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Story of Bengal Partition: अंग्रेजों ने बंगाल को बांटा, फिर इंदिरा गांधी ने दिलाई ईस्ट पाकिस्तान को आजादी... जानिए संपूर्ण बंगाल से बंगाल विभाजन और बांग्लादेश बनने तक की कहानी 

Partition of Bengal 1905: अंग्रेज वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को 16 अक्टूबर 1905 को धर्म के आधार पर दो भागों में बांट दिया था. देश को आजादी मिलने के बाद 1971 में भारत और पाकिस्तान में युद्ध हुआ था. 16 दिसंबर 1971 को 93 हजार पाक सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. इस जीत के बाद इंदिरा गांधी को आयरन लेडी की संज्ञा दी गई थी. इस जंग के बाद बांग्लादेश स्वतंत्र देश बना था. 

Partition of Bengal 1905 (File Photo) Partition of Bengal 1905 (File Photo)
हाइलाइट्स
  • अंग्रेजों ने बंगाल को 16 अक्टूबर 1905 को धर्म के आधार पर बांट दिया था दो भागों में 

  • 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान से अलग हो बांग्लादेश बना था स्वतंत्र देश 

Bangladesh History 1971: बांग्लादेश (Bangladesh) में इन दिनों हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है. गत अगस्त में प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) की सरकार का तख्तापलट करने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस (Mohammad Yunus) को अंतरिम सरकार का मुखिया बनाया गया है. इसके बावजूद यहां कत्लेआम जारी है. इसमें अधिकतर हिंदू मारे जा रहे हैं.

आज हम आपको संपूर्ण बंगाल से बंगाल विभाजन और बांग्लादेश बनने तक की कहानी बता रहे हैं. इसमें हम बताएंगे कैसे अंग्रेजों ने बंगाल को बांटा और फिर इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने कैसे ईस्ट-पाकिस्तान को आजादी दिलाई और बांग्लादेश का एक नए देश के रूप में उदय हुआ?

अंग्रेजों ने जब बंगाल को दो हिस्सों में बांट दिया
कभी बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बंग्लादेश एक हुआ करते थे. ये सिर्फ एक नाम बंगाल से जाने जाते थे. यहां रहने वाले लोगों में एकजुटता थी. यहां लोग अंग्रेजों का मुंहतोड़ जवाब दिया करते थे. यह अंग्रेजों को रास नहीं आया. अंग्रेजों की जो नीति फूट डालो और राज करो की थी, उसी को उन्होंने यहां भी अपनाया. बंगाल को 16 अक्टूबर 1905 को धर्म के आधार पर दो भागों में बांट दिया.

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यह विभाजन अंग्रेज वायसराय लॉर्ड कर्जन ने किया था. भारतीयों ने जब विभाजन का विरोध किया तो लॉर्ड कर्जन ने इसे प्रशासनिक कामकाज के लिए इसकी जरूरत बताई. उस समय लॉर्ड कर्जन ने यह तर्क दिया था कि ज्यादा बड़ा राज्य के चलते प्रशासनिक कामकाज में बाधा आ रही है. बड़ा राज्य होने की वजह से पूर्वी बंगाल के जिलों की उपेक्षा हो रही है. वहां प्रशासनिक दिक्कतें आती हैं और डेवलपमेंट से जुड़े काम भी प्रभावित हो रहे हैं.

पूर्वी बंगाल और असम नाम से नया प्रांत बना दिया 
बंगाल विभाजन को इतिहास में बंग-भंग के नाम से भी जाना जाता है. इस विभाजन के दौरान मुस्लिम बहुल पूर्वी क्षेत्रों को हिंदू बहुल पश्चिमी क्षेत्र से अलग कर दिया गया था. हजारों भारतीयों के विरोध के बावजूद कर्जन ने बंगाल का विभाजन कर दिया. उसने उत्तरी-पूर्वी बंगाल के राजशाही, ढाका और चटगांव डिवीजन में आने वाले 15 जिलों को असम में मिला दिया. इस तरह से बंगाल से अलग कर पूर्वी बंगाल और असम नाम से एक नया प्रांत बना दिया. विभाजन के बाद तत्कालीन बंगाल, पूर्वीं बंगाल और पश्चिम बंगाल में बंट गया. पूर्वी बंगाल की राजधानी ढाका बनाई गई. पश्चिम बंगाल में बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल शामिल थे. 

'बंग-भंग' आंदोलन ने अंग्रेज हुकूमत को रख दिया हिलाकर 
बंगाल प्रांत के विभाजन के बाद देश में 'बंग-भंग' आंदोलन शुरू हो गया. विभाजन के विरोध में सिर्फ बंगाल में ही नहीं बल्कि पूरे देश में स्कूलों-कॉलेजों से लेकर चौक-चौराहों पर विरोध प्रदर्शन किए गए. बंगाल विभाजन के विरोध में 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के टाउनहॉल में विशाल जनसभा का आयोजन हुआ. इसमें लाखों लोगों ने हिस्सा लिया. इसी सभा में ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार का प्रस्ताव पास हुआ और स्वदेशी आंदोलन की औपचारिक शुरुआत हुई. 'बंग-भंग' आंदोलन ने अंग्रेज हुकूमत को हिलाकर रख दिया. भारतीयों के विरोध को देखते हुए अंग्रेजों ने बंगाल को एक करने का फैसला किया. साल 1911 में किंग जॉर्ज पंचम ने बंगाल को पुनः एकीकृत कर दिया.

जाते-जाते खेला कर गए अंग्रेज  
अंग्रेज साल 1947 में भारत देश को छोड़ते समय भी खेला कर गए. एक देश को दो देशों एक भारत और दूसरा पाकिस्तान में बांट दिया. भारत से अलग हुआ पाकिस्तान दो हिस्सों में विभाजित था. एक पश्चिमी पाकिस्तान और दूसरा पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश). दोनों क्षेत्रों के बीच संस्कृति, भाषा और पहचान में बहुत ज्यादा अंतर था. कुछ समय बाद पूर्वी पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ विरोध आंदोलन शुरू हो गया. आइए जातने हैं फिर इंदिरा गांधी ने कैसे ईस्ट पाकिस्तान को आजादी दिलाई और यही पूर्वी पाकिस्तान का 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश के रूप में उदय हुआ. 

कैसे शुरू हुआ पाकिस्तान में विरोध आंदोलन 
पाकिस्तान में साल 1970 में चुनाव हुआ. इस चुनाव में शेख हसीना के पिता मुजीबुर्रहमान की पार्टी पूर्वी पाकिस्तानी अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान की 169 में से 167 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही. इस तरह से 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में मुजीबुर्रहमान के पास सरकार बनाने के लिए बहुमत था. लेकिन पाकिस्तान को कंट्रोल कर रहे पश्चिमी पाकिस्तान के लीडरों और सैन्य शासन को यह गवारा नहीं हुआ कि मुजीबुर्रहमान पाकिस्तान पर शासन करें. मुजीबुर्रहमान को पीएम नहीं बनने दिया गया. इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान में बगावत की आग तेज हो गई. लोग सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने लगे. पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान ने पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह को कुचलने के लिए सेना को बुला लिया.

इंदिरा गांधी ने जबर्दस्त नेतृत्व कौशल का दिया परिचय
पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने बांग्लाभाषी लोगों पर जमकर जुर्म किया. कत्लेआम और रेप की घटनाओं से तंग आकर करोड़ों की संख्या में लोग भारत की सीमा में घुस आए. भारत के सामने शरणार्थी संकट पैदा हो गया. पूर्वी पाकिस्तान में युद्ध रोकने के लिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से काफी अपील की, लेकिन अमेरिका सहित सभी पश्चिमी शक्तियों ने इससे मुंह मोड़ लिया. इसके बाद भारत सरकार ने मुक्तिवाहिनी की मदद करने का फैसला लिया. मुक्तिवाहिनी पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराने वाली पूर्वी पाकिस्तान की सेना थी. इसी बीच पाकिस्तान ने भारत पर भी हवाई हमला कर दिया. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जबर्दस्त नेतृत्व कौशल का परिचय दिया. 

जब 93 हजार पाक सैनिकों ने भारत के सामने किया आत्मसमर्पण 
इंदिरा गांधी ने आधी रात को देश के नाम संबोधन करते हुए कहा, मैं आप सभी से ऐसे वक्त में बात कर रही हूं, जब देश और हमारे लोग एक बड़ी आपदा से गुजर रहे हैं. कुछ घंटों पहले ही 5:30 बजे शाम को पाकिस्तान ने हमारे खिलाफ पूर्ण युद्ध की शुरुआत कर दी है. पाकिस्तान एयरफोर्स ने अचानक हमारे अमृतसर, पठानकोट, श्रीनगर, अवंतिपुर, उत्तरलाई, जोधपुर, अंबाला और आगरा एयरफील्ड्स पर हमले किए हैं. इसके अलावा उनकी थल सेना सुलेमानखी, खेमकरण, पुंछ और अन्य सेक्टर्स में गोलीबारी कर रही है. 

इंदिरा ने कहा, आज बांग्लादेश में चल रहा युद्ध भारत का युद्ध बन गया है. यह युद्ध मुझ पर, मेरी सरकार और देश के लोगों पर थोपा गया है. हमारे पास देश को युद्ध में ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. पूरे देश में आपातकाल घोषित किया जाता है. हर जरूरी कदम उठाया जा रहा है और हम किसी भी चीज के लिए तैयार हैं. इस तरह से 3 दिसंबर 1971 को भारत भी इस युद्ध में कूद पड़ा. भारतीय सेना के जबांज जवानों ने पश्चिम से लेकर पूर्व तक में पाक सेना पर जोरदार हमला बोला. भारत की थल, जल और वायु तीनों सेनाएं इस युद्ध में पाकिस्तान पर टूट पड़ीं. कोई चारा नहीं देख 16 दिसंबर 1971 को 93 हजार पाक सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. इस तरह से भारत ने जंग जीत लिया. इस जीत के बाद इंदिरा गांधी को आयरन लेडी की संज्ञा दी गई. इस जंग के बाद बांग्लादेश स्वतंत्र देश बना और शेख मुजीबुर्रहमान उसके पहले प्रधानमंत्री बने.