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Taj Hotel से लीक हुई 15 लाख लोगों की पर्सनल जानकारी, 5 पॉइंट में समझिए प्राइवेसी से जुड़े अपने अधिकार

इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड की तरफ से बयान जारी किया गया है. इसके मुताबिक, कोई ग्राहकों के डेटा को हैक करने का दावा कर रहा है. लेकिन हमारे ग्राहकों का डेटा सुरक्षित है. जो व्यक्ति ऐसा दावा कर रहा है उसकी पूरी जांच की जा रही है. 

ताज होटल ग्रुप में डेटा उल्लंघन में लगभग 15 लाख लोगों की पर्सनल जानकारी लीक हो गई. ग्राहकों का ये डेटा 2014 से 2020 तक का है. लोगों का ये डेटा डार्क वेब पर 5,000 डॉलर में खरीदने के लिए उपलब्ध है. इस बारे में इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड की तरफ से बयान जारी किया गया है. इसके मुताबिक, कोई ग्राहकों के डेटा को हैक करने का दावा कर रहा है. लेकिन हमारे ग्राहकों का डेटा सुरक्षित है. जो व्यक्ति ऐसा दावा कर रहा है उसकी पूरी जांच की जा रही है.

लीक हुए डेटा में पहचान पत्र, फोन नंबर जैसी जरूरी जानकारी

ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, हैकर्स का दावा है कि ग्राहकों का डेटा अब तक कहीं शेयर नहीं किया गया है. इस डेटा में पहचान पत्र, फोन नंबर के साथ अन्य जरूरी जानकारी है. अपनी पहली शर्त में हैकर्स ने निगोशिएट कराने वाले मिडिल पर्सन की डिमांड की है. 

समझिए प्राइवेसी से जुड़े अपने अधिकार

  • आपकी निजी जिंदगी में किसी दूसरे का दखल न देना राइट टू प्राइवेसी है. यह हर व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है. आपकी पर्सनल जानकारी भी इसी अधिकार के अंदर आती है.

  • अगर किसी ने आपको बिना बताए आपकी पर्सनल जानकारी चुराई है या कहीं पोस्ट की है तो आप पुलिस से इसकी शिकायत कर सकते हैं. इसके अलावा आप इसकी कम्प्लेन साइबर सेल में भी कर सकते हैं.

  • डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल आने के बाद से आपके पास डाटा शेयर की जानकारी लेने का अधिकार भी है. आप कंपनियों से पूछ सकते हैं कि आपका डाटा कहां इस्तेमाल हो रहा है.

  • इसके अलावा डाटा का गलत इस्तेमाल होने पर डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड में शिकायत भी कर सकते हैं.

  • डार्क वेब पर लीक हुई आपकी पर्सनल डिटेल्स आपको मुसीबत में डाल सकती है. ऑनलाइन डाटा लीक होने से बैंकिंग फ्रॉड, टैक्स रिफंड स्कैमस और फाइनेंशियल क्राइम के बढ़ने के खतरे ज्यादा रहते हैं. 

डार्क वेब क्या है?

डार्क वेब इंटरनेट की ऐसी दुनिया है जहां सभी गैर कानूनी धंधे चलते हैं. यहां लोगों की पर्सनल डिटेल्स का भी सौदा‌ होता है. इसे ओपन करने के लिए विशेष तरह के ब्राउजर की जरूरत होती है. इंटरनेट का करीब 90 फीसदी नेट छिपा हुआ यानी डीप वेब है. इस तरह की वेबसाइट्स तक स्पेसिफिक ऑथराइजेशन प्रॉसेस, सॉफ्टवेयर और कन्फिगरेशन की मदद से पहुंचा जा सकता है. डेटा लीक होना एक समस्या है और सावधानी ही इसका सबसे बड़ा बचाव है. इसलिए पर्सनल इन्फॉर्मेशन ऑनलाइन साझा न करें और स्ट्रॉन्ग पासवर्ड का इस्तेमाल करें.