ज्यादातर ग्रामीण भारत में, आज भी लोग मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी, गोबर और कोयले का इस्तेमाल करके खाना पकाते हैं. चूल्हे पर खाना पकाने से लोग, खासकर कि महिलाएं हानिकारक धुएं के संपर्क में आती हैं. एक ग्लोबल पब्लिक हेल्थ ऑर्गनाइजेशन, वाइटल स्ट्रैटेजीज़ (Vital Strategies) की एक नए स्टडी के अनुसार, अगर ग्रामीण परिवार LPG पर स्विच करते हैं तो इससे स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा. इनडोर और आउटडोर दोनों प्रदूषण में कमी आएगी जिस कारण हर साल 1,50,000 से ज्यादा लोगों की जान बचेगी.
स्टडी में पाया गया कि इस तरह के बदलाव से जनसंख्या में लगभग 37 लाख "हेल्दी ईयर्स" भी जुड़ेंगे. इनमें से आधे से ज्यादा लोग चार राज्यों - उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में लाभान्वित होंगे. इन राज्यों में सबसे ज्यादा आबादी, सबसे कम एलपीजी उपयोग और वायु प्रदूषण का संयोजन है.
चूल्हे के धुएं से होती है ये परेशानी
हाउसहोल्ड एयर पॉल्यूशन (HAP) से मतलब है लकड़ी, कोयला, गोबर और दूसरे बायोमास को जलाकर खाना पकाने से होने वाला प्रदूषण. इस प्रदूषण के कारण दिल की बीमारी, स्ट्रोक और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत होने का खतरा रहता है. ग्रामीण इलाकों में 40% से ज्यादा लोग इस तरह के ईंधनों पर निर्भर हैं. स्टडी के मुताबिक, ग्लोबल लेवल पर HAP 32 लाख मौतों का कारण बनता है जिनमें पां साल से कम उम्र के लगभग 237,000 मौतें शामिल हैं. साल 2021 में भारत में 10 लाख मौतों का कारण HAP को माना गया.
स्टडी में कहा गया है कि LPG पर स्विच करने से होने वाले ज्यादातर स्वास्थ्य फायदो में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में जन्म के समय कम वजन के कारण शिशु मृत्यु दर में कमी आना और 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज में सुधार होना शामिल है. यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) को सपोर्ट करती है जो गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को सब्सिडी वाली गैस प्रदान करने वाली सरकारी योजना है.
कम होगा घरेलू रिस्क
इस स्टडी के लिए, रिसर्चर्स ने देखा कि कैसे पार्शियल और फुल एलपीजी सब्सिडी लगभग 90 मिलियन गरीब परिवारों के स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकती है, जिनके पास वर्तमान में या तो खाना पकाने की गैस तक पहुंच नहीं है या पीएमयूवाई के तहत आंशिक पहुंच है. अगर ऐसे परिवार विशेष रूप से एलपीजी पर स्विच करते हैं, तो प्रदूषक PM2.5 के प्रति औसत घरेलू रिस्क 180 ug/m3 से 48 ug/m3 तक कम हो जाएगा.
PM2.5 रिस्क कम होने से सिर्फ LPG पर स्विच करने वाले परिवार ही नहीं बल्कि आसपास के परिवेश में रहने वाले लोगों को भी फायदा मिलेगा. क्योंकि "चूल्हे" का धुआं परिवेशी वायु प्रदूषण में योगदान देता है. विश्लेषण में पाया गया कि महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तराखंड जैसे राज्य 40 ug/m3 के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु दिशानिर्देशों तक पहुंच जाएंगे. अध्ययन में 1,100 रुपये प्रति सिलेंडर की कीमत मानते हुए आठ सिलेंडरों के लिए एक घर के लिए फुल सब्सिडी की वार्षिक लागत 8,800 रुपये होने का अनुमान लगाया गया है. आधी सब्सिडी का मतलब 600 रुपये प्रति सिलेंडर की दर से एक साल में प्रति घर 4,800 रुपये खर्च करना होगा.
हेल्थ रिसर्चर्स भारत की वायु प्रदूषण समस्या को हल करने के लिए "चूल्हे" के धुएं को कम करने को महत्वपूर्ण मान रहे हैं. घरेलू क्षेत्र से उत्सर्जन को खत्म किए बिना आप राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों तक नहीं पहुंच पाएंगे.