पटना के एक व्यापारी के बेटे ने 10 साल की उम्र में आरएसएस का दामन थामा. तीन साल का कड़ा प्रशिक्षण भी लिया. आरएसएस का प्रचारक भी बना. लेकिन अचानक से उस लड़के ने पूर्णकालिक प्रचारक का काम छोड़ दिया और परिवार बसाने का फैसला लिया. साल 1985 में पूर्णकालिक प्रचारक का काम छोड़ने वाले 33 साल के उस शख्स का नाम सुशील मोदी है. दरअसल सुशील मोदी का घर बसाने का इरादा अचानक नहीं था. इसके पीछे उनकी लव स्टोरी है, जो किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. इसका जिक्र संतोष सिंह ने किताब 'कितना राज, कितना काज' में किया है.
ट्रेन में मिली लड़की से रचाई शादी-
सुशील मोदी राजनीतिक व्यक्ति थे. वो लगातार ट्रेन से करते रहते थे. इसी दौरान वो एक बार बॉम्बे से जम्मू की ट्रेन में सफर कर रहे थे. इसी दौरान उनकी मुलाकात एक लड़की से हुई. जिसका नाम जेसी जॉर्ज था. ये मुलाकात इतनी खास थी कि दोनों की मुलाकात का सिलसिला चल निकला. 10 महीनों तक चली इस मुलाकातों के बाद सुशील मोदी और जेसी जॉर्ज ने शादी का फैसला किया.
अटल बिहारी ने की सुशील मोदी की तारीफ-
सुशील मोदी ने पोस्टकार्ड भेजकर अटल बिहारी वाजपेयी को शादी में शामिल होने का न्योता दिया. 10 मार्च 1986 को वाजपेयी की तरफ से इसका जवाब आया. वाजपेयी ने चिट्ठी लिखा और कहा कि तुमने इस शादी से आधुनिक भारत के भविष्य की मजबूत नींव रखी है. हम सबको ऐसे हिम्मत भरे कदम लेने की जरूरत है. जरूरी है कि ऐसे उदाहरण पेश किए जाएं कि नई पीढ़ी के लिए नई दिशा और दशा तैयार की जाए. मेरे पास शब्द नहीं हैं.
जिनकी शादी नहीं हुई, वो आशीर्वाद दे रहे हैं- अटल
13 अप्रैल 1986 को पटना में सुशील मोदी और जेसी जॉर्ज की शादी में अटल बिहारी वाजपेयी शामिल हुए. शादी आर्य समाज विधि से पूरी हुई. इस दौरान वाजपेयी ने कहा कि ऐसे लोगों को वर-वधू को आशीष देने के लिए बुलाया गया, जिन्होंने खुद ने शादी नहीं की. यह शादी समारोह अनोखा है. यह उत्तर-दक्षिण, अन्तर्राज्यीय, अंतरधार्मिक, अंतरभाषीय मेल है, जहां दुल्हन केरल से है, जो सदियों से प्रार्थना कर रही कुमारी कन्या के पास है. पाटलिपुत्र का भी हिमालय से रिश्ता है और कन्याकुमारी की नजर हमेशा से हिमालय पर रही है. इस रिश्ते में प्यार पहले हुआ और शादी बाद में हो रही है.
विधायक बनने के बाद भी स्कूटर से चलते थे मोदी-
सुशील मोदी साल 1977 में आरएसएस के प्रचारक बने. वो एबीवीपी के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर दो बार रहे. मोदी साल 1971 में पुसु के 5 कैबिनेट मंत्रियों में से एक रहे. वो मीसा के तहत दो साल तक जेल में रहे. सुशील मोदी ने ऐसे राजनेता की छवि बनाई, जो विधायक बनने के बाद भी स्कूटर चलाते थे और अखबारों के दफ्तरों में प्रेस विज्ञप्ति देने के लिए अपने बॉडीगार्ड को स्कूटर पर पीछे बैठाकर ले जाते थे.
साल 2005 में पहली बार सुशील मोदी को बिहार बीजेपी का अध्यक्ष बनाए गया था. साल 2005 में एनडीए की सरकार में सुशील मोदी को डिप्टी सीएम और वित्त मंत्री बनाया गया. उसके बाद से जब बिहार में एनडीए की सरकार रही, तब सुशील मोदी सबसे बड़े नेता बने रहे. लेकिन साल 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जेडीयू से ज्यादा सीटें मिली तो बीजेपी ने अपना डिप्टी सीएम बदल दिया. उसके बाद से सुशील मोदी बिहार की सियासत में हाशिए पर चल रहे हैं.
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