज तक इसे सख्ती से लागू नहीं किया गया है. अब सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से उम्मीद है कि यह कानून प्रभावी तरीके से लागू होगा.

किन राज्यों को सुप्रीम कोर्ट ने किया तलब?
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी और पंजाब से पूछा कि उन्होंने अब तक इस कानून के उल्लंघन पर क्या कदम उठाए हैं.

  1. झारखंड का जवाब- राज्य के वकील ने दावा किया कि "अब तक किसी भी निर्माता ने विज्ञापन की अनुमति के लिए आवेदन ही नहीं किया!" सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए कहा कि राज्य को यह बताना होगा कि बिना अनुमति वाले विज्ञापन क्यों प्रकाशित हो रहे हैं.
  2. कर्नाटक की दलील- राज्य सरकार ने कहा कि 25 मामलों में कोई कार्रवाई नहीं की गई क्योंकि जरूरी जानकारी (जैसे लाइसेंस नंबर) नहीं मिली. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा, “यह सिर्फ बहानेबाजी है! राज्य के पास अपनी पुलिस, साइबर सेल है, फिर भी कार्रवाई नहीं हो रही. राज्य को विज्ञापन देने वालों की पूरी जानकारी जुटानी होगी.”
  3. केरल- इस राज्य को फिलहाल कोई निर्देश नहीं दिया गया, क्योंकि यहां नियमों का पालन सही तरीके से हो रहा है.
  4. पंजाब- राज्य ने नया हलफनामा दायर किया है, जिस पर अगली सुनवाई में विचार किया जाएगा.
  5. मध्य प्रदेश- राज्य ने भी नया हलफनामा दायर किया है, जिसकी जांच अगली तारीख पर होगी.
  6. पुडुचेरी- पहले इस पर सख्त रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चीफ सेक्रेटरी को नोटिस भेजा, लेकिन बाद में राज्य के वकील की अपील पर समय दिया गया.

आंध्र प्रदेश पर कोर्ट ने दिखाई सख्ती!
आंध्र प्रदेश सरकार ने कोर्ट से "थोड़ी नरमी" बरतने की अपील की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा, “हम नरमी तभी दिखाते जब आपने कानून का पालन किया होता! 10 फरवरी को आदेश दिया गया था, लेकिन अब तक कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं हुई.”

अगर आपको कोई भ्रामक मेडिकल विज्ञापन दिखे, तो इसे नजरअंदाज न करें! जल्दी ही सरकार एक हेल्पलाइन नंबर जारी कर सकती है, जहां आप ऐसे मामलों की शिकायत कर सकेंगे.