संसद के पूरे शीतकालीन सत्र के लिए सोमवार को राज्यसभा के 12 सांसदों को अगस्त में पिछले सत्र में उनके "अशांत" आचरण के लिए निलंबित करना उच्च सदन के इतिहास में इस तरह की सबसे बड़ी कार्रवाई है.
अशोभनीय आचरण की वजह से 12 विपक्षी सदस्यों का हुआ निलबंन
राज्यसभा में सोमवार को शीतकालीन सत्र के पहले दिन बैठक काफी हंगामेदार रही. जिसमें विपक्ष के शोरगुल के बीच तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को खत्म करने संबंधी एक विधेयक बिना चर्चा के पारित हो गया जबकि पिछले मॉनसूस सत्र में ‘‘अशोभनीय आचरण’’ की वजह से 12 विपक्षी सदस्यों को इस सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया. 12 विपक्षी सदस्यों का निलंबन अब तक के इतिहास में सबसे बड़ी कार्रवाई है.
इन सदस्यों का हुआ निलंबन
जिन सदस्यों को निलंबित किया गया है, उनमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के इलामारम करीम, कांग्रेस की फूलों देवी नेताम, छाया वर्मा, रिपुन बोरा, राजमणि पटेल, सैयद नासिर हुसैन, अखिलेश प्रताप सिंह, तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन और शांता छेत्री, शिव सेना की प्रियंका चतुर्वेदी और अनिल देसाई तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विनय विस्वम शामिल हैं.
रिकॉर्ड सबसे ज्यादा संख्या में हुआ है सांसदों का निलंबन
संसदीय रिकॉर्ड की जानकारी रखने वाले अधिकारियों ने बताया कि यह राज्यसभा से सबसे बड़ी संख्या में सदस्यों का निलंबन है. इससे पहले 2020 में आठ सांसदों को निलंबित किया गया था, जो दूसरी सबसे ज्यादा संख्या थी. इनमें डेरेक ओ ब्रायन (तृणमूल कांग्रेस), संजय सिंह (आम आदमी पार्टी), राजीव सातव (कांग्रेस), केके नागेश (माकपा), सैयद नासिर हुसैन (कांग्रेस), रिपुन बोरा (कांग्रेस), डोला सेन (तृणमूल कांग्रेस) और इलामारम करीम (माकपा) शामिल हैं.
इस बिल पर हुआ था हंगामा
इस बार भी सांसदों का निलंबन एक बिल पर चर्चा कराने की मांग को लेकर हुए हंगामे से जुड़ा हुआ है. पिछले मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को राज्यसभा में पेश किये गए इंश्योरेंस बिल पर चर्चा कराने की मांग को लेकर ही विपक्ष व सत्ता पक्ष के सदस्यों के बीच तीखी झड़प और खींचातानी हुई थी. नौबत ये हो गई थी कि हालात पर काबू पाने के लिए मार्शलों को सदन में बुलाना पड़ा था.
इन सांसदों का सबसे ज्यादा बार हुआ है निलंबन
वरिष्ठ नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी राज नारायण को राज्यसभा से चार बार सस्पेंड किया गया था. जबकि उपसभापति रहे गोदे मुहारी को दो बार राज्य सभा से निलंबित किया गया था. वहीं संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोमवार को राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को पत्र लिखकर कहा कि इस शीतकालीन सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित किए गए उच्च सदन के 12 निलंबित सदस्यों ने सदन का अपमान किया है और उन्हें ऐसी सजा दी जाना चाहिए जो मिसाल बन सके और प्रतिरोध का काम करने के साथ संसद की विश्वसनीयता को भी बहाल कर सके.
जानिए क्यों होता है सांसदों का निलंबन
सांसदों को संसदीय शिष्टाचार के कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है. लोकसभा की नियम पुस्तिका यह कहती है है कि सांसदों को दूसरों के भाषण को बाधित नहीं करना है, चुप्पी बनाए रखना है और बहस के दौरान टिप्पणी करने या बीच में रोक-टोक कर कार्यवाही में बाधा नहीं डालनी है.1989 के नियमों के तहत दोनों सदन का सदस्य नारे नहीं लगा सकता, तख्तियां नहीं फेंक सकता, विरोध में दस्तावेजों को नहीं फाड़ सकता, और सदन में कैसेट या टेप रिकॉर्डर नहीं बजा सकता. 2001 में लोकसभा के नियम में संशोधन कर अध्यक्ष को एक खास शक्ति दी गई है. नये नियम, 374A के तहत अगर कोई सांसद सदन के कामकाज में बाधा डालता है तो उसे अध्यक्ष अधिकतम सदन से निलंबित कर सकता है. 2015 में, स्पीकर सुमित्रा महाजन ने 25 कांग्रेस सांसदों को निलंबित करने के लिए इस नियम का इस्तेमाल किया.
राजीव गांधी की सरकार में सबसे पहली बार हुआ था सांसदों का निलंबन
वैसे संसदीय इतिहास में लोकसभा में सबसे बड़ा निलंबन साल 1989 में हुआ था, जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. तब सांसदों ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को सदन में रखे जाने की मांग को लेकर जमकर हंगामा किया था. तब लोकसभा स्पीकर ने अनुशासनहीनता के मामले में एक साथ 63 सांसदों को निलंबित कर दिया था. जिन 12 सांसदों को नियम 256 के तहत सदन से निलंबित किया गया है, उसमें ये प्रावधान है कि निलंबित सदस्यों के माफी मांगने पर भी इसे वापस लिया जा सकता है. लेकिन वह भी राज्यसभा के सभापति की मर्जी पर होगा. वैसे संस्पेंशन के खिलाफ प्रस्ताव भी सदन में लाया जा सकता है. अगर ये पास हो गया तो निलंबन खुद ब खुद हट जाएगा. देखते हैं कि मंगलवार को विपक्ष झुकता है कि नहीं? हाल ही में 2010 में, मंत्री से महिला आरक्षण बिल छीनने के लिए 7 सांसदों को राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया था. तब सांसदों ने नारेबाजी के साथ सदन में काली मिर्च स्प्रे का इस्तेमाल किया और तख्तियां प्रदर्शित कीं थी.