एक ऐसे समय में जब तेलंगाना के धान किसान अपनी रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं उस दौरान संगारेड्डी जिले के तड़कल क्लस्टर से संबंध रखने वाले दो पट्टेदार किसान अपने भाग्य की कहानी खुद लिख रहे हैं.
कांगटी मंडल में तड़कल क्लस्टर के कृषि विस्तार अधिकारी जी संतोष को इसके लिए धन्यवाद देना चाहिए, जो पिछले काफी समय इन किसानों की मदद कर रहे हैं. दोनों किसान वैकल्पिक और अपरंपरागत फसलें उगाकर आज अपनी धरती से सोना उगा रहे हैं. तड़कल क्लस्टर (Tadkal cluster)में चार गांव शामिल हैं - चपटा (के), चपटा (बी), बाबुलगाम और तड़कल. ये सभी गांव सीमा के साथ स्थित हैं.
धान उगाना छोड़कर चुनी वैकल्पिक खेती
लगभग तीन साल पहले, जब कांगटी मंडल के अधिकांश रैयत किसान हर मौसम में धान की खेती करना ही जानते थे उस दौरान तड़कल गांव के मोची पंडारी और चपटा (बी) गांव के बी हवप्पा ने महसूस किया कि उन्हें स्थिर लाभ सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक फसलें उगानी होंगी क्योंकि धान उगाने में उन्हें काफी नुकसान हो रहा था. संतोष की मदद से पंडारी ने अच्छे पैसे कमाने के लिए अन्य वैकल्पिक फसलों के अलावा बासमती धान उगाना शुरू किया. एक तरफ जहां पंडारी की पीढ़ी के अधिकांश किसानों ने सोचा कि बासमती किस्म की खेती से उन्हें अच्छी कीमत नहीं मिलेगी, पंडारी ने देखा कि देश भर में इसकी अच्छी मांग है.
अन्य किसानों को भी उपलब्ध कराते हैं बीज
पंडारी वर्तमान में अपने आधा एकड़ के प्लाट में बासमती धान उगाता है. पंडारी का कहना है कि इस प्लाट से उन्हें हर सीजन में चार बोरी अनाज मिलता है. वह अन्य रैयतों को भी बासमती किस्म के धान उगाने के लिए बीज उपलब्ध कराकर उनकी मदद कर रहे हैं जिससे दूसरे किसानों को भी अच्छा पैसा मिलेगा. पंडारी शेष पांच एकड़ में सफेद ज्वार, कपास और मसूर जैसी कई अन्य फसलें उगाता है. पंडारी ने बताया कि वह केवल वनकलम (Vanakalam) के दौरान धान उगाते हैं और यासंगी मौसम (Yasangi season)के दौरान वैकल्पिक फसलें उगाते हैं.
तिल की खेती
चप्टा (बी) गांव में हवप्पा का खेत एक गली जैसा दिखता है, जिसके चारों ओर तिल के पौधे लगे दिखाई देते हैं. स्थानीय बाजारों में इसकी उच्च मांग के अलावा, हवप्पा का कहना है कि चूंकि तिल का पौधा अपने आप उगता है और इसमें बहुत अधिक देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है इसलिए वर्तमान में कई किसान इसे उगा रहे हैं.
कमाया 4 लाख का मुनाफा
हवप्पा गर्व से कहते हैं,“जब मैंने दो साल पहले तिल की खेती शुरू की थी, तब मैं इस उद्देश्य के लिए केवल 10 गुंटा भूमि का उपयोग कर रहा था. बाद में अच्छे लाभ को देखते हुए और बिना उर्वरक (fertilizer)और श्रम पर ज्यादा खर्च किए मैंने इसपर खूब लाभ कमाया. इसके बाद मैंने फसल को और 10 गुंटा में उगाने का फैसला किया. मैं वर्तमान में वैकल्पिक फसलों की खेती के माध्यम से प्रति वर्ष 4 लाख रुपये की कमाई कर लेता हूं.”तिल के अलावा रैयत अपनी साढ़े पांच एकड़ की जमीन पर ज्वार (sorghum),कपास (cotton),दाल (lentil)और सूरजमुखी(sunflower)उगाते हैं.
पिछले साल वनकलम में मैंने अपने 2.5 एकड़ प्लॉट में 25 क्विंटल रूई उगाई, जिससे बेचकर मैंने 1.7 लाख का मुनाफा कमाया. पिछले साल कॉटन की कीमत 7,400 रुपये प्रति कुंटल थी, जो इस साल बढ़कर 8,900 रुपये प्रति कुंटल हो गई. धान में मेहनत काफी ज्यादा लगती है और मुनाफा भी जल्दी नहीं मिलता जबकि वैकल्पिक फसलें उगाना आसान और परेशानी मुक्त है.”